मेरी भावना कालजयी रचना: आज 109 वर्षों बाद भी प्रासंगिक………………….

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मेरी भावना कविता जो 11पदों से गूंथी हुई है 1916में अपने सृजन के 109वर्षों बाद भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय रही होगी। दिगंबर जैन सोशियल एंड कल्चरल ग्रुप जिला बांसवाड़ा के संयोजक अजीत कोठिया ने बताया की पं. जुगल किशोर मुख्तार “युगवीर”की ये रचना सभी धर्मों का नवनीत है, चरित्र की उन्नति का सोपान है। ये रचना लौकिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है और इसे मेरी कहकर रचनाकार ने इस भावना को व्यापक बना दिया है। कोठिया ने बताया की मेरी भावना की रचना सन 1916में हुई थी, तब भारत पराधीन था, जातिगत द्वेष भाव बढ़ रहा था, उस समय परस्पर प्रेम और देश भक्ति की आवश्यकता थी। उस दौर में कवि ने मेरी भावना की रचना करके इसमें राष्ट्रीयता, विश्व बंधुता, समता, सहिष्णुता, परोपकार, न्यायप्रियता, ओर निर्भरता आदि भावनाओं की अभिव्यक्ति की है। इसकी भाषा सरल और माधुर्य से पूर्ण है।
कोठिया ने कहा कि मेरी भावना वर्तमान में जीवन जीने की कला सिखाती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। यह मानसिक विकारों को समाप्त कर यह एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सहयोगी है।
मेरी भावना पढ़ने, सुनने, समझने ओर आचरण में अपनाने वाले सभी की भावना है। इसमें “सर्वे भवन्तु सुखिन”की मंगल कामना है, इसीलिए यह जन जन की भावना है। कविता की प्रथम कुछ पंक्तियां ये है
जिसने राग द्वेष कामादिक जीते
सब जग जान लिया।
सब जीवो को मोक्ष मार्ग का
निस्पृह हो उपदेश दिया।
बुद्ध, वीर, जिन हरि, हर, ब्रह्मा
या उसको स्वाधीन कहो।
भक्ति भाव से प्रेरित हो
यह चित्त उसी में लीन रहो।

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