नववर्ष 2026 : आत्मजागरण और सामाजिक उत्तरदायित्व का संकल्प – डॉ सुनील जैन, संचय, ललितपुर

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भारत कैलेंडरों के मामले में कम समृद्ध नहीं है। इस समय देश में विक्रमी संवत्, शक संवत्, हिजरी संवत्, फसली संवत्, बांग्ला संवत्, बौद्ध संवत्, जैन संवत्, खालसा संवत्, तमिल संवत्, मलयालम संवत्, तेलुगु संवत् आदि अनेक प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत् विक्रमी और शक संवत् हैं। सबसे प्राचीन संवत् की बात की जाय तो सबसे प्राचीन संवत् जैन संवत्- वीर निर्वाण संवत् है, इसके पुख्ता प्रमाण भी हैं। जैन परंपरा में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाणोत्सव के अगले दिन से नए वर्ष का शुभारंभ माना जाता है।
   पश्चिम से आये अंग्रेजी वर्ष को आज दुनिया में सर्वाधिक लोग मनाते हैं। देखा जाता है कि पहले दिन का स्वागत  भोग, विलास के आयोजनों से करते हैं। इस दिन खासतौर से हमारा युवा वर्ग न जाने कितने अनैतिक कार्यों में लिप्त होकर इसका स्वागत करता है। जबकि होना यह चाहिए कि हम नव वर्ष का स्वागत नए संकल्प और अच्छे कार्यों के साथ करें। इस दिन को पूजा, प्रार्थना और परोपकार के कार्यों लगाना चाहिए ताकि पूरा वर्ष हमें एक नई दिशा दिखाए। हम कलेण्डर बदलें अपनी संस्कृति और सभ्यता न भूलें।
नववर्ष केवल कैलेंडर बदलने की औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह आत्मावलोकन, आत्मशुद्धि और आत्मोन्नति का पावन अवसर है। वर्ष 2026 का स्वागत करते हुए जैन समाज के लिए यह क्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज का समय हमसे केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि आचरण, विवेक और सामाजिक उत्तरदायित्व की अपेक्षा करता है।
 आत्मा की पवित्रता ही सर्वोच्च साधना है। नववर्ष 2026 हमें यही प्रेरणा देता है कि हम बाह्य आडंबर से आगे बढ़कर अंतरंग साधना, संयम और करुणा को अपने जीवन का आधार बनाएं।
आत्मसंयम : नववर्ष का प्रथम संकल्प
जैन जीवन-दर्शन का मूल स्तंभ है—संयम। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में इच्छाएँ बढ़ रही हैं, पर संतोष घट रहा है। नववर्ष 2026 पर जैन समाज को यह संकल्प लेना होगा कि—
जीवन में आवश्यकता और संग्रह की सीमा तय करें। भोग नहीं, योग की संस्कृति को अपनाएं।अपरिग्रह को केवल व्रत नहीं, बल्कि व्यवहार बनाएं। संयम केवल उपवास या त्याग तक सीमित नहीं है, बल्कि वाणी, विचार और व्यवहार की शुद्धि का नाम है।
अहिंसा : केवल सिद्धांत नहीं, सामाजिक आचरण अहिंसा जैन धर्म की आत्मा है। पर आज आवश्यकता है कि अहिंसा को व्यवहारिक जीवन में उतारा जाए—शब्दों की हिंसा से बचना।सोशल मीडिया पर मर्यादा रखना। वैचारिक असहिष्णुता से ऊपर उठना।
नववर्ष 2026 में जैन समाज यदि सहनशीलता, संवाद और सौहार्द का उदाहरण प्रस्तुत करता है, तो वह न केवल धार्मिक समाज, बल्कि मानवता का मार्गदर्शक समाज बनेगा।
युवा पीढ़ी : संस्कार और संस्कृतियों की सेतु –
जैन समाज की सबसे बड़ी पूँजी उसकी संस्कारवान युवा पीढ़ी है। आज आवश्यकता है कि—युवाओं को केवल सफल नहीं, संवेदनशील बनाया जाए। शिक्षा के साथ संस्कार-शिक्षा को जोड़ा जाए, और जैन दर्शन को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत किया जाए।
नववर्ष 2026 पर यह संकल्प लिया जाए कि हर परिवार, हर संघ, हर संस्था युवा मार्गदर्शन और संस्कार निर्माण को अपनी प्राथमिकता बनाए।
धर्म से प्रभावना, प्रभावना से प्रेरणा जैन धर्म आत्मकल्याण के साथ-साथ लोककल्याण का मार्ग दिखाता है। नववर्ष पर समाज को चाहिए कि सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाए। जरूरतमंदों के लिए करुणा आधारित योजनाएँ विकसित करे। धर्म को केवल उत्सव नहीं, जीवन-पद्धति बनाएं। सच्ची प्रभावना वही है, जहाँ हमारा आचरण ही हमारा उपदेश बन जाए।
नववर्ष का सामूहिक संकल्प : आइए, नववर्ष 2026 पर जैन समाज यह सामूहिक संकल्प ले—
मैं अधिक संयमी, कम संग्रहकर्ता बनूँगा।
मैं अहिंसा को विचार से व्यवहार तक उतारूँगा।
मैं समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व निभाऊँगा। मैं अपने धर्म को गर्व से ही नहीं, गरिमा से  भी जियूँगा।
अफसोस हमारा युवा वर्ग पश्चिमी आवोहवा इतना बह गया है कि वह अपना विवेक खोता जा रहा है।
पश्चिमी संस्कृति हमारे संस्कारों का गला घोंट रही है।आज हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागे जा रहे है। अंग्रेजी सभ्यता में गुम होकर अपने गौरव व सांस्कृतिक मूल्यों को खोते जा रहे है।
नववर्ष 2026 जैन समाज के लिए आत्मजागरण का वर्ष बने—जहाँ धर्म केवल ग्रंथों में नहीं, जीवन में दिखे; जहाँ साधना केवल मंदिरों में नहीं, व्यवहार में झलके; और जहाँ जैन समाज विश्व को शांति, संयम और सह-अस्तित्व का मार्ग दिखाने वाला समाज बने।जिनवाणी के आलोक में, मानवता के हित में—यही नववर्ष का संदेश है।
नया साल नहीं बदलेगा, जब तक मन न बदले,
जिनवाणी के दीप जलेँ, तो अंधियारे टले।
संयम, सत्य, करुणा लेकर, बढ़ता जाए समाज,
नववर्ष 2026 बने, शांति का नव-राज।

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