मुनि दीक्षा दिवस विशेष – परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज

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परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज का जन्म सन 1949 में अगहन बदी पंचमी तदनुसार 10 नवम्बर 1949 को ग्राम बरवाई, अम्बाह, जिला मुरैना (म.प्र.) में हुआ था। आपने सन 1972 में फाल्गुन शुक्ल तृतीया तदनुसार 17 फरवरी 1972 को आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज के कर-कमलों द्वारा शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर क्षुल्लक श्री 105 सन्मति सागर जी महाराज नाम पाया। क्षुल्लक अवस्था में ही आपने अपने ज्ञान के बल पर समस्त श्रमण संघों में एक विशिष्ट स्थान बनाया था। तप-त्याग-साधना के मार्ग पर अविरल बढ़ते हुए आपको लंगोट व दुप्पट्टा भी भार स्वरुप लगने लगा। अतः आप सन 1988 में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (महावीर जयंती) तदनुसार 31 मार्च 1988 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी (म.प्र.) में मुनि दीक्षा अंगीकार कर आत्म-कल्याण के मार्ग पर आरुढ़ हुए| मुनि रूप में आपने दिगम्बर मुनि की चर्या, उनके मूलगुणों की साधना तथा उनके तपश्चर्या के विविध आयामों से जैन समाज को परिचित करवाया।

छाणी परंपरा के प्रमुख संत व आचार्य श्री के प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने मुनि दीक्षा दिवस के अवसर पर उनके चरणों में अपनी विनयांजलि अर्पित करते हुए बताया कि आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज का नाम श्रमण परंपरा के गौरवशाली इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। आपकी मुनिचर्या सदा आगमोक्त रही तथा तप व संयम की निरंतर साधना के फलस्वरूप आप राष्ट्र-ऋषि के रूप में प्रख्यात हुए। आपके उपदेशों से अनेक आर्षमार्गानुयायी ग्रंथों का प्रकाशन हुआ। आपने अपने जीवन काल में समस्त भारत में व विशेषतः उत्तर भारत में सतत विहार करते हुए अद्वितीय धर्मप्रभावना संपन्न की। सन 1994 में सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी, जिला दतिया (म.प्र.) में आपने जैन जगत का अद्वितीय कार्य कर दिखाया जब लाखों की भीड़ के मध्य आपने सिंहरथ चलाकर नया कीर्तिमान स्थापित किया।

विश्व की प्रथम कृति त्रिलोक तीर्थ धाम (बड़ागांव) का निर्माण आपकी विलक्षण सोच व प्रतिभा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। आपके संस्कारित प्रवचनों व संघ सञ्चालन कुशलता को परखते हुए गुरुवर आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज ने आपको मुनि दीक्षा के साथ ही आचार्यकल्प के पद पर आसीन किया तथा लगभग 1 वर्ष पश्चात ही 10 अप्रैल 1989 को चतुर्विध संघ की उपस्तिथि में नरवर (म.प्र.) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के मध्य आचार्य पद से सुशोभित कर आपको प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) की परंपरा में पंचम पट्टाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया। आपके धर्मप्रेरक उपदेशों से प्रभावित होकर समाज ने अनेक विद्यालय, धर्मपाठशालायें, वाचनालय, साधना आश्रम तथा साहित्य प्रकाशक संस्थाओं की स्थापना की। आप एक कुशल जौहरी थे जिन्होंने आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज जैसे अनमोल रत्न को परख कर उन्हें मोक्षमार्ग के दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में तराशा तथा स्वयं अपने वरद-हस्त से एलाचार्य पद प्रदान कर अपनी विशेष स्नेहरूपी कृपा बरसाई।

सन 2013 में फाल्गुन शुक्ल तृतीया तदनुसार 14 मार्च 2013 को शकरपुर (दिल्ली) में आपने समाधिपूर्वक मरण कर इस नश्वर देह का त्याग किया। पूज्य आचार्य श्री का जितना विशाल एवं अगाध व्यक्तित्व था, उनका कृतित्व उससे भी अधिक विशाल था। आचार्य श्री के कर-कमलों द्वारा अनेक भव्य जीवों ने जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर अपना जीवन धन्य किया जिनमें वर्तमान में आचार्य श्री अतिवीर जी, आचार्य श्री गुलाब भूषण जी, एलाचार्य श्री त्रिलोक भूषण जी, एलाचार्य श्री प्रभावना भूषण जी, मुनि श्री शिव भूषण जी, आर्यिका श्री मुक्ति भूषण जी, आर्यिका श्री लक्ष्मी भूषण जी, आर्यिका श्री सरस्वती भूषण जी, आर्यिका श्री सृष्टि भूषण जी, आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण जी, आर्यिका श्री दृष्टि भूषण जी, आर्यिका श्री अनुभूति भूषण जी, क्षुल्लक श्री योग भूषण जी, क्षुल्लिका श्री भक्ति भूषण जी, क्षुल्लिका श्री पूजा भूषण जी आदि त्यागीवृन्द साधनारत हैं| इस गौरवशाली महान परम्परा में वर्तमान में सहस्त्राधिक दिगम्बर साधु समस्त भारतवर्ष में धर्मप्रभावना कर रहे हैं तथा भगवान महावीर के संदेशों को जनमानस तक पहुंचा रहे हैं।

संकलन – समीर जैन (दिल्ली)

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