स्वतंत्रता की भूमिका हमारे देश में १८५७ से शुरू हुई थी जिसमे मंगल पांडेय ,रानी झाँसी जैसे हजारों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था..उस समय एक ही लक्ष्य था की हमें गुलामी की जंजीरों से मुक्त होना हैं .यह इतनी अंधी सुरंग जैसे लड़ाई थी जिसका कोई ओर छोर नहीं था .अनथक प्रयास और कुरबानियों क सिलसिला चला जा रहा था..बंगाल के साथ जहाँ जहाँ भी शिक्षा केंद्र थे वहाँ से ज्ञान अर्जन कर अपनी स्थिति समझकर विरोध करते रहे .जैसे जैसे नए नए नवयुवकों का प्रादुर्भाव हुआ चेतना का सञ्चालन हुआ और आंदोलन में गति आयी .
१८८५ में कांग्रेस का गठन होकर एक मंच पर आना शुरू हुआ .उसमे से बहुत नवयुवक और बुद्धिजीवी जन जुड़े .और एक मंच मिलकर आंदोलन को बल दिया .कुछ विदेशों में भी रहकर गुलामी की पीड़ा से जूझ रहे थे .उस दौरान सब में आत्मबल के साथ जोश था .सब देश के लिए कुर्बान होने को तत्पर रहे और लाखों लोगों ने अनाम योध्या बनकर कुर्बानी दी .उनका मात्र एक लक्ष्य था गुलामी से मुक्ति और स्वराज्य की कल्पना .उस दौरान उनमे देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी ,उन्होंने न परिवार देखा न समाज केवल देश इसकेअलावा कोई विकल्प नहीं .और उस कसौटी पर खरे भी उतरे .
जैसे ही देश स्वतंत्र हुआ उस समय गरीबी ,भुखमरी अशिक्षा ,बेरोजगार आदि आदि बहुत थी विकास एक प्रकार से शून्य था .उस समय की परिस्थियाँ बहुत नाजुक थी .तत्कालीन नेताओं और सरकारों ने बहुत मेहनत की ,नयी नयी योजनाएं लाये ,औद्योगिक क्रांति के साथ बड़ेबड़े बाँध बनाये गए .सड़क ,बिजली ,पानी ,शिक्षा का आभाव होने से सब सरकारों की प्राथमिकता अधोसंरचना को स्थापित करने की थी .जैसे जैसे विकास का कदम उठाये वैसे ही दो दो युध्य और राजनैतिक अस्थिरता के कारण विकास कम हो पाया .
देश में स्वतंत्रता के कारण स्वच्छंदता का वातावरण बनने से नए नए नेताओं का जन्म हुआ जो छात्र जीवन से, कोई जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से ,सत्ता के विकेन्द्रीयकरण से पंच सरपंच ,पंचायत ,विधायक सांसद और मंत्री बनने से उन्हें पैसों के लालच ने कुछ भी निम्म स्तरीय कराय करने का अवसर मिला इसी बीच उद्योगपतियों की होड़ ने विलासिता को जन्म दिया .अर्थ के कारण सब अनर्थ करने लगे .दिन रात भौतिक संसाधन जुटाने सभी वर्ग द्वारा मात्स्य न्याय का चलन शुरू हुआ.पहले इन गिने भ्र्ष्ट मिलते थे आज इन गिने ईमानदार मिलते हैं .
देश में राजनैतिक अस्थिरता के कारण चारित्रिक गिरावट राजनीति के साथ अफसरसाही में आयी और फिर तो पैसे बटोरने की अंधी दौड़ शुरू हुई ,देश में जो जो विकास की गति बढ़ी वैसे वैसे विनाश भी शुरू हुआ .स्वाभाविक रूप से शुरुआत में निर्माण कार्य में धन की बहुलता होने से बहती गंगा में सबने हाथ धोये .उसके बाद काला धन विदेशों में जमा किया जाने लगा .मंहगाई ने गगन चुम्बी छलांग लगाना शुरू किया .एक समय निर्माण कार्य जैसे भवन सड़क .स्कूल ,कॉलेज ,हॉस्पिटल जैसे सभीनिर्माण कार्यों में बेहताशा धन आने से बहुत विकास हुआ.
एक बात यह समझ में आयी की जितने जितने हम आज़ादी में युवा से वृद्धावस्था में पहुँच रहे हैं उतनी उतनी धन लोलुपता के कारण हम जितने विकासशील होना चाहिए थे नहीं हो पाए .भ्र्ष्टाचार और अनैतिकता के घुन ने देश को खोखला भी कर दिया .अब जब गंगोत्री ही अपवित्र हैं तो गंगा कहाँ तक पवित्र होगी .सबसे उच्चतम स्तर पर नियम कायदे कानून नहीं बचे ,उनके द्वारा धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं तो सामान्य जन से क्या अपेक्षा करे ..ऐसा नहीं हैं की हमने विगत ७४वर्षों में विकास नहीं किया .बहुत किया जबकि उससे भी अधिक हो सकता था.
उसका मूल कारण सामाजिक ढांचा बिगड़ चूका हैं .हम द्सरों से अपेक्षा रखते हैं स्वयं को आत्मनिरीक्षण करने की फुर्सत नहीं हैं .हम कितने भी विकसित हो जावे जब तक व्यक्तिगत ,सामाजिक नैतिक ,धार्मिकचारित्रिक सुधार नहीं होगा तब तक सही अर्थों में विकसित नहीं हो पाएंगे .आज सब कुछ होते हुए भी व्यक्ति अशांत हैं ,कारण आज भी हम मौलिक सुविधाओं से वंचित हैं .आज शिक्षा चिकित्सा के क्षेत्र में सम्मुनत नहीं पाए
आज देश को नैतिकता देश भक्ति की बहुत जरुरत हैं ,आज देश वासी स्वकेन्द्रित होकर अपना हितार्थ काम कर रहे हैं कारण जब शासक अपने क्रियाकलापन में नैतिकता का स्थान नहीं रखते तब अन्य से क्या अपेक्षा की जाय .राजनीति में कैसे सत्ता पायी जाय और अन्यों को नेस्तनाबूद किया जाय जिस कारण देश में प्रजातंत्र या लोकतंत्र कहीं नहीं दिखाई दी रहा हैं .आज आलोचना का कोई स्थान नहीं हैं .आलोचक देश द्रोही माने जाने लगे हैं .वर्तमान सरकार अपने मुंह मियां मिठ्ठू बन रही हैं पर बेरोजगारी ,महगांई पर कोई नियंत्रण नहीं हैं कारण निर्थक निर्माण कार्य और समुचित दिशा में कोई पहल नहीं .ऐसा लग रहा हैं की कोई किसी की नहीं सुन रहा हैं .सत्ता दो पक्षों पर चलती हैं एक पक्ष और दूसरा विपक्ष पर आज विपक्ष किसी भी कारण से अतित्व में नहीं होने कारण उसे अनसुना किया जा रहा हैं .संसद और विधानसभा औचित्यहीन होती जा रही हैं .कोई मर्यादा नहीं कोई इज़्ज़त नहीं .जिससे देश शिक्षित होता हैं वह अराजतकता का अड्डा बना हुआ हैं .जनता सुरक्षित नहीं हैं दिन रात हत्याएं ,बलात्कार ,चोरियां ,भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी होती जा रही हैं .
हम ७६ वर्ष पूर्ण करने जा रहे हैं .हमने उतनी गंभीरता प्रौढ़ता पायी या अभी भी आजादी के पहले जैसे संघर्ष की जरूरत हैं .जब तक ईमानदारी देश भक्ति नैतिकता जीवन में नहीं आएँगी तक तक विकास जड़ तक नहीं पहुंचेगा .बिना नींव का महल कब तक टिकेगा .वर्तमान में देश की सभी संविधानिक संस्थाए एवं राजनैतिक पार्टियों ने अपनी बुनियादी सिध्धांतो को त्यागकर स्वार्थ से प्रभावित हो गयी हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३
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