लक्ष्य सिद्धि मे लक्षण की आवश्यकता – अनुपम सागर

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आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री अनुपम सागर जी महाराज व मुनि श्री समत्वसागर जी महाराज का मंगल प्रवचन प्रातः 08:00 बजे श्री ऋषभदेव जिन चैत्यालय अतिथि भवन बड़ौत में हुआ ।
मुनि श्री ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का अपने जीवन मे कोई ना कोई लक्ष्य अवश्य ही होना चाहिए बिना लक्ष्य के कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल तक नही पहुंच सकता। लक्ष्य की पहिचान लक्षण की प्रसिद्धि से ही हुआ करती है। लक्षण के अभाव में लक्ष्य का भान नहीं होता ।तब फिर लक्ष्य की प्राप्ती कैंसें हो सकती है?
यदि लक्ष्य को प्राप्त करने की अभिलाषा है तो लक्षण को ओर दृष्टि करना हो चाहिए।
आत्मा का ज्ञान लक्षण है क्योंकि वह ज्ञान ही आत्मा का असाधारण गुण है। ज्ञान आत्म द्रव्य को छोड़कर अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाया जाता । ज्ञान लक्षण की प्रसिद्धि से ही उसके लखने योग्य आत्म लक्ष्य को प्रसिद्धि होती है। लक्षण वह होता है जिसकी प्रसिद्धि से वह सर्व विदित हो और लक्ष्य वह है कि जिसको प्रसिद्धिपने से सब नहीं जानते ।
लक्षण लक्ष्य में व्याप्य व्यापक संभव होता है, लक्ष्य व्यापक है तो लक्षण उसमें व्याप्य होता है। ज्ञान आत्मा से भिन्न अन्यत्र नहीं हो सकता आत्मा व्यापक है तो ज्ञान व्याप्य है। अर्हत जिन दर्शन की स्याद्वाद शैली के ही सामर्थ्य से ही एक ही द्रव्य में लक्षण और लक्ष्य का भेद प्रकाशित हो सकता है। अहो! संसार को अज्ञान दशा , लक्षण को लक्ष्य से भिन्न मानकर अर्थात गुण से गुणी को भिन्न मानकर लक्ष्य की सिद्धि करना चाहते हैं।लक्षण रहित वस्तु गधे के सींग के समान है, जैसे गधे के सींग तीन काल में नहीं हो सकते, जैसे बन्ध्या का पुत्र कभी नहीं होता, जैसे आकाश के पुष्प नहीं होते उसी प्रकार गुणों से रहित वस्तु नहीं होती है।सभा मे मुनि श्री समत्व सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिया।
मंच संचालन डा० श्रेयांश जैन ने किया। प्रवचन के पश्चात बड़ौत दिगम्बर जैन समाज समिति ने मुनि संघ को चातुर्मास के लिए श्रीफल चढ़ाया। प्रवचन में समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन, समाज समिति के मंत्री मनोज कुमार जैन (पैट्रोलपम्पवाले), पुनीत जैन, मनोज जैन (संभव किराना), दिनेश जैन, चिराग जैन, शरद जैन, अशोक जैन, सतीश जैन फर्नीचर आदि मौजूद रहे।
वरदान जैन
अतुल जैन बुढ़पुर वाले

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