अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की उत्तराखण्ड से दिल्ली। तरुणसागरम तीर्थ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज यह अहिंसा संस्कार पदयात्रा दिल्ली के श्री दिगम्बर जैन सूरजमल समाज कों प्रवचन के मध्याम से गुरुदेव अंतर्मना ने प्रदान किये कई नियम अंतर्मना गुरुदेव ससंघ का निरंतर दिल्ली में चल रहा है पदविहार जिसमे आज कृष्णा नगर से प्रातः काल पदविहार कर भव्यतिभव्य शोभा यात्रा के साथ सूरजमल विहार में हुआ प्रवेश के पश्चात देव वंदना देव दर्शन के पश्चात मंगल वचनामृत का हुआ समापन जिसमे बड़ी अधिक संख्या में भक्त शामिल रहे
उभय मासोपवासी साधना महोदधि प.पू. अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज उपाध्याय श्री 108 पियूष सागर जी महाराज श्री दिगम्बर जैन कृष्णा नगर दिल्ली विगत कई वर्षों से निरंतर चल रही प्रतिदिन प्रातः पूजन दीप आराधना हुई संपन्न हुई जिसमे बड़ी संख्या में भक्तो ने पूजन का लाभ प्राप्त किया श्री दिगम्बर जैन कृष्णा नगर दिल्लीसाधना के शिरोमणि अंतर्मना गुरुदेव के मुखरविन्द से संपन्न हुई अभिषेक शांतिधारा श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सूरजमल विहार, दिल्ली
तेज दोपहरी भीषण गर्मी में साधना शिरोमणि प्रतिदिन घंटो करते है खुले में सामायिक श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सूरजमल विहार, दिल्ली समस्त संघ की संपन्न हुई अंतर्मना गुरुदेव की दो उपवास के पश्चात संपन्न हुई पारणा श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सूरजमल विहार, दिल्ली
अंतर्मना गुरुभक्त परिवार के द्वारा अष्टद्रव के सहित रूप से संपन्न हुई गुरुपूजन श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सूरजमल विहार, दिल्ली
संध्या गुरुभाक्ति प्रवचन मंगल आरती 21/06/2025श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सूरजमल विहार, दिल्ली आहारचर्या संपन्न हुई वहां उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि।
खरीद लो — दुनिया के सारे भोग विलास ऐशों आराम.. जब इन सबसे थक जाओ – हार जाओ – निराश हो जाओ, तो फिर हमें बताना — सुख-शान्ति आनंद प्रेम सुकून के दाम क्या है-?
कभी आपने ध्यान दिया हो — दुनिया की हर चीज में तीन भाव पैदा होते हैं,, जैसे — नदी – खूब खुशी देती है, कभी रुलाती है, तो कभी अपनी सुन्दरता की छटा बिखेरती है। लोग नदीयों की सुन्दरता देखने कहां-कहां नहीं जाते हैं। लोग नदी किनारे खड़े होकर घन्टो गुजार देते हैं। उसकी वरदानी छांव में, शीतल हवा, मन को मोहने वाली लहरें देखकर कौन खुश नहीं होगा-?इतिहास साक्षी है हमारे साधु सन्तों ने, त्यागी तपस्वियों ने, प्रकृति का बहुत सम्मान किया। आज भी जैन साधु साध्वी – वनस्पति को तोड़ते नहीं, जल को अनावश्यक बहाते नहीं, अग्नि जलाते नहीं, रहने के लिए घर बनाते नहीं, पेट भरने के लिये भीख मांगते नहीं। साधु सन्तों ने, तीर्थंकर भगवन्तों ने, प्रकृति को देवी कहकर, पेड़ पौधे में जीव बताकर उसका सरंक्षण किया। भोग विलास और सुविधा भोगी मनुष्य ने प्रकृति के साथ अपने पवित्र रिश्तों को खत्म कर दिया। परिणामतः भोग विलास के भौतिक संसाधन से मनुष्य जीवन में खतरा पैदा हो गया, क्योंकि पर्यावरण का असन्तुलन, जल की कमी, वायु का परिवर्तन ने पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है। आज ना शुद्ध हवा है, ना शुद्ध पानी, ना शुद्ध आनाज, ना शुद्ध साग सब्जी, ना शुद्ध फल फूल।प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का अर्थ है – अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करना। हम प्रकृति का उपकार मानते हुए उसे धन्यवाद दें और स्वयं धन्य बनें। क्योंकि जो प्रकृति की कद्र करते हैं, प्रकृति उनका सम्मान करती है…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद