योग: “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की अवधारणा में समग्र मानव कल्याण की दिशा
योग, भारतीय संस्कृति की एक प्राचीन परंपरा है जो हजारों वर्षों से न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर मानव जीवन को एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान कर रही है। यह केवल शारीरिक व्यायाम या व्यायाम की एक तकनीक मात्र नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवनशैली है, जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी स्तरों पर व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिपक्व बनाती है।
21 जून को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है, और वर्ष 2025 की थीम “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” इस तथ्य की पुनः पुष्टि करती है कि योग का प्रभाव केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, पारिस्थितिक और वैश्विक स्तर पर संतुलन स्थापित करने का माध्यम भी है।
एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य: एक व्यापक दृष्टिकोण
इस विषयवस्तु की मूल भावना यह है कि जब तक पृथ्वी का पारिस्थितिक तंत्र संतुलित नहीं होगा, तब तक मानव स्वास्थ्य भी संतुलित नहीं रह सकता। जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, जैव विविधता का क्षरण, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन न केवल पर्यावरण संकट को जन्म देता है, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ऐसे में योग केवल व्यायाम न होकर, चेतना का जागरण है—एक ऐसी जीवनदृष्टि जो संतुलन, अनुशासन, संयम और आत्मानुशासन को प्रोत्साहित करती है।
योग का बहुआयामी प्रभाव
योग के प्रभाव को यदि शैक्षणिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह जैविक, मानसिक और सामाजिक तीनों स्तरों पर कार्य करता है।
जैविक स्तर पर: योगासन, प्राणायाम, और ध्यान शरीर की अंतः क्रिया को संतुलित करते हैं, रक्त संचार, पाचन, और तंत्रिका तंत्र को सशक्त बनाते हैं।
मानसिक स्तर पर: योग मन की चंचलता को स्थिर करता है, चिंता, अवसाद और तनाव को कम करता है।
सामाजिक स्तर पर: योग सामाजिक समरसता, करुणा, और सहअस्तित्व की भावना को प्रोत्साहित करता है, जिससे एक स्वस्थ और सशक्त समाज का निर्माण होता है।
जैन दर्शन और योग: आत्मा की शुद्धि की साझा साधना
भारतीय दार्शनिक परंपरा में योग के विविध रूप मिलते हैं, जिनमें जैन योग साधना एक विशिष्ट स्थान रखती है। जैन धर्म में योग का उद्देश्य मोक्ष की ओर अग्रसर होना है। जैन दर्शन में योग का तात्पर्य केवल शरीर की क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आत्मा की शुद्धि, संयम, और तप की दिशा में अग्रसर एक साधना है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, “योगो आत्मगुणानां भावः” अर्थात योग आत्मा के गुणों की अभिव्यक्ति है। महावीर स्वामी ने ध्यान, मौन, अपरिग्रह, और आत्मनिरीक्षण को मोक्षमार्ग के चार मुख्य स्तंभ माना। उनका यह कथन “अप्पा खम्मे” (स्वयं ही शरण है) योग के स्वाध्याय और आत्मदर्शन के मूल सिद्धांत से पूर्णतः मेल खाता है।
अहिंसा और योग: परस्पर पूरक अवधारणाएं
जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांत – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह – योग के यम और नियम से पूर्णतः समन्वित हैं। योग हमें अपने भीतर करुणा, क्षमा, सहिष्णुता और सत्त्विकता के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा देता है। जब व्यक्ति योग के माध्यम से आत्मा के समीप पहुंचता है, तो वह अन्य जीवों के प्रति संवेदनशील और सह-अस्तित्व की भावना से ओत-प्रोत बनता है। यही जैन धर्म का मूल उद्देश्य भी है – समस्त जीवों के प्रति मैत्री और दया का भाव।
समकालीन परिप्रेक्ष्य में योग की उपयोगिता
आज की दुनिया बहुआयामी संकटों से जूझ रही है – शारीरिक बीमारियां, मानसिक अवसाद, सामाजिक तनाव और पारिस्थितिक असंतुलन। कोरोना महामारी ने हमें यह स्पष्ट रूप से सिखाया कि हमारी भौतिक प्रगति तब तक सार्थक नहीं जब तक हम आंतरिक रूप से स्वस्थ, संतुलित और जागरूक न हों।
ऐसे में योग एक वैज्ञानिक, दार्शनिक और व्यावहारिक उपकरण के रूप में उभरता है, जो मानव मात्र को न केवल स्वास्थ्य प्रदान करता है, बल्कि उसे एक उत्तरदायी और आत्मानुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
सारांश और संदेश
इस योग दिवस पर हमें योग को केवल औपचारिकता या प्रतीकात्मकता तक सीमित न रखकर इसे एक दैनिक अभ्यास बनाना होगा। यह जीवन के हर स्तर – व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और वैश्विक – पर संतुलन और स्वास्थ्य का मार्ग है।
योग और जैन दर्शन के समन्वित अभ्यास से जो व्यक्ति संयमित, सादगीपूर्ण और चिंतनशील जीवन की ओर अग्रसर होगा, तब “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की संकल्पना वास्तव में साकार होगी।
आज आवश्यकता है कि हम योग के माध्यम से अपने भीतर और बाहर के वातावरण में सामंजस्य स्थापित करें, पर्यावरण की रक्षा करें, मन को स्थिर करें, और आत्मा की ओर उन्मुख हों। तभी हम न केवल स्वयं को, बल्कि इस संपूर्ण पृथ्वी को एक स्वस्थ, संतुलित और शांतिपूर्ण दिशा में ले जा सकेंगे।
इस प्रकार योग केवल स्वास्थ्य का माध्यम नहीं, बल्कि समग्र जीवन-दर्शन है – जो जैन धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप, आत्मा की मुक्ति की ओर अग्रसर एक सार्थक पथ है।