महासंघनायक की समतापूर्वक महासमाधि

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बुंदेलखंड के प्रथमाचार्य, भारत गौरव, सूरीगच्छाचार्य, श्रमण परम्परा के सूर्य, उपसर्ग विजेता परम पूज्य गणाचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज का आकस्मिक देवलोकगमन अत्यंत स्तब्धकारी है। आचार्य श्री का समतापूर्वक समाधिमरण व्यवहारिक दृष्टि से तो कष्टपूर्ण है परंतु निश्चयवाद से उत्सव का क्षण है। मोक्ष की अविरल यात्रा पर बढ़ते हुए पूज्य आचार्य श्री ने‌ आज एक पड़ाव और पार‌ कर लिया।
ब्रह्मचारी अवस्था में प्रथम बार नागपुर में आचार्य श्री के पावन दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और तब से लेकर आज तक उनका भरपूर स्नेह और आशीर्वाद मिला। सन 2017 में प्रशांत विहार दिल्ली में आचार्य श्री से मंगल मिलन हुआ और उनका वात्सल्य पाकर मैं अभिभूत हो गया। आचार्य श्री के गंभीर व्यक्तित्व और अनुशासन ने मुझे आह्लादित कर दिया। महान आचार्यों की दैदिप्यमान श्रृंखला में आचार्य श्री का नाम स्वर्णाक्षरों से अंकित है।
आचार्य श्री का समाधिमरण कोई साधारण घटना नहीं है, अपितु अध्यात्मिकता में रुचि रखने वाले प्रत्येक प्राणी के लिए अपूरणीय क्षति है। आचार्य श्री ने अपने जीवन को तप, त्याग व संयम की साधना से पुलकित किया। सागर-सी गंभीरता, हिमालय-सी उत्तुंगता और पृथ्वी-सी सहनशीलता को अपने अंदर समेटे हुए आचार्य श्री स्व-पर कल्याण में सतत प्रयत्नशील रहे।
आचार्य श्री का संघ विशाल एवं समृद्ध है। अनेकों प्रखर साधक आपकी छत्र-छाया में पल्लवित हुए जो जगह-जगह जिनशासन की गरिमा को निरंतर बढ़ा रहे हैं। आपके भीतर विद्यमान ममता, समता व क्षमता के कारण ही आपने इतने विशाल संघ का कुशलतापूर्वक संचालन किया। आपके दिशा-निर्देशन में समाजोत्थान के अनेकों उपक्रम संपादित हुए।
अंत में आचार्य श्री के चरणों में अनंत प्रणाम करते हुए शीघ्र उनके परम पद में स्थित होने‌ की मंगल कामना के साथ सादर नमन…

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