अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस सम्पूर्ण मातृ-शक्ति को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिवस है। पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो मां का ऋण नहीं चुकाया जा सकता। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली मां के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं।
मां के लिए कोई भी शब्द, लेख या उपाधि कम होगी। उनके प्यार और समर्पण को जिंदगी लगाकर भी जताया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी एक दिन है जो पूरी तरह मां को समर्पित होता है, इस दिन को मदर्स डे कहते हैं। साल 2024 में मातृत्व दिवस यानी मदर्स डे 12 मई रविवार को मनाया जाएगा।
माँ के बिना जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती अगर माँ न होती तो हमारा अस्तित्व ही न होता|
यह एक सामान्य कहावत है कि भगवान हर जगह मौजूद नहीं हो सकते थे इसलिए उन्होंने माँ को बनाया। कहावत भी सच है क्योंकि माँ की स्थिति भगवान से कम नहीं है। वह वो है जिसने हमें जीवन दिया और हमें अपने पैरों पर खड़ा किया। वह थके होने के बावजूद अपने बच्चों के लिए निस्वार्थ प्रेम और कभी तैयार होने की मूर्ति है। वह होती है तो उसकी ईश्वरीय छाया सुख देती है जब ‘नहीं’ होती है तब उसके आशीर्वादों का कवच हमें सुरक्षा प्रदान करता है।
वक्त जिस गति से विकृत होता जा रहा है ऐसे में क्या इस दिन पर हर युवक अपनी मां को स्पर्श कर यह कसम खा सकता है कि नारी जाति का अपमान न वह खुद करेगा और न कही होते हुए देखेगा। मातृ दिवस पर बेटियों का सम्मान और सुरक्षा देने का वचन दीजिए ताकि आनेवाले कल में भावी-मां का अभाव ना हो सके। हे मां! तुझे प्रणाम।
सुपुत्रों से आज मेरा नम्र निवेदन।
दुख न दें, भले न दे सुख का आंगन।।
माँ के पास ढ़ेर सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं वो उसको लगातार बिना रुके और थके निभाती है। वो एकमात्र ऐसी इंसान है जिनका काम बिना किसी तय समय और कार्य के तथा असीमित होती है।
एक मां का अपने बच्चे से रिश्ता, दुनिया के किसी भी रिश्ते से नौ माह पुराना होता है और सबसे करीब होता है। हमारे व्यक्त्वि को बनाने और संवारने में सबसे बड़ा रोल मां ही निभाती है। मां का कोई रंग—रूप नहीं होता क्योंकि उसकी पहचान निस्वार्थ प्रेम और ममता से की जाती है। यही कारण है कि मां शब्द सुनते ही हमारा सिर स्वयं नतमस्तक हो जाता है। वास्तव में मां है तो ही हम हैं। हमारा जीवन मां के उन उपकारों से भरा है जिनकी कीमत कभी नहीं चुकाई जा सकती।
आधुनिक कहे जा रहे समाज में बहुत से परिवारों में बडे़ होने पर बेटियां व बेटे शायद ही कभी अपनी मां के पास वक्त निकालकर बैठते हैं और उसे खुशी पहुँचाने वाली बातें करते है। मां और बच्चों के बीच दूरी बढ़ने लगी है। कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ मां के साथ बच्चे किस विषय पर संवाद बनाएं यह उन्हें समझ नहीं आता।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम ने माँ की महिमा को उजागर करते हुए कहा है कि जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी माँ के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं।
एक माँ सभी के जीवन में एक ऐसी शख्सियत होती है जिसे हमारे दिलों में कभी नहीं बदला जा सकता है। वह माँ प्रकृति की तरह है जो केवल बदले में कुछ लेने के बिना देना जानती है। हम उसे अपने जीवन के पहले क्षण से देखते हैं जब हम इस दुनिया में अपनी आँखें खोलते हैं लेकिन हम उसे उसके गर्भ में नौ महीने पहले महसूस करते हैं। जब भी हम बोलना शुरू करते हैं तो हमारा पहला शब्द माँ बन जाता है। वह इस दुनिया में हमारा पहला प्यार, पहला शिक्षक और पहला दोस्त है। जब हम पैदा होते हैं तो हम कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं, लेकिन यह वह है जो हमें अपनी बाहों में विकसित और विकसित करता है। वह हमें इस दुनिया को समझने में मदद करती है।
मां और बच्चे का रिश्ता इतना प्रगाढ़ और प्रेम से भरा होता है, कि बच्चे को जरा ही तकलीफ होने पर भी मां बेचैन हो उठती है। वहीं तकलीफ के समय बच्चा भी मां को ही याद करता है। मां का दुलार और प्यार भरी पुचकार ही बच्चे के लिए दवा का कार्य करती है। इसलिए ही ममता और स्नेह के इस रिश्ते को संसार का खूबसूरत रिश्ता कहा जाता है। दुनिया का कोई भी रिश्ता इतना मर्मस्पर्शी नहीं हो सकता।
मां शब्द के लिए दुनियाभर के साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है। मां ही दुनिया में ईश्वर द्वारा बनाई गई एक ऐसी कृति है, जो निस्वार्थ भाव में मरते दम तक अपने बच्चों पर प्यार लुटाती रहती है। मदर्स डे हर वर्ष मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इस लिहाज से इस बार मदर्स डे 12 मई को मनाया जाएगा। मां और बच्चों का रिश्ता इस दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है, जो बगैर किसी शर्त और बगैर किसी उम्मीद के साथ पूरा होता है।
मां शब्द के उच्चारण के साथ ही वैसा लगता है जैसे सारी प्रकृति उसमें समा गई। मां अपने बच्चों को अच्छे से अच्छा लालन-पालन करती है। आज देख रहे हैं नई पीढी को पैसा कमाना तो सिखा रहे हैं लेकिन रिश्तों का मूल्य समझाना शायद भूलते जा रहे है। ऐसे परिवेश में हर मां की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चों की अच्छी मार्गदर्शिका बने। बच्चों को रिश्तों का मूल्य, नैतिक जिम्मेदारी, धैर्य, संयम और त्याग का मूल्य बताएं। उनका मनोबल बढ़ाएं। आज के बच्चों को एक अच्छे मार्गदर्शक की अधिक जरूरत है।
निरंतर देकर जो खाली नहीं होती , कुछ ना लेकर भी जो सदैव दाता बनी रहती है उस मां को इस एक दिवस पर क्या कहें और कितना कहें। यह एक दिवस उसकी महत्ता को मंडित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हो भी नहीं सकता। हमारे जीवन के एक-एक पल-अनुपल पर जिसका अधिकार है उसके लिए मात्र 365 दिन भी कम हैं।
लेकिन नहीं, यह दिवस मनाना जरूरी है। इसलिए कि यही इस जीवन का कठोर और कड़वा सच है कि मां इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा उपेक्षित और अकेली प्राणी है। कम से कम इस एक दिन तो उसे उतना समय दिया जाए जिसकी वह हकदार है। उसके अनगनित उपकारों के बदले कुछ तो शब्द फूल झरे जाएं…।