कविता:बंधन कच्चे धागों का
अजीत कोठिया डडूका
एक घर, एक परिवार में जन्मे
एक भाई, एक बहन
एक साथ खेले कूदे पढ़े लिखे।
यौवन की दहलीज तक आते
राहे हो गई जुदा जुदा।
बस मिल जाते हैं राखी पर
बरसो में एक बार,
पर मन के किसी कोने मे
उठती कसक,
बरबस नयनों में नीर भर देती
याद कराती बचपन के
वो हसीन पल
जो हमने वास्तव में जिए।
जीवन की आपा धापी में,
राखी के कच्चे धागों में ही छुपा है
प्रेम का शाश्वत अहसास।
याद आती विदेश में बसी बहन,
परदेस में खपा भाई।
ये राखी ही है जो मिलाती है
हमें वर्चुअली ही सही,
कराती है अपनो ओर अपनेपन का अहसास!
राखी भर देती दूरस्थ भाई बहनों
के मन में मिठास।
आओ आज श्रावणी पूर्णिमा पर
राखी की रेशमी डोरी में
बांधले रिश्तों की मजबूत गांठ
हम कही भी रहे,
राखी पर तो करे भाई बहनों
को याद।
यही भर देगी रिश्तों में नई मिठास!
आओ दूर रह कर भी पाए
राखी की डोरी में
सच्चे भाई बहन प्रेम का अहसास।
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अजीत कोठिया डडूका बांसवाड़ा राजस्थान 327022
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