*सागर।* *वेदचन्द जैन*।
जो छुपकर पाप करते हैं या जो पाप करके छुपने का प्रयास करते हैं वो ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। सबके सामने सब प्रकार के कृत्य करनें वाले पशु होते हैं क्योंकि पशु अज्ञानी है, उन्हें पाप पुण्य के भेद का ज्ञान नहीं होता।
मुनिपुंगव जगतपूज्य मुनि श्री सुधासागर महाराज ने उपरोक्त सीख देते हुए कहा कि जो सार्वजनिक पापकृत्य करते हैं या पाप करने के पश्चात छुपने छुपाने का प्रयास न करें वो अज्ञानी है पशु के समान है।
मध्यप्रदेश के सागर में श्रोताओं को पाप और पुण्य के भेद को समझाते हुए आपने कहा कि मेरी सीख ज्ञानियों के लिये है अज्ञानी पशुओं के लिये नहीं। ज्ञानियों में सुधरने की संभावना है क्योंकि वे ज्ञानवान हैं प्रज्ञावान नहीं हैं।
उन्हें ज्ञान वान से प्रज्ञावान बनना है। देश के दंड विधान में भी अपराधियों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। अपराधी को दंड देते हैं और प्रायश्चित कै माध्यम से सुधारने की प्रक्रिया का प्रावधान है। जैन दर्शन में भी पापाचरण करने पर प्रायश्चित के माध्यम से सुधरने सुधारने की विधि है।
आपने कहा कि व्यक्ति छुपकर पाप करता है या पाप कर छुपने का प्रयास करता है क्यों, क्योंकि उसे यह ज्ञान है कि उसका कृत्य विधिसम्मत नहीं है, सामाजिक परंपरा के विपरीत है।सामाजिक, शासकीय प्रताड़ना योग्य है,वो व्यक्ति ज्ञानी है,उसे इसकी समझ है। इसीलिए वो पापाचरण या तो छुपकर करेगा या करके छुपेगा। उसे ज्ञात है कि इस कृत्य का दंड भोगना पड़ सकता है।
जैनदर्शन प्रायश्चित के माध्यम से उसे सुधरने का अवसर देता है। कानून भी अपराधी को सुधारना चाहता है। महाराज जी ने बताया ये बहुत महत्वपूर्ण है,इसे समझो और सुधरने के अवसर का उपयोग कर स्वयं को सुधारो,सही राह पर चलो।
जैनदर्शन में रात्रि भोजन का निषेध है, रात्रि भोजन को मांसभक्षण बताया गया है।सभी जैन इस तथ्य से भलीभांति भिज्ञ हैं । इसका ज्ञान होने पर भी रात में भोजन करने वाले जैन श्रावक अपने मूल गुण से विमुख हैं। बुंदेलखंड मेरे गुरु आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की साधना स्थली है। वर्तमान युग के इतने महान संत की साधना स्थली के जैन श्रावकों को इसके गौरव की अनुभूति होना चाहिए और श्रेष्ठ श्रावक बनकर संसार के सामने उत्तम उदाहरण रखना चाहिए। महाराज जी ने कहा कि जिन घरों में आचार्य महाराज के चरण पड़े हैं वे घर, घर नहीं हैं मंदिर हैं, पवित्र स्थल हैं। जिन परिवारों ने आचार्य श्री को आहार दिया वे सौभाग्यशाली हैं,ऐसे घर परिवार के सदस्य या आहार दान देने वाले श्रावक रात्रि भोजन करते हैं तो संसार में उनसे बड़ा पापी कौन है ? महाराज जी ने आव्हान किया कि उन सभी को तत्काल रात्रि भोजन के त्याग का संकल्प ले लेना चाहिए और वे इस अवसर का उपयोग कर सुधर जायें,अन्यथा आचार्य श्री का यह शिष्य उन घरों परिवारों को चिन्हित भी कर सकता है। पिता के शेष कार्यों को पूरा करना पुत्र का दायित्व है और मैं आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का पुत्र हूं।
*वेदचन्द जैन*
*गौरेला (छ.ग.)*