खुद को बेहतर बनाने के लिए सादगी का जीवन जिये ..ना कि सादगी के जीवन को साबित करने के लिए -अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज।

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खुद को बेहतर बनाने के लिए सादगी का जीवन जिये ..ना कि सादगी के जीवन को साबित करने के लिए -अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज।
तरूणधाम/कोडरमा-धन्य है दिगम्बर जैन साधु
*धन्य है दिगम्बर जैन चर्या
धन्य है तपस्वी सम्राट साधना महोदधि तपाचार्य आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज श्री का नंदीश्वर पंक्ति व्रत प्रारम्भ है इसी कड़ी में आज तीन दिन के उपवास के बाद दिनांक 11/9/2025 गुरुवार को चर्या के लिए उठे थे विधि नहीं मिलने के कारण आज आहार चर्या नहीं हो सकी अब तीन दिन का फिर उपवास अर्थात सात दिन के उपवास के बाद चर्या के लिए उठेंगे*। राजधानी के इस विषम गर्मी के मौसम में कितना कठिन काम है महान तपस्या गृहस्थों की सामूहिक दानांतराय प्रकृति का उदय,है।अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय 10 पियूष सागरजी महाराज ससंघ तरुणसागरम तीर्थ पर वर्षायोग हेतु विराजमान हैं उनके सानिध्य में वहां विभिन्न धार्मिक
कार्यक्रम संपन्न हो रहें हैं उसी श्रृंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य अन्तर्मना ने अपनी दिब्य देशना में कहा कि
खुद को बेहतर बनाने के लिए सादगी का जीवन जीयें.. ना कि सादगी के जीवन को साबित करने के लिये जीयें..!

सादगी केवल बाहरी परिधान व दिखावे का नाम नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की शैली और अपने माता पिता गुरु जनों के द्वारा दिये गये संस्कारों को बचाने की संस्कृति है। दिखावे की सादगी बहुत दिनों तक टिक नहीं पाती, क्योंकि सच्ची सादगी मन, वाणी और व्यवहार की पवित्रता से उपजती है।

साधुता और तप की पहचान यही है कि शरीर, वाणी और मन के स्तर पर संयम सादगी पर संतुलन बनाए रखें। शरीर को भीतर और बाहर से शुद्ध रखना रोग मुक्त जीवन का आधार है। वाणी को मधुर और हित मित प्रियकारी बनाए रखना दूसरा सोपान है। कटू वचन किसी के लिए भी पीड़ा बन सकते हैं, बन जाते हैं। और अमर्यादित भाषा संबंधों में दूरी पैदा कर देती है, इसीलिए जिसने वाणी पर संयम नहीं सदा, उसे उसके परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं। वाणी से निकला कठोर शब्द तीर के समान है जो लौट कर वापस नहीं आता।

मन की शांति और चेहरे की प्रसन्नता जीवन की सबसे बड़ी साधना और उपलब्धि है, जो सबसे महत्वपूर्ण है। मन को प्रसन्न, सौम्य और निर्मल रखना ही मानसिक तप साधना है। जीवन में परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, प्रसन्नचित रहना और छल कपट से दूर रहना सच्ची साधुता है। क्रोध और लोभ पर विजय पाना मानसिक संतुलन की सबसे बड़ी कसौटी है। ऊंचे पद और बड़ी उपलब्धियों के बाद भी जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त और विनम्रता को अखण्ड बनाये रखे, वह साधुता की कसौटी है। सादगी कोई नारा या दिखावा नहीं बल्कि आत्मा की सहज अवस्था है। यह भीतर की निर्मलता, विनम्रता और संतुलन से जन्म लेती है। जिस व्यक्ति का मन शुद्ध है, वाणी मधुर है और व्यवहार विनम्र है वही वास्तविक अर्थों में साधारण होकर भी असाधारण कहलाता है…!
संकलन कर्ता कोडरमा मीडिया प्रभारी जैन राज कुमार अजमेरा।

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