*परिधानों की मर्यादा जरूरी ही नही अति जरूरी है*
*धर्मस्थलों पर फिल्मी व अश्लील गानों पर बढ़ रहे रील का चलन चिंतनीय*
वर्तमान परिपेक्ष में जहां सब कुछ परिवर्तित होता जा रहा है वहां मंदिर व तीर्थों पर प्रवेश व दर्शन करने की परंपराओं में भी बहुत तेजी के साथ बदलाव हो रहा है आज तीर्थ क्षेत्रों पर लोग धर्म कम पिकनिक मनाने अधिक जाते हैं और पिकनिक की मर्यादा तब तार-तार हो जाती हैं जब हमारे परिवार की बेटियां ऐसे परिधान पहन कर मंदिर में प्रवेश करती हैं जो मर्यादा की हर हद को पार कर देती हैं। यदि इस बात को हम इंगित करेंगे तो लोग फिर उंगली उठाने लगेंगे कि आपकी मानसिकता बहुत ही छोटी व तुच्छ है लेकिन मैं यह बात यहां पर स्पष्टता के साथ कहना चाहता हूं कि मंदिर मैं आप आखिर जाते क्यों हो ? क्या आप अपने इस भद्दे और बेहूदा फैशन को दिखाने के लिए मंदिर में जाते हैं या अन्य श्रावकों को आकर्षित करने के लिए मंदिर जाते हैं या भगवान की भक्ति करने के लिए? जैन धर्म में पंच महाव्रत में जहां ब्रह्मचर्य को पूरा मान दिया गया है संयम साधना को प्रबलता से प्रमुख माना गया है। वहीं अश्लीलता की यह बानगी क्या उस धर्म को खंडित नहीं करती है? *माना कि आप पश्चिमी सभ्यता से आकर्षित हैं आप मॉर्डन है, खूबसूरत है* लेकिन कभी तो इस पर विचार कीजिए कि मंदिर और तीर्थ क्षेत्रों पर भी आप इस प्रकार की अभद्र ड्रेस पहन कर कैसे जा सकते हैं? उन मां-बाप की मानसिकता पर भी मुझे दया आती है जो अपने साथ अपनी बहू बेटियों को इस प्रकार के कपड़ों में लेकर जाते हैं क्या उनकी सोच, उनके संस्कार इस बात की गवाही देते हैं या उन्होंने संस्कार हासिल किए ही नहीं और सिर्फ धन हासिल कर अपने आप को दिखावटी बनाने पर ही जोर दिया है।
*मैं ना तो नकारात्मक विचारों का व्यक्ति हूं ना ही संकीर्ण मानसिकता को धारण करने वाला* लेकिन मैं फिर भी इस विषय पर उंगली जरूर उठाना चाहता हूं कि मंदिरों में प्रवेश करते समय कुछ नियमावली अवश्य होनी चाहिए। एक या दो क्षेत्रों पर यदि ऐसे अश्लील परिधान पहनने वालों को मंदिरों में प्रवेश से रोक दिया जाएगा तो निश्चित रूप से एक माइलस्टोन की स्थापना होगी। जिसकी इस समय महती आवश्यकता है ।समस्त जैन मंदिरों ,जैन तीर्थों पर अभद्र और अश्लील कपड़ों को पहनकर प्रवेश रोकने हेतु आवश्यक रूप से कठोर नियमावली बननी चाहिए।
*रील का बढ़ रहा चलन* नई युग का प्रारंभ हो रहा है वर्तमान में सोशल मीडिया का नशा सर चढ़कर बोल रहा है। ऐसी स्थिति में धर्मस्थलों व तीर्थ स्थलों पर पहुंचकर बड़ी मात्रा में अश्लील गानों व फिल्मी धुनों पर रील बनाने का चलन बढ़ने लगा है जिससे क्षेत्र की मर्यादा धूमिल हो रही है। जिस पर भी चिंतन मनन और मंथन की अति आवश्यकता है। किसी और पर उंगली उठाने से पहले स्वयं की तरफ भी देखना जरूरी है कि हम क्या कर रहे हैं। जैन धर्म के अनुयायी ही स्वयं तीर्थ क्षेत्र पर जाकर ऐसी रील बनाते हुए नजर आते हैं जिसमें महिलाओं की संख्या कुछ अधिक नजर आ रही है सब कुछ विचारणीय है। उसके साथ ही कुछ सुधारणीय भी है। क्षमा के साथ
*संजय जैन बड़जात्या कामां,सवांददाता जैन गजट*