पार्श्वनाथ जिनालय डडूका में विराजित आचार्य विशुद्ध सागरजी महाराज के सुशिष्य मुनि शुद्ध सागरजी महाराज प्रतिदिन प्रातः अपने प्रवचनो से नगर में ज्ञान गंगा और जिनवाणी का अप्रतिम प्रवाह कर रहे हैं। आज मिथ्या दर्शन और मिथ्या दृष्टि पर सारगर्भित प्रवचन देते हुए मुनिराज ने कहा कि जीवन की वास्तविकता को जानकर भी हम सब गलतफहमी में जी रहे है। जीवन भर आपा धापी में जीते हुए जो कुछ हम जुटाते हैं वो सब यही धरा रह जाना है। चक्रवर्ती सम्राटों के पास अपार वैभव था, 18 करोड़ घोड़े, 84लाख हाथी, 96हजार रानियां, सारा वैभव उन्होंने जब वैराग्य हुआ एक झटके में त्याग दिया। ये सब उन्होंने अपने मस्तिष्क से छोड़े, ये सोचा की कभी ये सब संपदा मेरी थी, अब मेरी नहीं है। मुनि श्री शुद्ध सागरजी ने कहा कि अगर आपका मस्तिष्क व्यवस्थित है तो आपको सारा संसार व्यवस्थित लगेगा। ज्ञान की बातें हम सब स्वीकार करते हैं पर उसे श्रद्धा से स्वीकार नहीं करते। जीवन की वास्तविकता को यदि हम श्रद्धा से स्वीकार करले तो परिणति ही बदल जाए। हम सब को पता है मौत आने पर हम सबको जाना है, कुछ भी साथ ले कर नहीं जाएंगे फिर भी हम दिन रात कुछ न कुछ जोड़ने में ही लगे रहते है। बच्चों को उनके भाग्य में जो होगा वहीं मिलेगा, हमारा उनके लिए जोड़ना कुछ काम नहीं आएगा।
युवाओं को मुनि श्री ने विश्व विजेता सिकंदर का उदाहरण देते हुए बताया की उसने अपनी अंतिम यात्रा में अपने दोनों खाली हाथ कफ़न के बाहर रखने को कहा था ताकि दुनिया देखले की सब खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ ही जायेंगे चाहे वह सम्राट हो, भिखारी हो, पुरुष हो या स्त्री हो।
मुनि श्री का प्रवचन इतनी सादी भाषा में होते है की हर कोई उन्हें आसानी से समझ के जीवन में उतार सकता है। दिगंबर जैन दशा हूमड़
समाज डडूका, जैन युवा समिति डडूका, प्रभावना महिला मंडल डडूका तथा दिगंबर जैन पाठशाला डडूका के बच्चे, युवा ओर पंच प्रातः कालीन वेला में बारिश की रिमझिम के बीच मुनि श्री शुद्ध सागरजी महाराज द्वारा प्रवाहित ज्ञान गंगा में गोते लगाते हैं तो वे जिनवाणी वाणी से सराबोर हो जाते हैं।
मुनि श्री शुद्ध सागरजी महाराज के प्रतिदिन के प्रवचन शुद्ध जिनवाणी यू ट्यूब चैनल पर उपलब्ध रहते हैं।
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