काम, क्रोध, लोभ, वासना, भय इत्यादि की भावनाएं संकुचित व्यक्तित्व बनाती है-श्रीक्षीरसागरमहाराज

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प्रचार मंत्री प्रकाश पाटनी ने बताया कि प्रातः जिनेंद्र देव का अभिषेक के बाद चांदमल जैन, राजकुमार शाह, अशोक कासलीवाल, राकेश बघेरवाल ने शांतिनाथ एवं पार्श्वनाथ भगवान की शांतिधारा की। इस उपरांत क्षीरसागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इंसान गलतियों का पुतला है और पूरे जीवन में कई छोटे-मोटे पाप होते हैं। उन पापों से कैसे बचे। उन्होंने कहा कि पाप का जन्म मनुष्य के मन में होता है। मन की स्वच्छता से ही पाप से बचाव होता है। मन को शुद्ध सात्विक विचारों से परिपूर्ण रखना, मौन, मनोनिग्रह, सौम्यता, प्रसन्नता आदि मानसिक साधना में करते रहना चाहिए। मन में किसी प्रकार के विकार आते ही सावधान हो जाना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, वासना, घृणा इत्यादि की भावनाएं संकुचित व्यक्तित्व बनाती है। उन्होंने कहा कि भीतर के विकार को दूर करना चाहिए। वाणी से पाप न कीजिए, प्रिय और हितकारक  भाषा बोलिए। अच्छे पुस्तकों का स्वाध्याय कीजिए। जैसे-जैसे उसका मन पाप की निंदा करता हैऔर सदृविचार तथा आध्यात्मिक के प्रभाव में आता है। वैसे-वैसे पाप से छूट जाता है। उन्होंने कहा कि भविष्य में किसी प्रकार का पाप न करने का दृढ़ संकल्प और उसका अभ्यास करना ही मुक्ति का साधन है।
प्रकाशनार्थ हेतु।       प्रकाश पाटनी
             प्रचार एवं संगठन मंत्री
              भीलवाड़ा

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