दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार बड़ौत मे मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि-
मित्र उसी को बनाना जो पारे की तरह नहीं, अपितु पैंदी की भाँति होना चाहिए। सच्चा मित्र वही है जो संकटों में भी साथ न छोड़े। मित्र बनाओ, पर जानकर बनाओ। धोखे से बचो, धोखे देने वालों से अपनी रक्षा करो। मित्र वही श्रेष्ठ होता है, जो हमेशा मित्र को अच्छे- मार्ग पर अग्रसर करे। बुरे लोग, अच्छे मित्र नहीं बन सकते हैं ।
अविश्वास, ईर्ष्या, आकांक्षा, विपरीत-सोच, शंका मित्रता की घातक है। संबंधों में मधुरता एवं मित्र से मित्रता बनाकर रखना है, तो परस्पर में विश्वास, समर्पण, आस्था तथा परोपकार की पवित्र भावना होना चाहिए। सच्ची- मित्रता मनुष्य जीवन का उपहार है। जिनके सच्चे-मित्र होते हैं, वह संकटों में भी घबड़ाते नहीं हैं, क्योंकि सच्चे मित्र अपनी प्रज्ञा से संकट हर लेते हैं।
ध्यान वह अग्नि है, जिसमें कठोर- कर्म भी जलकर स्वाहा हो जाते हैं। ध्यान योगियों की उत्कृष्ट- साधना है। जैन-दर्शन में साधुओं की मूल-साधना ध्यान ही है। ज्ञानी-ध्यानी ध्यान-साधना से क्षण-मात्र में कर्म क्षय कर मुक्त हो जाता है। जो संतोषरूपी अमृत में निमग्न है, शत्रु एवं मित्र में हमेशा समभाव रखता है, इन्द्रियजन्य सुख-दुःख की अनुभूति से रहित है, राग-द्वेष से शून्य है, वह नित्य-निरंजन, चैतन्यमयी, भगवत् स्वरूप, अरस, अरूपी अगंध, भगवानात्मा का ध्यान करता है। निसंगता के अभाव में ध्यान असम्भव है।
आचार्य श्री ने कहा कि अहो मित्र ! पुण्य होता है, तो मिट्टी भी सोना बन जाता है और पापोदय में स्वर्ण भी राख बन जाती है। अच्छे विचार करो, अच्छे कार्य करो, पुण्य की रक्षा करो। पुण्य क्षीण को हाथ भी नहीं मिलते हैं। प्रबल पुण्यात्मा की देव भी व्यवस्था बनाते हैं। पुण्य बढ़ाओ, आनन्दपूर्ण, सुखद जीवन जियो। जियो और जीने दो।धर्म सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन,मनोज जैन, वरदान जैन, पुनीत जैन, राजेश जैन, विमल जैन,अशोक जैन, अमित जैन, अतुल जैन, धनपाल जैन,आदि उपस्थित थे।
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