सर्वज्ञ प्रभु तीर्थकर देश ने लोक कल्याण के लिये लोक में उत्कृष्ट मंगल स्वरूप धर्म भी व्याख्या भी है। हम सभी मंगल चाहते हैं, अमंगल से बचना चाहते हैं। लेकिन जबतक मंगल का बोध नहीं होगा तब तक जीवन में अमंगल होता रहता है। संसारी होना ही हमारे भमंगल का द्योतक है। जिस दिन जीवन में मंगल आ जायेभा उस दिन ही संसार का नाश शुरू हो जायेगा। धर्म मंगल है तो अधर्म नमंगव हैं। आपका वर्तमान जीवक भौतिक सुख साधनी मे दौर से गुजर रहा है तो ये मत सोचा जीवन में मंगल है। जीवन में धर्म नहीं मयिणा तबतक मंगल नही होगा धर्मसमा के पूर्व दीप५००१० करते है, प्रतीक है जैसे दीप संधकार को नष्ट कर देता है उसी तरह गुरुवाळीज्ञानदीप हमारे अज्ञान अंधकार को नष्ट कर देश्या तीर्थकर ने अमंगल को इरकारी के लिये मंगल की शरण ली भोर नितीक उल्लभ भोग उपभोग को कुमरा दिया, परित्याग कर दिया बीथ ये गया कि अगर में इन भोगी में मासक्त बना रश था तो अमंगल होमा । यद्यपि उनका निर्माण निश्चित था लेकिन बादाने भव्यनीकी की मोक्षमार्ग का प्रवर्तन करने के लिये मोक्षमार्गको गृह कि वही धर्म उत्कृष्ट मंगल स्वरूप है जो महिरता से संयुक्त हो संती की देखकर नगर में उल्लास छा जोग है उल्लास उनके अहिंसा धर्म भी देखकर आता है। आपको देखकर उदारसी छा जाती है अहिंसा के होने पर ही संयम और तप भी उत्कुष्ट मंगल होते हैं. संयम ही अहिंसा से रहित ही वीवर संयम नहीं है। जैन को – अहिंसक समान कहा जाता है। यह नेवल हमारा है जी जम यूज कमर रहे से। हमसंती को कोई गाली भी दे न्ययेतो आशीवाद देते हैं- यह हमारी अहिंसा का प्रमाण पत्र है।
Unit of Shri Bharatvarshiya Digamber Jain Mahasabha