संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा : हर साल की तरह इस साल भी स्कूल फीस और किताब-कॉपियों की कीमतों में मनमानी बढ़ोतरी, अभिभावक परेशान, बच्चे शिक्षा से हो रहे है दूर
जयपुर। प्रदेशभर के स्कूलों में 1 अप्रेल से नए सत्र की पढ़ाई प्रारंभ होना शुरू हो जाएगी, एक और जहां पढ़ाई शुरू होगी वही दूसरी तरह अभिभावकों पर शिक्षा का आर्थिक बोझ पढ़ने से चिंता की लकीरें भी देखने को मिल रही है। मामला प्रदेश के निजी स्कूलों को लेकर जहां स्कूल संचालकों ने हर सत्र की तरह इस सत्र में भी ना केवल स्कूल फीस में मनमानी बढ़ोतरी कर दी है बल्कि किताब, कॉपियां, ड्रेस इत्यादियोँ के दामों में भी भारी बढ़ोतरी कर दी है जिसको लेकर अभिभावकों में आक्रोश देखा जा रहा है साथ बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित भी नजर आ रहे है, अभिभावकों का कहना है ” आमदनी अठन्नी तो खर्चा 2 रु कैसे संभव हो ” एक तरह निजी स्कूल है जो हर फीस में बढ़ोतरी करते आ रहे है वही दूसरी तरह अभिभावक है जो निजी कम्पनियों में कार्यरत है जिसकी पिछले दो – तीन सालों में तनख्वा तक ने बढ़ोतरी नही हुई है। स्कूलों में बच्चे अवकाश लेते है तब भी पूरी फीस देनी पड़ती है किंतु एक कर्मचारी एक दिन का भी अवकाश ले लेता है तो एक दिन की सैलरी कट जाती है।
संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा की प्रदेश में निजी स्कूलों की फीस निर्धारण को लेकर बकायदा तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने वर्ष 2016 में फीस एक्ट बनाया था, जो फरवरी 2017 में प्रभाव में आ चुका था, इसके बाद इस कानून के खिलाफ निजी स्कूल कोर्ट चले गए थे जिसके बाद से लेकर दिसंबर 2020 तक यह कानून केवल तारीखों में उलझता रहा जिसके चलते अभिभावकों को इस कानून की जानकारी नही हुई। कोरोना काल के दौरान जब फीस को लेकर अभिभावक सड़को पर उतरे तब इस एक्ट की जानकारी लगी और अभिभावकों ने एकजुट होकर संयुक्त अभिभावक संघ का गठन किया साथ ही फीस नियंत्रण को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट ने स्कूल और सरकार के बीच चल रहे केश में संयुक्त अभिभावक संघ केविएट लगा अभिभावकों की और से पक्ष रखा जिस पर 18 दिसंबर 2020 को राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला आया था जिसमें कोरोना काल की फीस पर 40 फीसदी छूट का आदेश देने के साथ निजी स्कूलों में फीस एक्ट कानून लागू करने का आदेश दिया था, इस आदेश के खिलाफ निजी स्कूल एकत्रित हुए और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें भी संयुक्त अभिभावक संघ ने केविएट दाखिल पर अभिभावकों का पक्ष रखा जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई 2021 को अपना फैसला दिया था जिसमें भी फीस एक्ट लागू करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, इस आदेश पर निजी स्कूलों द्वारा पुर्नविचार याचिका दाखिल की गई थी जिस पर 1 अक्टूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट में मामूली सुधार कर कमेटी में कौन लोग शामिल हो सकते है उसको स्पष्ट कर 3 मई 2021 के फैसले को यथावत रखा था। किंतु सरकार और प्रशासन की लापरवाही, निजी स्कूलों की मनमानी के आगे कोर्ट और कानून दोनो लाचार साबित हुए आजतक निजी स्कूलों में फीस एक्ट की पालना सुनिश्चित नही हो पाई है और ना ही राजस्थान सरकार और प्रशासन ने एक्ट की पालना करवाई है। सरकार और प्रशासन के रवेये के चलते निजी स्कूलों को संरक्षण मिल रहा है और हर साल अभिभावकों पर मनमानी फीस का भार थोपा जा रहा है।
हर साल फीस बढ़ा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे है निजी स्कूल संचालक – अभिषेक जैन बिट्टू
संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की राजस्थान में निजी स्कूलों की मनमानी रोकने को लेकर फीस एक्ट कानून बना हुआ है, इस एक्ट के खिलाफ निजी स्कूलों ने सारे हथकंडे अपना लिए, राजस्थान हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक ने फीस एक्ट पालना सुनिश्चित करने के आदेश दे चुके है उसके बावजूद राजस्थान के निजी स्कूल संचालक कोर्ट के आदेश की अवमानना करते हुए हर साल मनमाने तरीके से फीस बढ़ा कर अभिभावकों पर शिक्षा का आर्थिक भार थोप रहे है, आज स्थिति इतनी विकट हो चुकी है की स्कूलों में जो किताबों की सेट डेढ़ – दो हजार रु में आता था आज उसी किताबों के सेट के 7 से 10 हजार रु तक वसूले जा रहे है केवल यही नहीं स्कूल ड्रेस तक में मनमानी फीस वसूली की जा रही है।
फीस एक्ट : प्रत्येक निजी स्कूल को बनाना होगा पेरेंट्स-टीचर एसोसियेशन उसके बाद 10 सदस्यों की स्कूल केवल फीस कमेटी का करना होगा गठन
अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया की फीस एक्ट कानून के अनुसार राजस्थान के प्रत्येक निजी स्कूल संचालक को हर सत्र में पेरेंट्स टीचर एसोसियेशन का गठन करना होगा, इसके मेंबर स्कूल के टीचर और अभिभावक रहेंगे, इसकी सदस्यता के लिए शहरी क्षेत्रों में 50 रु और ग्रामीण क्षेत्र में 30 रु फीस हर साल अभिभावकों और टिचरो को जमा करवानी होगी और स्कूल को सदस्यता की रसीद उपलब्ध करवानी होगी, सदस्यता पूर्व होने के पश्चात 15 अगस्त से पहले एसएलएफसी (स्कूल केवल फीस कमेटी) का गठन करना अनिवार्य होगा, इसमें कुल दस सदस्य मेंबर्स होते है जिसमें अध्यक्ष स्कूल का चेयरमैन होता है और सचिव स्कूल प्रिंसिपल रहते है 3 टीचर और 5 चुने हुए अभिभावक इसके सदस्य होते है। जो फीस निर्धारण कर सकते है। वर्तमान सत्र की फीस निर्धारण को लेकर स्कूल को एसपीएफसी के समक्ष पिछले सत्र में किए सभी खर्चों का ब्योरा रखना होता है जिसके आधार पर फीस तय की जा सकती है। खर्चों के आधार कमेटी 5 फीसदी अतिरिक्त बढ़ा सकती है। किंतु स्कूल प्रशासन ना खर्चों का ब्योरा दे रहा है इसके विपरित मनमाने तरीके से हर साल अभिभावकों पर जरूरत से ज्यादा फीस बढ़ाकर आर्थिक भार थोप रहे है। जबकि संविधान में अंकित है की स्कूल नो प्रॉफिट नो लॉस वाली संस्थाएं है, जो इसका पालन करेगे उन्ही स्कूलों को मान्यता दी जायेगी और जो पालन नहीं करता है उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। किंतु सरकार और प्रशासन की लापरवाही के चलते आजतक किसी भी निजी स्कूल संचालक पर कोई जांच की गई ना कार्यवाही की गई इसके उल्ट पिछले 5 साल में प्रदेश के 25 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद कर निजी स्कूलों का संरक्षण तक किया गया।