“मेरी भावना” को शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये
✍️पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार
भारत वर्ष में अनेकानेक दिव्य महापुरुषों ने समय समय पर जन्म लेकर लोगों में नव चेतना का संचार किया है। जैन धर्म दर्शन के प्रख्यात लेखक विद्वान कवि स्वर्गीय जुगल किशोर जी मुख्तार “युगवीर” कालजयी रचना ” मेरी भावना” जीवन को जीवंत करने वाला जीवन शास्त्र है। मेरी भावना में “सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामया” और मानव कल्याण की भावना निहित है ।आज भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के समस्त विद्यालयों महाविद्यालयों शिक्षण संस्थाओं में “मेरी भावना” को प्रार्थना के रूप में बोला जाना चाहिए। मेरी भावना को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। “मेरी भावना” का तात्विक विश्लेषण किया जाए तो इसके एक एक शब्द में गागर में भरा हुआ है एक एक शब्द बहुमूल्य है विद्यार्थियों को इन शब्दों की व्याख्या के इसके महत्व पर प्रकाश डाला जाए। इससे विद्यार्थी अपने अनमोल जीवन के एक एक क्षण का महत्व समझ सकेंगे।”मेरी भावना” कृति से जीवदया, जीवरक्षा सामाजिक बुराइयों से दूर रहने की प्रबल इच्छा शक्ति जागृत होगी उनमें नैतिकता, विश्वबंधुत्व, सहिष्णुता, सामाजिक, परोपकार की भावना जागृत होगी। “मेरी भावना” नर से नारायण, पाषाण से परमात्मा, तीतर से तीर्थंकर, फर्श से अर्श की यात्रा का नाम है । यदि सच्ची श्रद्धा से प्रतिदिन “मेरी भावना” को बोला जाए तो उससे प्रकृति में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । “मेरी भावना” से जीवन जीवंत हो जाता है। “मेरी भावना” सभी जाति देश समाज भाषा की सीमा से उन्मुक्त मानव से महा मानव की महायात्रा है । आज के विश्व युद्ध के अराजकता पूर्ण वातावरण में “मेरी भावना” से नकारात्मक ऊर्जा का पर प्रभाव खत्म होगा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। आज कल के बच्चों का सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से बचना बहुत मुश्किल है।आज फास्ट फूड का जमाना है। इस ओर बच्चे तेजी से अग्रसर हो रहे है । इस फास्ट फूड के सेवन से छोटी सी उम्र में बड़ी बड़ी बीमारियां के शिकार हो जाते है।प्रकृति की सभी विरासत ये सूर्य, चंद्रमा, वन, उपवन, जंगल, पेड़, पौधे, सागर, नदी सभी हमें देना सिखाती है। प्रकृति साथ रहना चाहिए प्रकृति में यदि विकृति पैदा करेंगे तो फिर उसके दुष्परिणाम अतिवृष्टि अनावृष्टि ओलावृष्टि भुखमरी महामारी कोरोना सुनामी भूकंप ज्वालामुखी के रूप में भुगतना पड़ेंगे। संसार एक प्रतिक्रिया है जो दोगे वो मिलेगा जैसी करनी वैसी भरनी वाला सिद्धांत लागू है। मानव पंच तत्वों से मिलकर इस धरती पर आता है ओर जब अंत समय में मारता है तो भी पंच तत्वों में विलीन हो जाता है। यह सत्य है इसको नकारा नहीं जा सकता।मानव को अपनी सोच जीवन पर्यंत सकारात्मक रखनी चाहिए। इसका जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। “नजरे अपनी बदलो नजारे बदल जायेगे सबको अपना मानो सब आपके हो जायेगे”।सबसे पहले सोच बदले भगवान महावीर स्वामी ने कहा हैं कि संसार को मत बदलो स्वयं को बदलो संसार को मत सुधारो स्वयं सुधर जाओ । मैं पत्रकार राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” कोटा “मेरी भावना” पर जितना भी लिखूं कम ही होगा। मेरे शब्द कोश में शब्द नहीं है जिस दिन इस विश्व के प्रत्येक व्यक्ति में मेरी भावना अंतर्मन में समा जाएगी उस दिन धरती स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर हो जाएगी। अंत में “मेरी भावना” कृति की पंक्तियों के साथ । “मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवो से नित्य रहे दिन दुखी जीवो पर मेरे उर से करुणा स्त्रोत बहे”
प्रस्तुति
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा
9414674980