जैन धर्म मे मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनाया जाता है – आचार्य वसुनंदी महाराज
बॉलखेड़ा (मनोज नायक) जैन दर्शन के अनुसार मृत्यु को महोत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है । जिसे उत्तम समाधि मरण कहा जाता है। प्रत्येक श्रमण व श्रावक यही भावना भाता है कि उसका अंत समय गुरु चरणों मे समाधि मरण के साथ हो। जैन सन्त उपसर्ग, दुर्भिक्ष या शरीर के कृश अर्थात बुढापा आ जाने पर समता भाव से शनै शनै समाधि की ओर प्रवत्त होकर समाधि मरण को प्राप्त करते हैं । यही उत्कृष्ट है । उक्त उद्गार जम्बूस्वामी तपोस्थली पर आचार्य वसुनंदी महाराज ने मुनि विजयानंद महाराज के समाधि मरण पर व्यक्त किये।
तपोस्थली के प्रचार प्रभारी संजय जैन बड़जात्या ने अवगत कराया कि आचार्य वसुनंदी महाराज के शिष्य मुनि विजयानंद महाराज ने समाधि पूर्वक मरण को प्राप्त किया तो वही तपोस्थली पर जैन श्रावकों ने अंतिम डोल यात्रा निकाल कर आचार्य संघ सानिध्य में दिवंगत मुनि के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी। मुखाग्नि क्षेत्र के अध्यक्ष रमेशचंद्र गर्ग दिल्ली व अजय जैन पश्चिम विहार दिल्ली द्वारा दी गई।
समाधि से पूर्व हुई दिगम्बर मुनि दीक्षा समाधि मरण से पूर्व क्षुल्लक विजयानंद महाराज सीकरी में उपाध्याय वृषभा नंद महाराज के संघ में विराजमान थे जिन्हें बोलखेड़ा क्षेत्र पर लाया गया। जहां चेतन अवस्था मे आचार्य वसुनंदी महाराज द्वारा संघ की उपस्थिति में दिगम्बर मुनि के संस्कार प्रदान कर दीक्षा प्रदान की गयी तो क्षुल्लक से मुनि विजयानंद नामकरण किया गया।
बड़े धार्मिक विचारों के थे दिवंगत मुनि 80 वर्षीय सन्त ग्रहस्थ अवस्था मे भी बड़े धार्मिक विचारों के थे मुनि प्रज्ञानंद महाराज ने बताया कि अपने जीवन काल मे 138 वन्दना सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र व लगभग 51 वन्दना गिरनार सिद्धक्षेत्र की कर चुके हैं। भिंडर निवासी अंबालाल ने पिता रिखब दास व माता मोहन बाई के आंगन में जन्म लिया। जिन्होंने वर्ष 2021 में आचार्य से तारंगा सिद्ध क्षेत्र गुजरात में क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त कर संयम के मार्ग पर अग्रसर हुए थे। अंतिम यात्रा में सीकरी,कामां, पलवल,दिल्ली, महवा आदि स्थानों से जैन श्रद्धालु सम्मिलित हुये।