क्रोध में प्रभु या गुरु का स्मरण करना चाहिए: आचार्य प्रमुख सागर महाराज

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बगाईगांव: क्रोध की धारा मे क्षण भर में  मनुष्य अपने वर्षों के श्रम- अनुभव और सफलताओं को नष्ट कर डालता है। कुछ लोग कभी-कभी क्रोध करते हैं और कुछ लोग कभी-कभी क्रोध नहीं करते हैं अर्थात हमेशा क्रोध करते हैं। क्षमावान व्यक्ति स्वयं के लिए अमृत के बीच होता है। वही नीम-बबूल के बीच बोने वाला व्यक्ति कितने ही आमों के सपने देख ले उसे आम उपलब्ध नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जब भी क्रोध आए तो एक लंबी सांस लेते हुए नियम बना लो कि हमें क्रोध में अपशब्द नहीं बोलना है। क्योंकि क्रोध के कारण हमें चिड़चिड़ापन, व्याकुलता आदि मानसिक रोगों से पिडित होना पड़ेगा। यह उक्त बाते बंगाईगांव के श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में विराजित आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज ने मंगलवार को एक धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि क्रोध मन की बीमारी है तो होश मन की औषधि है।जिस व्यक्ति में क्रोध का रोग होता है उस व्यक्ति का विकास नहीं होता है। इसलिए हमेशा क्रोध में प्रभु या गुरु का स्मरण करना चाहिए। यह जानकारी सुनील कुमार सेठी एवं मुनी सेवा समिति के चेयरमैन मनोज रारा (मिंटू) द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है।।

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