मनुष्य का सच्चा मित्र कर्म ही है – मुनिश्री विलोकसागर

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मनुष्य का सच्चा मित्र कर्म ही है – मुनिश्री विलोकसागर
प्राणीमात्र को सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए

मुरैना (मनोज जैन नायक) सिद्धों की आराधना पूजा भक्ति उपासना के अनुष्ठान के अवसर पर बड़े जैन मंदिर में निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पुण्योदय से ही हम सभी को मनुष्य पर्याय में जन्म मिला है । जब हमें मनुष्य पर्याय मिली है तो हमें ऐसे कर्म करना चाहिए जिससे हमारा मनुष्य जन्म लेना सार्थक हो जाए । अच्छे कर्म करोगे तो सुखद परिणाम मिलेगे, बुरे कर्म करोगे तो दुखद परिणाम मिलेगे । जैन दर्शन के अनुसार, मनुष्य के तीन मित्र उसके कर्म, परिवार और धन हैं। कर्म सबसे सच्चा और स्थायी मित्र है। जीवन भर किए गए कर्म ही मृत्यु के बाद आत्मा के साथ जाते हैं । परिवार और प्रियजन केवल जीवन भर साथ देते हैं और मृत्यु के बाद, श्मशान तक ही मित्र बने रहते हैं। मृत्यु के साथ उनकी मित्रता का अंत हो जाता है। धन भी एक क्षणिक मित्र है। श्वासों की लय समाप्त होते ही धन से बनी मित्रता समाप्त हो जाती है। व्यक्ति के कर्म जीवन के हर मोड़ पर उसका साथ देते हैं। अच्छे कर्म व्यक्ति को अच्छे परिणाम देते हैं, जबकि बुरे कर्म उसकी दुर्गति का कारण बनते हैं। इसीलिए धर्म को, मनुष्य के कर्मों को ही सच्चा मित्र कहा गया है । वे हर समय जन्मजन्मांतर तक उसके साथ रहते हैं।
सिद्धों की महाअर्चना में आज 256 अर्घ्य होगें समर्पित
प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी ने मंत्रोच्चारण के साथ अभिषेक, शांतिधारा के पश्चात विधानकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्रद्धाभक्ति के साथ विधिविधान एवं शुद्धि सहित सिद्धों की अर्चना करने से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। पुण्य कर्मों के कारण ही हम सभी धार्मिक अनुष्ठान करने का पावन अवसर प्राप्त होता है । इस पवित्र मौके का हमें पूरा लाभ लेना चाहिए । विधान के चतुर्थ दिन संगीत की मधुर धुन पर पूजा भक्ति करते हुए सभी इंद्र इंद्राणीयों ने अष्टदृव्य अर्घ्य के साथ 128 श्रीफल समर्पित किए । सिद्धों की आराधना करते हुए कुबेर इंद्र ने भक्तिमय भजनों पर भक्ति नृत्य प्रस्तुत करते हुए रत्नों की वर्षा की । विधान की पूजन से पूर्व सौधर्म इंद्र के साथ अन्य सभी इन्द्रो ने श्री जी की प्रतिमा का अभिषेक, शांतिधारा एवं नित्यमह पूजन कर संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बना दिया । विधानाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी ने मंत्रोच्चारण करते हुए सभी क्रियाओं को सम्पन्न कराया । आज मंगलवार को पांचवे दिन सिद्ध परमेष्ठियों की भक्तिमय पूजन के साथ 256 अर्घ्य समर्पित किए जाएंगे ।
मनुष्य के तीन मित्र, सच्चा कौन ?
एक व्यक्ति के तीन मित्र थे । जब उसका अंतिम समय आया तो उसने अपने मित्रों से कहा कि “अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम लोगों ने आजीवन मेरा साथ दिया है। मृत्यु के बाद भी क्या तुम लोग मेरा साथ दोगे ?”
तब पहला मित्र धन बोला, “मैंने जीवन भर तुम्हारा साथ निभाया। लेकिन अब मैं बेबस हूँ। अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” दूसरा मित्र परिवार बोला, ” मैं मृत्यु को नहीं रोक सकता। मैंने आजीवन तुम्हारा हर स्थिति में साथ दिया है। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही से हो। तीसरा मित्र कर्म बोला, “मित्र! तुम चिंता मत करो, मैं मृत्यु के बाद भी तुम्हारा साथ दूंगा। तुम जब भी जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।

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