मुंबई, 10 जनवरी 2025: के. जे. सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ धर्मा स्टडीज के जैन अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुंबई में 6 से 10 जनवरी 2025 तक “जैन न्याय” विषय पर एक पंचदिवसीय कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया । इस कार्यशाला का आयोजन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अनुदान सहयोग से किया गया ।
कार्यशाला में आमंत्रित श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से प्रो. अनेकांत कुमार जैन और जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के पूर्व प्रोफेसर डॉ. धर्मचंद जैन ने विशेषज्ञ के रूप में जैन न्याय के दो प्रमुख ग्रंथों – अभिनव धर्मभूषण यति द्वारा रचित “न्यायदीपिका” और आचार्य माणिक्यनंदी द्वारा प्रणीत “परीक्षामुखसूत्र” का तार्किक एवं रोचक शैली में गहन अध्ययन करवाया । इस कार्यशाला में 51 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिन्हें इन ग्रंथों की मूल प्रतियां प्रदान की गईं, जिससे वे उनका प्रत्यक्ष अध्ययन कर सकें । कार्यशाला के दौरान प्रतिदिन प्रातः 11:00 से 1:00 और अपराह्न 2:00 से 4:00 तक दो सत्र आयोजित किए गए ।
उद्घाटन सत्र का शुभारंभ केंद्र के छात्रों द्वारा मंगलाचरण से किया गया । संस्थान के डीन, डॉ. अभिषेक घोष, ने अतिथियों का स्वागत किया, और संस्थान की निदेशिका, डॉ. पल्लवी जाम्भले ने कार्यक्रम की अनुशंसा की । डॉ. वीनस जैन ने सभी विद्वानों का परिचय प्रस्तुत किया । विषय विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित विद्वान प्रो. अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली ने अपने बीज वक्तव्य में विषय प्रवर्तन करते हुए न्याय अध्ययन के महत्त्व को बताते हुए, न्यायदीपिका तथा परीक्षामुख सूत्र ग्रंथ का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया । मुख्य अतिथि डॉ. कोकिला शाह ने अपने वक्तव्य में जैन न्याय के सिद्धांतों पर प्रकाश डाला । इसी श्रंखला में डॉ. अरिहंत कुमार जैन द्वारा संपादित ‘प्राकृत टाइम्स इंटरनेशनल न्यूज़लेटर’ के ग्यारहवें अंक का विमोचन किया गया । जैन अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष, डॉ. एस. पी. जैन ने संस्थान का परिचय और धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, साथ ही राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली का अनुदान सहयोग करने हेतु आभार व्यक्त किया । कार्यशाला का कुशल संचालन जैन अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर, डॉ. अरिहंत कुमार जैन द्वारा किया गया ।
कार्यशाला के समापन पर सभी प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट प्रदान किए गए । सभी प्रतिभागियों ने कार्यशाला में अध्ययन के अपने-अपने अनुभव साझा किए तथा एक स्वर में कार्यशाला की सुचारू, सुव्यवस्थित और सुसंगठित योजना की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा इस ज्ञानवर्धक आयोजन के लिए आयोजकों का आभार व्यक्त किया और जैन न्यायशास्त्र के अध्ययन में इसे एक महत्वपूर्ण प्रयास माना । डॉ. रेशमा ने सभी प्रतिभागियों का अनुभव साझा करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया ।
अंत में डॉ. अरिहंत ने भारतीय ज्ञान प्रणालियों के अंतर्गत इन प्राच्य विद्याओं को मुख्य धारा में लाने तथा इस प्रकार के अकादमिक आयोजन हेतु बढ़ावा तथा सहयोग देने के लिए सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय के माननीय कुलाधिपति श्री समीर सोमैया तथा माननीय कुलपति प्रो. वी. एन. राजशेखरन पिल्लै का आभार व्यक्त किया, तथा कहा कि जैन अध्ययन केंद्र भविष्य में भी इस प्रकार की सार्थक कार्यशालाओं तथा सेमिनारों आदि के माध्यम से इस ज्ञान गंगा को अनवरत प्रवाहित करते रहने के लिए प्रतिबद्ध है ।