कबूतर प्रेम पत्र ही नहीं -खतरनाक रोगों को फैलाने वाले हैं

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आजकल कबूतर के पीछे एक अंधविश्वास हैं की इनको दाना खिलाने से धन और समृद्धि मिलती हैं पर इससे अधिक मननगरों। शहरों में घनी क्षेत्रों और कॉलोनी में बहुत अधिक भोजन की तलाश के साथ रहने की सुखद स्थिति मिलने बहुतायत में आकर रहते हैं और उनके द्वारा किया जाने वाला मल /बीत बहुत ही हानिकारक होता हैं।
कबूतर की बीट से जुड़ी बीमारियों में क्रिप्टोकॉकोसिस, हिस्टोप्लाज्मोसिस और सिटाकोसिस शामिल हैं। मल-मूत्र साफ करते समय जो धूल बनती है उसमें सांस लेने से आप इन बीमारियों से संक्रमित हो सकते हैं। कबूतर संबंधी बीमारियों का खतरा दुर्लभ है।
हमलोगों में से बहुत से लोग अपने घरों की छतों पर, आंगन में या चौराहों पर कबूतरों को दाना डालते हैं। शांति का प्रतीक माना जाने वाला पक्षी कबूतर यूं तो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन घरों में इसकी आवाजाही से हमारे स्वास्थ्य को काफी बड़ा नुकसान हो सकता है। कबूतरों के बीट, पंख आदि से आपको जानलेवा बीमारियां भी हो सकती है।
कबूतरों पर हुए शोध में यह बात सामने आई है कि जिसकी बीट और पंख मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। कबूतरों के बीट और पंख आपको बीमार बना सकते हैं। उनकी बीट से होने वाले इंफेक्शन से आपके फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में आपके घरों में कबूतरों की आवाजाही बीमारियों को दावत देने जैसा है।
कबूतर जहां अक्सर बैठते हैं, वहीं बीट भी करते हैं और ये जहां बीट करते हैं, दुबारा उन्हीं जगहों पर बैठना पसंद करते हैं। इसलिए, कबूतरों के जमावड़े वाली जगह पर दुर्गंध भी होती है। कबूतरों की बीट सूखने पर यह सूखा होकर पाउडर जैसा हो जाता है और पंख फड़फड़ाने और उड़ने से ये पाउडर हवा में उड़ते हैं और फिर हमारे सांस लेने के दौरान ये हमारे अंदर पहुंच जाते हैं।
कबूतरों पर शोध में खुलासा हुआ है कि हमारी सांसों के जरिए कबूतरों की बीट हमारे फेफड़ों तक पहुंच जाती है, जिससे हमें लंग्स की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इन खतरों के बारे में हमें पता भी नहीं चल पाता है। घरों में एयर कंडीशन(एसी) के आसपास अक्सर कबूतर घोंसला बना लेते हैं। ऐसे में यह खतरा और बढ़ जाता है।
इस संबंध में हुए शोध के अनुसार, एक कबूतर एक साल में 11.5 किलो बीट करता है। कबूतरों की बीट सूखने के बाद उसमें परजीवी पनपने लगते हैं, जो हवा में घुलकर संक्रमण फैलाते हैं। , इस संक्रमण की वजह से शरीर में एलर्जी, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में इन्फेक्शन जैसी बीमारियां हो सकती है। वहीं, इससे फंगल इंफेक्शन वाली बीमारियां भी हो सकती है।
कबूतर के बीट और पंख से होने वाली बीमारियां ज्यादातर फेफड़ों से ही जुड़ी होती है, जिसे हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस कहा जाता है। इस बीमारी में लंग्स का एलर्जिक रिएक्शन होता है। यह बेहद खतरनाक होता है। शुरुआत में इसका पता न चलने पर यह बीमारी गंभीर अवस्था में पहुंच सकती है और पीड़ित को सांस लेने में बहुत परेशानी हो सकती है।
हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस में पीड़ित को खांसी हो सकती है, जोड़ों में दर्द रहने लगता है और फेफड़ों को हवा से आक्सीजन खींच पाने में भी दिक्कत हो सकती है। समय रहते पता न चले तो यह जानलेवा भी हो सकता है। डॉक्टर, घरों में कबूतरों का जमावड़ा न होने देने की सलाह देते हैं।
कबूतर का मल क्या है?
कबूतर की बीट छोटे कंचों की तरह दिखती है और सफेद-भूरे रंग की दिखती है। यदि मल ढीला और गीला है, तो यह संकेत हो सकता है कि पक्षी तनावग्रस्त या अस्वस्थ है।
कबूतर जैसे पक्षी नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट को यूरिया और अमोनिया के बजाय यूरिक एसिड के रूप में उत्सर्जित करते हैं, क्योंकि वे यूरिकोटेलिक होते हैं। चूंकि पक्षियों में मूत्राशय नहीं होता, इसलिए यूरिक एसिड उनके मल के साथ उत्सर्जित हो जाता है। कबूतर की बीट भी कवक के विकास को बढ़ावा देने से संबंधित है। अमोनिया की उपस्थिति से श्वसन संबंधी समस्याएं और जलन होती है।
कबूतर की बीट से 60 से अधिक विभिन्न बीमारियाँ फैल सकती हैं। यह हिस्टोप्लाज्मोसिस, क्रिप्टोकॉकोसिस और कैंडिडिआसिस जैसे फंगल रोगों, सिटाकोसिस, एवियन ट्यूबरकुलोसिस जैसे जीवाणु रोगों के अलावा बर्ड फ्लू का कारण बन सकता है।
साँस लेने पर, वे यकृत और प्लीहा को प्रभावित करते हैं। तेज बुखार, निमोनिया, रक्त असामान्यताएं और इन्फ्लूएंजा कुछ दृश्यमान लक्षण हैं।
कैसे बचें?
कबूतरों की बीट को साफ करते समय डिस्पोजेबल दस्ताने, शू कवरिंग और फिल्टर वाले मास्क का उपयोग करने की सलाह दी जाती है जो 0.3 माइक्रोन तक के छोटे कणों को फंसा सकते हैं। बीजाणुओं को हवा में फैलने से रोकने के लिए बूंदों को पानी से थोड़ा गीला करने की भी सिफारिश की जाती है। एक बार मल साफ हो जाने के बाद, उन्हें सीलबंद बैगों में संग्रहित किया जाना चाहिए, और निर्दिष्ट क्षेत्रों में उनका निपटान करने से पहले बैग के बाहरी हिस्से को धोया जाना चाहिए।
सावधानी से ही बचाव करना सर्वोत्तम हैं। एक बार संक्रमित होना जानलेवा हो सकता हैं
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३

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