उधार धन देना प्रेम की कैंची होती हैं .किसी से दुश्मनी लेना हो तो धन का लेनदेन करके देख लो .उधार देने से ग्राहक जाता हैं और पैसा वापिस नहीं मिलता .और भी कहा जाता हैं की झगडे की जड़ तीन –ज़र, जोरू, ज़मीन .
जैन मुनि जो मन वचन काय से ,चार कषायों ( क्रोध,मान ,माया, लोभ कृत ,कारित, अनुमोदन
और संरम्भ ,समारम्भ ,आरम्भ यानी १०८ प्रकार की हिंसा को त्याग कर महाव्रतो –अहिंसा ,सत्य ,अचौर्य ,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन कर अपना जीवन आत्म साधना में लगाते हुए स्व -परकल्याणक करने में रत रहते हैं .वे सूर्य के प्रकाश में ६ फ़ीट दूर तक कोई जीव न आये का ध्यान रखकर विहार करते हैं .किसी जीव की हिंसा न होने पाए यानी हर जीव में आत्मा होने से उसके प्रति समानुभूति रखते हैं .वे कभी भी किसी भी सूक्ष्म जीव तो क्या मानव को कष्ट नहीं देते हैं ,उनकी नियमित दिनचर्या रहती हैं .उनको सांसारिक प्रपंचों से कोई मतलब नहीं रहता हैं .वे धर्माराधना में लगे रहते हैं .
मुनि श्री कामनंदी महाराज जी ने ट्रस्ट का पैसा ट्रस्ट में (विश्वास में )जरुरत मंद को उसके विश्वास में दिलवाया .चूँकि ट्रस्ट का पैसा होने से उधार लेने वाले व्यक्ति से समयानुपरांत पैसा लौटाने का आग्रह किया होगा .उन्होंने निर्लिप्त भाव से पैसा जमा कराने के लिए बोलै होगा .जबकि दिया गया पैसा ६वर्ष पुराना हो चूका था .इस बात पर आक्रोशित होकर उस मुस्लिम शख्स ने संस्था में कार्यरत माली को विश्ववास में लेकर उनके साथ विश्वासघात किया और रात्री के समय जब मुनि श्री सूर्यास्त के उपरांत मौन धारण कर ,बिना प्रकाश के जिससे जीव हिंसा न होने एक स्थान पर रहकर आत्मसाधना में तल्लीन रहते हैं उस समय दोनों ने मिलकर साज़िश अनुसार उनको पहले बिजली के करंट से उनको मारा और मार डाला .उसके बाद उन दोनों ने मिलकर उनके टुकड़े टुकड़े कर दूरस्थ स्थानों में और बोरवेल में डाला .सुबह दोनों लोगों के नाटकीय अंदाज़ से उनके गुमने या लापता होने का विवरण बताया .और अंत में उनके द्वारा हत्या करना और हत्या का कारण बताया .
यहाँ अब यह यक्ष्य प्रश्न जैन समाज के साथ मानव समाज के सामने खड़ा हैं .क्या मानवीयता के आधार पर किसी की मदद करना क्या अपराध हैं .?दी हुई राशि वापिस लेना गुनाह हैं .मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं वह जैन दर्शन के आधार पर” परस्परोपग्रहो जीवनाम “का पालन करना बताया हैं .इस दुखद घटना ने न केवल जैन समाज वरन समस्त मानवीयता को झकझोर दिया .
आज हमारी जैन समाज जिसके गुणगान और महिमा करते हम थकते नहीं हैं ,सबसे उच्च शिक्षित समाज और व्यापारिक और नौकरी में भी उच्चतमश्रेणी में हैं के सामने कई प्रश्न चिन्ह खड़े हैं -जैसे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज श्री मुनि पुनवं श्री सुधासागर जी महाराज ,मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ,आचार्य श्री आर्जव सागर जी महाराज .आचार्य निर्भय सागर जी महाराज ,आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज ,आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज आचार्य श्री प्रमुख सागर जी महाराज और सभी संघों के आचार्य, मुनि ,आर्यिकायें दिन रात समाज को आगाह और चेतावनी भी देते हैं कि हमे आर्थिक समृद्धि के साथ धार्मिक शिक्षा दी जाना अत्यंत आवश्यक हैं .पर हमें उनकी शिक्षा चिकने घड़े के समान लगते हैं और एक कान से सुना और दूसरे कान से उड़ाया .धार्मिक शिक्षा न होने से जैन धर्म के संस्कार नहीं मिलने से वे भौतिक चकाचौंध में डूबे हैं .
गांवों से निकल कर कसबे में ,कसबे से शहर ,शहरों से महानगरों में और उसके बाद विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर जा रहे हैं .जैन धर्म में पाठशालाओं से बुनियादी शिक्षा दे कर उनको धर्म के बुनियादी शिक्षा का बीजारोपण होता था .विगम चालीस वर्षों में टी .वी संस्कृति के पाठशालाओं की संस्कृति तो तहस नहस कर दिया .इसके बाद मोबाइल लेपटॉप में हमारे घरों में ऐसी सेंधमारी की अब पूरी दुनिया मुठ्ठी में हो गयी और इंटरनेट ने हमारे दिलो दिमाग को हृदयहीन बना दिया .
प्रश्न इस बात का नहीं हैं कि तकनिकी को हम रोक नहीं सकते पर उनका अपना हितकारी उपयोग करना आवश्यक हैं ,पर जैन धर्म दो धारों पर नहीं चल सकता हैं .धार्मिक से मतलब हमें सदाचरण और नैतिक शिक्षा ग्रहण करो और जो जितना अपने अनुकूल हो उसे अंगीकार करो .
आज स्थिति प्राचीन जैन मंदिरों और धरोहरों की स्थिति बहुत दयनीय हैं उनका संरक्षण कैसे होगा यह समझ से परे हैं ,जो धार्मिक क्षेत्र और शहरी मंदिरो पर भी जहाँ जैन समाज कम हैं उन पर भी जैनेतर लोगों की कुटिल निगाह लगी हुई हैं .और नव निर्वाण अबाध रूप से बहुत ही भव्यतम रूप से बनने के कारण अन्य समाज में ईर्ष्या का भाव आता हैं .
वैसे जैन समाज की जनसँख्या बहुत कम हैं ,उसके बाद विजातीय शादियों के कारण वे लोग समाज से जुड़ने से डरते हैं या वे स्वीकारता नहीं कर पाते हैं .उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के लड़किया नौकरी के लिए महानगरों में जाकर बस रहे हैं या विदेशों में स्थापित हो रहे हैं .उन नवयुवकों के बच्चों के देखभाल के लिए सेवानिवृत्त या वृद्ध माता पिता उनकी तीमारदारी के लिए अपने पैतृक /जन्मभूमि को छोड़कर उनके यहाँ स्थापित हो रहे हैं .नयी जगह में और समाज /मंदिर दूर दूर होने से और एक दूसरे से अपरिचित होने से सामाजिकता कम होने लगती हैं जो बहुत ही विचारणीय और चिंतनीय विषय हैं .
उच्च शिक्षित होने के कारण धर्म से विमुख होने के कारण धर्मस्थानो का रखरखाव अन्य समाज के हाथों में होने से समय पाकर उनकी जड़ें इतनी गहरी हो जाते हैं की वे ही उन स्थानों के सर्वेसर्वा बन जाते हैं .जैनेतर बाद में समस्त जानकारियां और व्यवस्थाओं को जानकार पदाधिकारियों के आदेशों को अवहेलना करते हैं या फिर उनका अधिपत्य होने लगता हैं .समाज कम संस्थाएं अधिक .
एक और बहुत ही चिंतनीय पहलु हैं हमारी समाज में स्थानीय समिति ,जिला स्तरीय समिति ,प्रादेशिक समिति .राष्ट्र्रीय समिति और अंतर्राष्ट्रीय या अखिल विश्व समिति बनी हैं और कोई भी समिति अपने आप में सम्पूर्ण हैं और कभी एक साथ एक मंच पर बैठने तैयार नहीं हैं और सब समाज सुधार के लिए कृतसंकल्प हैं .हमे नेता नहीं नागरिक चाहिए .
विषय बहुत और विचारणीय हैं .इस घटना की बहुत ही कड़े शब्दों से निंदा करते हुए कर्णाटक सरकार से निवेदन और अपेक्षा हैं की दोषियों को शीघ्र नियमानुसार दण्डित किया जावे शीघ्र और आगे इस प्रकार के घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों से निवेदन हैं की अहिंसक जैन समाज को नियमानुसार समुचित सुरक्षा दी जावे .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू,नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753
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