इंदौर। गुरु के बिना कुछ नहीं होने वाला लेकिन गुरु गुरु कहते रहने से भी कुछ नहीं होने वाला। तीर्थंकर बनने वाले जीव को भी गुरु की आवश्यकता होती हैं गुरु कुंभकार हैं जो अपने ज्ञान से शिष्य में छिपी योग्यता को प्रकट कर उसके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। दुनिया में संपत्तिसाली कितने भी हों लेकिन भाग्यशाली वो हैं जिनके पास गुरु हैं। गुरु बनाना तभी सफल होगा जब आप गुरु की गरिमा को अंतरंग और बहिरंग से दिखाते हो।
उक्त उद्गार आज गुरु पूर्णिमा के दिन आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री आदित्यसागरजी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचनबाग में गुरु की महिमा बताते हुए व्यक्त किए। मुनि श्री ने कहा कि गुरु शिष्य को मां की तरह पुचकारते हैं, पिता की तरह दुलारते हैं और आवश्यक होने पर बड़े भाई की तरह डांटते भी हैं। गुरु दूर दृष्टि होते हैं और सब जानते हैं कि शिष्य को कब हंसाना है और कब रुलाना है। जीवन में गुरु का होना आवश्यक है लेकिन बुद्धि पूर्वक गुरु उसे ही बनाना जिसके प्रति आपकी अटूट श्रद्धा हो और एक बार गुरु बनाने के बाद तब तक नहीं बदलना जब तक गुरु की समाधि ना हो जाए।
गुरु से कुछ छुपानाभी नहीं, गुरु के प्रति जितना गहरा श्रद्धान तुम्हारा होगा जीवन में सफलता भी उतनी अधिक होगी। शिष्य का कर्तव्य है कि वह गुरु की आज्ञा माने जिस दिन गुरु की बात नहीं मानी उस दिन होती है पक्के में हानी। शिष्य गुरु से प्राप्त ज्ञान को , चरित्र को जितना प्रकट करेंगे गुरु शिष्य से उतने ही प्रसन्न होंगे।
प्रारंभ में आजाद जैन, अरुण सेठी, आशा रानी पांड्या अमेरिका एवं उर्मिला गांधी ने आचार्य द्वय के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन किया एवं पंडित रतनलालजी शास्त्री के निर्देशन में आचार्य श्री विद्यासागरजी एवं विशुद्धसागर जी महाराज की संगीतमय पूजन भजन गायक मयूर जैन ने संपन्न कराई। इस अवसर पर आचार्य विशुद्धसागरजी एवं मुनि श्री आदित्यसागरजी, मुनिश्री अप्रमित सागर जी द्वारा रचित कृतियों का एवं ताड़ पत्र पर प्रकाशित भक्तांबर स्तोत्र का भी विमोचन श्री रितेश जैन, राजेश पांड्या परिवार,रामलाल जी,अशोक खासगीवाला डॉक्टर जैनेंद्र जैन एवं कमलेश जैन ने किया। धर्म सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।