मानव संसार को जानने का प्रयास करता है स्वयं से अन जान रहता है मुनि सुप्रभ सागर जी महाराज

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मानव संसार को जानने का प्रयास करता है स्वयं से अन जान रहता है
मुनि सुप्रभ सागर जी महाराज

(पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा का 35 साल की पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं देखते हुवे किया भाव भीना अभिनंदन)

देवपुरा (बूंदी) श्री 1008 संभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर में चातुर्मास कर रहे हैं मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज यह सबसे बड़ी विनम्र है कि मानव संसार को जानने का प्रयास करता है और स्वयं से अनभिज्ञ है संसार को नहीं सबसे पहले स्वयं को जानू भगवान महावीर स्वामी ने अपने उद्देश्य में कहा कि संसार को नहीं स्वयं को देखने की जरूरत है संसार को नहीं स्वयं को सुधारने की जरूरत है स्वयं सुधरेंगे तो संसार स्वयं सुधर जाएगा वह एक लाइन थी ना शाश्वत निधि का धाम है क्यों बनता दिन
है उसको बस देख ले निज में होकर लीन।
द्रव्य संग्रह ग्रंथ पर आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए मुनि श्री ने आगे कहा कि मानव अनादि काल से पुद्ग़ल को ही अपना मान रहा है जबकि जीव ओर पुद्ग़ल भिन्न भिन्न है उन्होंने आगे कहा कि
पुद्ग़ल धर्म अधर्म आकाश काल
इनसे न्यारी है जीव चाल
ताकों न जान विपरीत मान निज करें देह में निज पहचान ।अर्थात जीव आदिकाल से
मतलब शरीर को ही अपना मानता है इसके सुखी रहने पर सुख मानता है और इसके दुखी होने पर दुख मानता है यह बहुत बड़ी विडंबना है जीवन में सदैव जीव द्रव्य को पहचानने के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य वैराग्य सागर जी ने भी धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि जैन जैन धर्म दर्शन के अनेकांत और स्वादवाद के सिद्धांत से समस्त समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। आज का मानव मोबाइल को हर समय साथ रखता है शरीर के नित्य कर्म करते समय भी मोबाइल साथ रखते है जीवन के लिए खतरनाक है। जीवन में सदैव मर्यादा में रहकर उसका उपयोग करे। देवपुरा मंदिर समिति के अध्यक्ष विनोद कोटिया ने बताया कि आज की धर्म सभा में मंगलाचरण राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार कोटा ने किया।मंगलदीप प्रज्वलन पारस जैन पारसमणि पारस जैन “पार्श्वमणि” विनोद जैन खटोड़ अशोक सबदरा शास्त्रदान का सौभाग्य प्राप्त सुहाग दशमी के उपवास करने वाली महिलाओं ने किया। धर्म सभा में विगत 35 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले पारस जैन पार्श्वमणी ने मेरी भावना शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम में लागू हो एवं प्रार्थना के रूप में बोली जाए विषय पर भारत की अनेक भाषाओं में प्रकाशित आलेख की फाइल मुनि द्वय केकर कमल में भेंट की। इस अक्सर पर पूर्व सरावगी जैन समाज अध्यक्ष रविंद्र काला भी साथ थे। मंदिर समिति एवं वर्षायोग समिति के पदाधिकारियों द्वारा पारस जैन “पार्श्वमणि” पत्रकार का उनकी 35 साल की पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं देखते हुवे भाव भीना अभिनंदन कर सिर पर पगड़ी पहलनाकर गले में माला पहनाकर स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।
प्रस्तुति
पारस जैन “पार्श्वमणि”पत्रकार कोटा
9414764980

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