औरंगाबाद (नरेंद्र /पियूष जैन)- जीवन में कुछ बनने, पाने और किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिये संकल्प का होना बहुत जरूरी है। लक्ष्य के अभाव में – साहस, श्रम, संघर्ष और सब्र – सब निरर्थक है। लक्ष्य निश्चित है तो मंजिल सामने है, अन्यथा चलते रहो कोल्हू के बैल की तरह। हमारे भीतर इतना साहस हो कि हम तमाम झंझावातों के बीच भी अपने लक्ष्य के प्रति इमानदार रहें। जीवन में कई बार हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कमजोर मन वाले लोग अपने लक्ष्य को बदलने लगते हैं, और सरल राह की खोज में संलग्न हो जाते हैं।यही मन का भटकाव हमें विचलित और कमजोर कर देता है, फिर हमारा लक्ष्य के प्रति आस्था, विश्वास कमजोर होने लगता है। हम स्वयं को थका, हारा, परास्त महसूस करने लगते हैं। यहीं से मन और जीवन में विक्षोभ उत्पन्न होने लगता है।
अरे बाबू – एक छोटी सी चींटी भी जब घर से बाहर निकलती है तो वह भी अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेती है और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिये पुरा साहस, श्रम और सामर्थ्य को लगा देती है। लक्ष्य तक पहुंचने के लिये साहस, श्रम, संघर्ष और सब्र बहुत जरूरी है। असफलताओं के तूफान के मध्य, सफलताओं के ध्वज दण्ड को थाम कर चलने का साहस रखने वाले ही लक्ष्य भेदने का गौरव प्राप्त करते हैं। जैसे – हमने सिद्धवर कूट में सिद्ध हस्त सन्त शिरोमणी आचार्य श्री विद्या सागरजी गुरूदेव से सिंह निष्क़ीडित व्रत करने का संकल्प लिया और सिद्ध क्षेत्र सम्मेद शिखर पर्वत पर तप साधना करने का लक्ष्य बनाया, तब कहीं जाकर हम आज इस मुकाम तक पहुंच पाये हैं। अन्यथा इस जीवन में इतना महान व्रत और महान तीर्थराज पर्वत पर तप साधना करना, निश्चित मेरे अनन्त जन्मों एवं गुरूओं के आशीष का ही सुफल है…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद