हम सभी जीव है आत्मा है, हम अपने अन्दर ही गुण सम्पदा को समाये हुए हैं। फिर भी आरिवर कारण क्या है जो हम अपने गुणों का अनुभव नहीं कर पाते ? कारण है, हमारी ही अज्ञानता के कारण राग-द्वेष को भला मानना । जो प्राणी राग-द्वेष को भला मानता है वह प्राणी अपराधी है। इन राग-देव की निवृत्ति के लिए ही साधुजन चारित्र को धारण करते हैं। ऐसे रागद्वेष रहित साधुजनों का स्वाभाविक जीवन स्वयं वुन साधु के लिए तथा अन्य सभी प्राणियों को सहज स्वाभाविक रूप से कल्याणकारी है।
मनुष्य अपने जीवन में रहने के लिए गृह निर्माण कराता है, उसमें उत्तमोनाम पदार्थ लगाता है, उसे अच्छे से अच्छा बनाने का प्रयास करता है। ध्यान सतना, मनुष्य जन्म प्राप्त करके यदि आप अपना पुण्य जिनमंदिर निर्माण में लगाते हैं तो निश्चित ही आपके जीवन सभी प्रकार की अनुकूलतायें बनती चली जायेंगी। अपने गृह का निर्माण तो सब कराते हैं, सौभाग्यशाली पुण्यात्मा रही है जो जिनमंदिर के जीर्णोद्वार अथवा निर्माण में अपना तन-मन-धन समर्पित करता है।
बन्धुओं ! आपने अनेकों पर्यायें अर्थात शेष धारण किये होंगे लेकिन क्या आपने रत्नत्रय पर्याय धारण की है ? ध्यान रखना, यह रत्नत्रय पर्याय ही मुनि दशा की पर्याय कहलाती है। मैंने मुनि दशा धारण की है है, बाहरी सब धन- वैभव का परित्याग किया है। क्यों? क्योंकि अब मेरी नजर में आपका सब धन- वैशव एकमात्र धूल है। मैं ताल ठोककर कह सकता हूँ कि तुम्हारा बाढ्य-वैभव मात्र धूल ही है। लेकिन आप में वह सामर्थ्य नहीं है कि आप सब श्रावक हमारे वैभव को धूल कह सको। आप यही कहते हो – गुरुदेव आप ही तीन लोक की सर्वोत्कृष्ट सम्पदा प्राप्त करने के अधिकारी है। आप ही सर्वोत्तम वैभव के धारी हैं। आपका प्रश्न हो सकता है – गुरुदेव ! हम अपने धन (धूल) का सदुपयोग कैसे करें ? बन्धुभो ! अपने धन का सदुपयोग विजय कुमार जैन (बड़ड्माड़ई परिवार) रहे हैं, अपने साथ -साथ अनेकों ने किया है, जो स्वयं तो धर्मानुष्ठान कर ही रहे साथ ही भव्य-आत्माओं को भी धर्म-ध्यान करने में निमित्त बन रहे हैं!
दीक्षार्थी भव्यात्माओं का हुआ गोद भराई का मांगलिक आयोजन =
भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज के सानिध्य में चल रहे श्री 2008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान के मध्य आचार्य श्री की दिव्य देशना के पश्चात् जिनदीक्षा अंगीकार करने वाले दीक्षार्थियों की गोद भराई की गई। 8 नवम्बर 2023 को टीकमगढ़ के समीपस्य बड़ागांव क्षेत्र पर मुनि श्री विश्रांत घागर जी द्वारा तीन जिनदीक्षायें प्रदान की जा रही है। उन्हीं दीक्षार्थियों की गोर- भगई का मांगलिक आयोजन मान्धार्य संघ के सानिध्य में किया गया।