पर वस्तुओं से मन अशांत होता है यही एक दुख का कारण है
जैन मुनि वैराग्य सागर महाराज
नैनवा 30 दिसंबर मंगलवार अग्रवाल दिगंबर जैन बड़े मंदिर में प्रातः 8:30 पर जैन संत वैराग्य सागर महाराज ने अपने उद्बोधन देते हुए बताया
जैन आगम व जैन ग्रंथों में संसार के जीव की जो चर्चा विस्तार से की गई है वह अन्य ग्रंथों में नहीं है
आज विज्ञान के युग में हर भोग की वस्तु घर बैठे उपलब्ध हो रही है परंतु विज्ञान ने आत्मा के बारे में कोई खोज अब तक नहीं कि मनुष्य कैसे बात करता है कैसे चलता है कैसे आंखों से देखा है कैसे कानो से सुनता है कैसे भोजन करता है यह सब मनुष्य जो क्रिया कर रहा है यह ईश्वर की देन है विज्ञान की नहीं
आज मनुष्य बीमार होने पर अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाकर रोग समाप्त होने की औषधि ले रहा है
लेकिन जैन संत बीमारियों से बचाने के लिए अभक्ष वस्तुओं का त्याग करने को हमेशा बताते हैं परंतु मनुष्य उनकी बातों पर उनके बताएं मार्ग पर चलना ही नहीं चाहता यही बीमारियों को आमंत्रित कर रहा है अभक्ष वस्तुएं
आत्मा की शांति के लिए मन को शांत करना बहुत जरूरी है मन भोगों की वस्तुओं से ही अशांत हो रहा है उन्हें त्यागने पर ही शांति प्राप्त होना मुनि ने बताया
धर्म क्रिया करने से ही जीव में परिवर्तन आता है
जैन मुनि सुप्रभ सागर महाराज
जैन संत ने बताया कि मनुष्य सुख चाहता है सुख की परिभाषा बड़े-बड़े आचार्य ने बताई कि धर्म का मार्ग ही सुख का मार्ग है अधर्म मार्ग कांटों का वह गढो का मार्ग मुनि ने बताया
आज का मनुष्य बड़ी-बड़ी कंपनियों के ऐड देखकर माल खरीद रहा है उस पर मनुष्य विश्वास करता है संत धर्म का ज्ञान शिक्षा देते हैं उस पर मनुष्य का विश्वास नहीं हो रहा यह कारण संसार में भटकने का है
मनुष्य विज्ञान पर विश्वास करता है वीतराग वाणी पर विश्वास नहीं करता वर्तमान हमारा पुरुषार्थ विपरीत चल रहा है विषयों को सुख मानना मनुष्य की बहुत बड़ी भू ल है
क्षण मात्र का सुख प्राप्त हो जाएगा लेकिन उससे सजा बहुत लंबी मिलने का मार्ग है
संसारी विषय भोगों का नाश करना एक सुखी होने का कारण मुनि ने बताया
अपार भक्तों ने जिनालय पहुंचकर धर्म लाभ प्राप्त किया
महावीर कुमार सरावगी दिगंबर जैन समाज प्रवक्ता नैनवा
















