किसी की आस्था सम्यक पर, तो किसी की मिथ्यात्व पर होती है -मुनिश्री विलोक सागर
विधान के छठवें दिन बुधवार को होगें 512 अर्घ्य समर्पित
मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन समाज के आराध्य देव निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने बड़े जैन मंदिर मुरैना में सिद्धचक्र महामंडल विधान में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आस्था और विश्वास पर ही संसार की सभी व्यवस्थाएं चल रही हैं। सभी की आस्था कहीं ना कहीं तो होती ही है। अंतर इतना है कि मिथ्यात्व पर होती है या सम्यक पर होती है। विश्वास तो करना ही पड़ता है कुदेव पर करलें, चाहे सच्चे देव पर करलें । वस्तु के सही स्वरूप पर करलें या विपरीत स्वरूप पर करलें। वस्तु के सही स्वरूप पर विश्वास करने वाला व्यक्ति सम्यक दृष्टि होता है। विपरीत पर विश्वास करने वाला व्यक्ति मिथ्या दृष्टि होता है। अध्यात्म में क्रिया का महत्व कम होता, श्रद्धा का महत्व अधिक होता है। आपका श्रद्धा विश्वास कैसा है, वह कौन है। सम्यक दर्शन का कार्य सच्चाई से जोड़ना है। वह आभास दिलाता है और सत्य को पहचानता है। मार्ग सब जानते हैं । लेकिन मार्ग सच्चा है या झूठा यह कोई नहीं जानता ।
इस अवसर पर मुनिश्री विबोधसागर महाराज ने कहा कि राग को बढ़ाने से राग बढ़ता है। मोबाइल तो सबके पास है, खाली बैठे हैं तो रील आदि देखने लगते है। फिर थोड़ी देर बाद दोबारा देखने का मन हो गया तो राग बढ़ गया। इन सभी कारणों से हम आध्यात्म से दूर होते जा रहे हैं। हमें राग को बढ़ाना नहीं हैं, कम करना है । राग कम होगा तभी हम आध्यात्म से जुड़ पाएंगे और इस संसार के जन्म मृत्य के मोह जाल से निकल कर सिद्ध शिला की ओर बढ़ेंगे ।
आठ दिवसीय अनुष्ठान में पूजा भक्ति आराधना का समागम
आठ दिवसीय सिद्धों की आराधना में आज मंगलवार को 256 अर्घ समर्पित किए गए । बड़े जैन मंदिर में आठ दिवसीय सिद्धों की आराधना के भक्तिमय अनुष्ठान में प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी ने विधान की पूजन कराते हुए एक एक श्लोक का अर्थ सरलता के साथ समझाया। सिद्धों की आराधना करते हुए आज बुधवार को पांचवे दिन 512 अर्घ समर्पित किए जायेगे । विधान पूजन से पूर्व भगवान वासपूज्य स्वामी का जलाभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन किया गया । संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी एवं आचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया गया। युगल मुनिराजों को शास्त्र भेंट श्रावक श्रेष्ठियों द्वारा किए गए ।
श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का महत्व व महिमा
प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी ने बताया कि सिद्धचक्र विधान कराने से कोढ़ नामक बीमारी ठीक हुई थी । श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान सर्व प्रथम मैना सुंदरी ने किया था। मैना सुंदरी के पति श्रीपाल को कोढ़ की बीमारी थी। दिगम्बर जैन मुनिराज ने मैना सुंदरी को बताया कि यदि तुम अपने पति का कोढ़ ठीक करना चाहती हो तो भक्ति एवं श्रद्धा के साथ श्री सिद्धचक्र विधान करो। पूज्य मुनिराज के बताए अनुसार मैना सुंदरी ने विधान किया। विधान के दौरान श्री जिनेंद्र प्रभु का अभिषेक कोढ़ पर लगाया गया, उससे उसके पति का कोढ़ ठीक हो गया। तभी से श्री सिद्धचक्रर विधान का महत्व बढ़ गया और सभी लोग इस विधान को करने के लिए लालायित रहते हैं।
















