महिला आरक्षण राजनीतिक इच्छाशक्ति की दहलीज़ पर : श्रीमती प्रियंका पवनघुवारा

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नारी शक्ति वंदन अधिनियम,  2023 में पारित अधिनियम लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण सुनिश्चित करता है, लेकिन इसकी सफलता महज संविधान में दर्ज होने से नहीं होगी— बल्कि इस पर अमल करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति से तय होगी।
भारतीय राजनीति में महिलाओं की उपस्थिति हमेशा सीमित रही है। 2024 में चुनी गई 18वीं लोकसभा में सिर्फ 74 महिलाएं चुनकर आईं, जो कुल सीटों का मात्र 13.6% हैं। यह आंकड़ा 2019 की तुलना में भी घटा है और वैश्विक औसत 26.9% से काफी पीछे है। राज्य विधानसभाओं की स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां औसतन केवल 9% ही महिलाएं विधायक हैं।
2024 लोकसभा चुनाव में महिलाएं केवल 9.6% उम्मीदवार थीं, लेकिन उनकी सफलता दर पुरुषों से अधिक थी – उन्होंने 13.6% सीटें जीतीं।
 भारत में चुनाव लड़ना अत्यंत महंगा है, और अधिकांश महिलाएं—खासकर ग्रामीण व पिछड़े वर्गों से—स्वतंत्र रूप से इतने संसाधन नहीं जुटा सकतीं। इसके अलावा, राजनीति का वातावरण भी महिलाओं के लिए असुरक्षित और शत्रुतापूर्ण रहता है। केवल महिला सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रखकर नेतृत्व नहीं उभरेगा। आवश्यक कदम है—वित्तीय सहायता  महिला उम्मीदवारों के लिए अलग चुनावी फंड व्यवस्था !
महिलाओं को कोर कमेटियों, नीति निर्माण इकाइयों में भी सक्रिय भूमिका देनी चाहिए।
महिला आरक्षण केवल एक नीति नहीं, बल्कि नेतृत्व को समावेशी, संवेदनशील और संतुलित बनाने का सरलतम  रास्ता है।
राजनीतिक दलों के प्रयासों के साथ-साथ मीडिया और नागरिक समाज की भी भूमिका अहम है।और महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।
वर्ष 2029 के आम चुनावों में यदि यह आरक्षण प्रभावी होता है,  व्यापक और दूरदर्शी कदम उठाने होंगे।
✍️ विचारार्थ: श्रीमती प्रियंका पवनघुवारा टीकमगढ़

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