दुनिया की आबादी 8 अरब पार कर चुकी है। इनमें से 5.3 अरब इंटरनेट यूजर्स हैं। सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या सबसे ज्यादा चीन में है। लेकिन, पूरी दुनिया में सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा टाइम बिताते हैं हम भारत वाले। अपनी भूख, प्यास, नींद और रिश्तों को दरकिनार कर हमने कम से कम इस मामले में अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ दिया है।
रिसर्च फर्म ‘रेडसियर’ के मुताबिक भारतीय यूजर्स हर दिन औसतन 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन पर नजरें गड़ाए रहते हैं। इसमें से अधिकतर टाइम वे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। जबकि, अमेरिकी यूजर्स का औसतन स्क्रीन टाइम 7.1 घंटे और चीनी यूजर्स का 5.3 घंटे है। सोशल मीडिया ऐप्स भी भारतीय यूजर्स ही सबसे ज्यादा यूज करते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में एक इंसान के औसतन 7 सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं, जबकि एक भारतीय कम से कम 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद है। 70 फीसदी लोग बिस्तर पर जाने के बाद भी मोबाइल चलाते हैं।
सोशल मीडिया का उपयोग आज की संस्कृति में दैनिक आवश्यकता बन गया है। दुनियाभर में सबसे अधिक आबादी वाले देशों की फेहरिस्त में भारत नंबर एक पर है, सोशल मीडिया के मामले में भी सबसे आगे है। अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के ही अकेले यहां पर 40 करोड़ अकाउंट हैं, वहीं वाट्सऐप के तो तकरीबन 53 करोड़ से अधिक यूजर हैं।
आजकल हम अक्सर लोगों को इस बारे में बात करते देखते हैं कि सोशल मीडिया पर उनके कितने सारे फ्रेंड्स हैं या कितने सारे फॉलोअर्स हैं। इससे हमें लगता है कि फ़लां शख़्स कितना ज़्यादा ‘सोशल’ है या कितना फेमस है। सोशल मीडिया पर उसके इतने सारे फ्रेंड्स और फॉलोअर्स होना इस बात के सबूत भी लगते हैं, लेकिन असल में देखा जाए तो इस आदत के चलते उसका वास्तविक सामाजिक जीवन ख़तरे में पड़ जाता है। अगर एक बार हाथ में स्मार्ट फोन आ जाए तो फिर सोशल मीडिया की खिड़की खुलते ही बाकी की दुनिया कब दूर हो जाती है, इसका पता ही नहीं चलता। इस बात का न तो एहसास होता है, न एहसास करने की ज़रूरत।
लोगों को सोशल मीडिया की लत लग चुकी है
ये तो व्यवस्था पर प्रभाव की बात है, लेकिन सोशल मीडिया का असर और भी खतरनाक हालात पैदा कर रहा है। हर उम्र , तबके और पेशे से जुड़ा आम व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सोशल मीडिया के असर में इस कदर आ रहा है कि इसने उसके रहन सहन, खान -पान के तरीके से लेकर दूसरों के प्रति सोच तो बदली ही, अपने प्रति भी अजीब तरीके सोचने लगा है।अकेले होने पर ही किसी भी सार्वजनिक स्थल पर भी पहली फुर्सत में हर शख्स अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर उंगलियां चलाते हुए दिखाई दे जाएगा। नहीं तो ईयर फोन या हेड फोन लगाए मोबाइल की स्क्रीन पर वीडियो में आंखें गड़ाए देखा जा सकता है। ये ज़्यादातर सोशल मीडिया पर चैट करते हुए, टेक्स्ट पढ़ रहे या वीडियो देख रहे मिलेंगे । रिश्तेदारों, दोस्तों के साथ सुख दुख साझा करने के लिए सामूहिक तौर पर भी मिलेंगे तो वहां भी नज़रें और उंगलियां मोबाइल स्क्रीन पर होंगी।
आज चाहे आप कहीं भी हों, कुछ भी कर रहे हों, एक बार नज़र उठाकर अपने आस-पास देखिए, हर दस में से नौ लोग फोन पर नज़रें गड़ाए हुए मिलेंगे। उन नौ में से भी आठ लोग सोशल मीडिया पर व्यस्त होंगे। उन्हें न तो अपने आस-पास के लोगों की तरफ़ नज़र उठाकर देखने की फ़ुर्सत होती है, न ही कोई बातचीत करने में दिलचस्पी। लोग अक्सर सिर्फ़ अकेले होने पर ही फोन में जुटे हुए नहीं दिख जाते, बल्कि कई बार तो ग्रुप में बातचीत करते हुए भी ज़रा-ज़रा सी देर में स्टेटस चैक करते रहेंगे या फिर यूं ही फोन में व्यस्त रहेंगे। इसके चलते असल में देखा जाए तो ग्रुप बन ही कहां पाते हैं। लोगों ने अपनी ही एक ऐसी आभासी दुनिया बना ली है, जहां वे अकेले होते हुए भी हज़ारों लोगों की भीड़ से घिरे हैं। अपने होने का एहसास दिलाने के लिए वे लाइक, शेयर और कॉमेंट पर ही टिके रहते हैं और ये जितने ज़्यादा होते हैं, उन्हें अपनी पॉपुलैरिटी का एहसास उतना ही ज़्यादा होने लगता है, जबकि सच तो यह है कि वे अपने दोस्तों, परिजनों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों आदि से धीरे-धीरे दूर होते जाते हैं, क्योंकि उनके पास इनके लिए वक़्त ही नहीं बचता है। यहां तक कि एक ही घर में रहते हुए अक्सर वे अपने ही घरवालों से ज़्यादा बातचीत नहीं करते हैं और अपने में मगन रहते हैं।
कोई भी चीज़ बुरी नहीं होती, बुरी होती है उसकी लत। सोशल मीडिया भी तब तक बुरा नहीं है, जब तक कि उसकी वजह से आपका सामाजिक जीवन और स्वास्थ्य न प्रभावित हो। सोशल मीडिया की बदौलत हमारी अभिव्यक्ति और रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है। हमें बहुत सारी ऐसी जानकारी भी मिलती है, जो वैसे शायद न मिले, लेकिन जब यह आदत या सूचना का संसार हमें इतना प्रभाव में ले ले कि इसके बिना बाकी चीज़ें नगण्य लगने लगें, तब ज़रूर चिंता की बात है। सोशल मीडिया जहां एक तरफ़ ढेर सारे दोस्त बना देती है, वहीं दुश्मनों की भी कोई कमी नहीं रह जाती।
आज हमारी समाज में भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग बड़ी संख्या में हो रहा है। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय में न जाने कितने फेक पोस्टें हम लोग फारवर्ड करते रहते हैं। जहाँ व्हाट्सएप, सोशल साइट्स से अनेक फायदे हुए हैं वहीं अनेक लोगों ने इसे समाज, संतों, विद्वानों में राग- द्वेष उत्पन्न करने का जरिया बना लिया है। आए दिन देखा जाता है व्हाट्सएप , फेसबुक आदि पर अनेक ऐसे पोस्ट, कमेंट किए जाते हैं जो यदि आमने-सामने होंगे तो शायद वैसा नहीं बोल पाएंगे जैसा उन्होंने सोशल साइट्स पर लिखा है। इसलिए हमें सोशल मीडिया पर अपनी उंगलियों का उपयोग बहुत सम्हल कर करना चाहिए। फेसबुक आदि सार्वजनिक मंच पर भी अनेक लोग समाज के विसंवाद को खूब पोस्ट करते रहते हैं और ऐसे लोग ऐसा करके अपनी महान विद्वता मानते हैं। जैनेतर लोग के बीच हम खूब हंसी के पात्र बनते हैं। सोशल मीडिया अपनी संस्कृति , सभ्यता की प्रभावना का अच्छा माध्यम बन सकता है यदि हम इसे सकारात्मक सोच के साथ उपयोग करना सीख जाएं।
हम संकल्पित हों कि सोशल मीडिया का उपयोग सकारात्मक कार्यों के लिए करें।