भिंड नगर के लशकर रोड पर स्थित श्री महावीर कीर्ति स्तंभ जैन मंदिर मै विराजमान मुनि श्री विनय सागर एवं छुलक श्री विधये सागर जी महाराज के सानिध्य मै श्रावक संस्कार शिविर चल रहा है जिसमे मुनि श्री ने कहा सच्चे मन से कषाय और मिथ्यात्व का त्याग करना उत्तम त्याग धर्म है। आत्म शुद्धि के उद्देश्य से क्रोध, मान, माया और लोभ आदि विकारी भावों को छोडऩा तथा स्व और पर के उपकार की दृष्टि से अपने उपभोग के धन-धान्य आदि पदार्थों का सुपात्र को दान करना भी त्याग धर्म है।दसलक्षण धर्म के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म की महत्ता बताते हुए मुनि श्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि व्यवहार में आज हम सभी त्याग को दान समझने की भूल कर रहे हैं। त्याग धर्म का लक्षण है और दान पुण्य की प्रकृति है। आचार्यों द्वारा आहार, औषध, अभय औऱ ज्ञान को दान के प्रकार बताया है। आहार दान मुनि, आर्यिका, क्षुल्लक, क्षुल्लिका जी सहित उन सभी पात्रों के लिये उचित बताया है जो स्वयं भोजन नहीं बना सकते। मुनि आदि व्रती त्यागियों के रोगग्रस्त हो जाने पर निर्दोष औषधि देना, चिकित्सा की व्यवस्था एवं सेवा सुश्रुषा करना औषध दान होता है। इसी तरह अभय दान प्राणी को जीवन दान देने और ज्ञान दान शिक्षा या पठन पाठन में योगदान को कहा है। जो जीव अपनी प्रिय वस्तु से राग या ममत्व भाव छोड़कर उसे किसी अन्य की जरूरत या सेवा के लिए समर्पित कर देता है, उसे श्रेष्ठ दान कहा गया है। मुनि श्री का 04 दिन के उपवास के बाद आज पारणा कीर्तिस्तंभ मंदिर में हुआ!
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