औरंगाबाद संवाददाता नरेंद्र /पियुष जैन – परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के बीस पंथी कोटी में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि
लड़ लो, झगड़ लो, पर बोल चाल बन्द मत करो, ना परिवार से अलग होने की बात करो, ना सोचो। क्योंकि उन पत्तों की कोइ कद्र नहीं होती, जो पत्ते पेड़ से टूटकर गिर जाते हैं।अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी
कल सुबह मन्दिर की छत पर खडा था। एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से झगड़ रहा था। हमने पूछा -? क्या बात है -? सुबह से झगड़ने लगे हो। वह बोला, इसने मुझे गाली दी है-? हमने कहा – उसने गाली दी। मगर तूने ली क्यों-?वह गाली देने के लिए स्वतंत्र है। गाली ना लेने के लिए तू भी तो उतना ही स्वतंत्र है। गाली तो बैरंग चिट्ठी है, यदि तुम उसे नहीं लोगे, तो वह वापस देने वाले के पास चली जाएगी।गाली तो मन का विकार है। दुनिया की तबाही के लिए एक तीली काफी है। और आदमी की तबाही के लिए एक गाली काफी है।गाली एक तीली है जो दूसरों को भस्म करे या ना करे, मगर अपने को भस्म जरूर कर देती है। गाली तीली है। ताली नहीं। तुम कहोगे एक हाथ से तो ताली बजती नहीं है। ताली तो दोनों हाथों से बजती है। उसी प्रकार क्रोध अपने आप तो आता नहीं हैं। वह तो किसी ना किसी के द्वारा लाया जाता है। ठीक है — मैं मानता हूं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती है। लेकिन एक हाथ से चुटकी तो बजती है। यह तुम्हें भी मानना पड़ेगा गाली-ताली नहीं, एक चुटकी है।