पद्मपुराण पर आधारित रामकथा का समापन हर्षौल्लास के मंगलमय वातावरण में हुआ सम्मान समारोह सम्पन्न

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पद्मपुराण पर आधारित रामकथा का समापन हर्षौल्लास के मंगलमय वातावरण में हुआ
सम्मान समारोह सम्पन्न

( रामकथा का दसवां दिवस )

कोटा राजस्थान
विशिष्ट रामकथाकार,अनुष्ठान विशेषज्ञ, धर्म- चक्रकर्ती, ध्यान- दिवाकर, मुनिप्रवर श्री जयकीर्ति जी गुरुदेव रामपुरा स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान है कोटा (राजस्थान ) में विराजमान हैं। विगत 35 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार ने जानकारी देते हुवे बताया कि अकलंक स्कुल परिसर में रामपुरा में श्री रविषेणाचार्य विरचित पद्म पुराण आधारित प्रवाहमान जैन-रामकथा का हर्षौल्लास के वातावरण में समापन हुआ। इस अवसर पर रामकथा समापन एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया। अकलंक एसोसीएयन के अध्यक्ष पीयूष जैन बज सचिव अनिमेष जैन ने कि बताया मां जिनवाणी को पालकी में रखने का सौभाग्य महेंद्र कुमार जैन श्रीमति मुन्नीजैन अतुल शानू लक्षिता पाटनी परिवारजन को मिला । राजा श्रेणिक बनने का अवसर ऋषभ जैन श्रीमति सुनीता जैन चांदवाड़ परिवारजन को मिला।महेश जैन गंगवाल ने बताया कि गुरुदेव का पाद प्रक्षालन अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन युवा परिषद शाखा कोटा के पदाधिकारियों ने किया। आज समापन के अवसर पर रामकथा को सफल बनाने में अपना अविस्मरणीय योगदान देने वाले श्रावक श्रेष्ठी का भाव भी ना अभिनंदन कर सम्मानित किया गया। श्री पीयूष बज अकलंक स्कूल का समस्त स्टॉप नवीन लुहाड़िया महावीर ललित लुहाड़िया महाराष्ट्र से आए विद्या सागर जैन संगीतकार पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार दस दिनों के पुण्यार्जक परिवार फोटो ग्राफर संमति जैन सन्मति पाटनी सभी का गुरुदेव ने स्वयं अपने करकमलों से सिर पर तिलक लगाकर स्वागत किया राम सूत्र दिया। बाद में अल्पाहार की व्यवस्था महावीर ललित नवीन लुहाड़िया परिवार तलवंडी की ओर से की गई। मंगलाचरण पाठ राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार ने धर्म हो सच्चा साथी है जैसे दीपक बांती है सुनाकर श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। अकलंक स्कूल की दो बालिकाओं ने भक्ती भाव पूर्ण नृत्य किया। मुनिप्रवर श्री जयकीति जी गुरुदेव धर्मसभा को संबोधित करते हुवे ने कथानक को आगे बढ़ाते हुए कहॉ कि जो मनुष्य राम आदि के उत्तम प्रेरणादायी चरित्र को सुनते हैं उनके प्रति मन में अतिशय भक्ति एवं प्रमोद को धारण करते हैं उनका चिरसंचित पापकर्म हजार टुकड़े होकर नष्ट हो जाता है, हे विवेकी चतुर पुरुषों ! अपने अशुभ कर्मों को नष्ट करने के लिए एवं समीचीन मार्ग की प्राति के लिए इस परम पवित्र चरित्र का पठन – पाठन करो। राम आदि द्वारा महेन्होदय उद्यान में जाकर सर्वभूषण केवली भगवान के मुखारविन्द से धर्मोपरेश सुनते हैं एवं विभीषण की जिज्ञासा शांत करते हुए भगवान् राम आदि के पूर्वभवों का वर्णन करते हैं, अपने पूर्वभव सुनकर कृतान्त क्क्र सेनापति विरक्त हो जिनदीक्षा हेतु तत्पर होते हैं, राम उनसे कहते हैं कि तुम यदि इस भव से निर्वाण को पाओ तो अच्छा है यदि देव बनों तो संकट के समय मुझे प्रबोधन करने अवश्य आना तदनन्तर लक्ष्मण सीता आर्यिका माता को नमस्कार कर अनेक प्रकार से उनकी स्तुति एवं प्रशंसा करते हैं इधर भामण्डल राज्य – विषय भोगों में प्रवृत्ति को ही मनुष्य जन्म की सार्थकता समझकर उसमें ही आसक्त रहते थे, एक दिन वज्रपात के आघात से मरण को प्राप्त होते हैं.. संसारी जीव मैं ये कर चुका हूँ,ये कर रहा हू और ये करूँगा ऐसा सदा सोचता रहता है परन्तु मैं मरूंगा इस बात पर विचार नहीं करता हैं पुण्यशाली हनुमान कर्णकुण्डल नगर के जिनमदिर में विराजमान धर्मरत्न मुनिराज के भक्तियुक्त हो दर्शन करते हैऔर विचार करते हैं कि इस संसार में मैंने करने योग्य समस्त कार्य कर लिए है अब मैं जिनपथ पर चलकर निज आत्मा का कल्याण करूंगा, जो जिनदर्शन-पूजा-में लीन है ऐसे निर्मल चित्त के धारी मनुष्यों के लिए कोई भी कल्याण दुर्लभ नहीं है.. उन्होंने 750 राजाओं सह जिनदिक्षा धारण की एवं मुक्ति पाई सोधर्म इन्द्र के मुख से राम – लक्ष्मण के अटूट स्नेह की वार्ता सुन क्रीडा के रसिक दो देव कौतुहलवश लक्षमण को राम की मृत्यु की सुचना देत हैं,सुनते ही राम – अनुरागी लक्ष्मण मरण को प्राप्त होते हैं यह देख दोनों देव विषाद युक्त हो पश्चाताप करते है.. इज घटना से विरक्त लवकुश दीक्षा ले लेते हें..स्नेहासिक्त व्याकुल राम लक्ष्मण को सचेत करेने हेतु अनेक प्रयत्न करते हैं, मृत भाई को खिलाना – स्नान कराना- सजाना संगीत सुनाना आदि बालकवत चेष्टाएं करते हें.. जटायु एवं कृतान्तवक्र जो कि देव पर्याय में थे वे अविधज्ञान से राम कि चेष्टाए जान उनके पास आकर उन्हें प्रबोधित करते हैं जिससे राम शोक छोड सभी के साथ सरयु नदी के किनारे लक्ष्मण का दाह संस्कार करते हें.. मोह विरक्त राम का चित्त अनेक वैराग्यपूर्ण विचारों से युक्त हुआ.. गुरुभक्ति युक्त राम सुव्रत मुनिराज से सुग्रीव आदि अनेक राजाओं के साथ जिनलिंग को धारण करते हैं एवं गुरु से अनुमति ले एकाकी विहार करते हैं। निराबाध सुख की कामना से मुनि राम ने जो घोर तप किया उस तप का इस कलिकाल के मनुष्य ध्यान भी नहीं कर सकते हैं.सीता के जीव सीतेन्द्र द्वारा मोहवश योगिराज राम का ध्यान भंग करेने के समस्त प्रयत्न विफल रहे एवं मुनिराज राम को केवलज्ञान की विभूति प्राप्त हुई.. सीतेन्द्र ने केवली भगवान् से क्षमा मांगी.. आदि सुख -दुःख मय प्रेरक प्रसंगों का स्वरचित सुमधुर गीतों द्वारा वर्णन करते हुए गुरुदेव ने श्री राम आदि के चरित्र को सुनने एवं पढने का अदभूद- अनुपम फल बताया..दस दिवसीय जैन – रामकथा का उपसंहार करते हुए गुरुदेव सम्पूर्ण विश्व के मंगल की कामना की भवतु सव्व मंगलम।
प्रस्तुति
पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार
कोटा
9414764980

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