जो लोग हिम्मत करते हैं वे पारसनाथ भगवान के चरणों में पहुंच जाते हैं – आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी

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औरंगाबाद संवाददाता  नरेंद्र /पियुष जैन – परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के बीस पंथी  कोटी में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि महामुनिराज ने मकर संक्रांति पर आदिवासी समाज को शुभकामनाएं देते हुए उनके सेवाकार्यों को सराहा है।

जैन मुनि सिंहनिस्क्रीय व्रतधारी आचार्य श्री 108 अन्तर्मना प्रसन्न सागर जी ने शनिवार को मौन वाणी से कहा कि नववर्ष एवं मकर संक्रान्ति का महान पर्व हम इस सोच और संकल्प के साथ शुरू करें कि बीते हुए दिनों की बुराईयों को, आपस में हुये वाद-विवाद को, एक दूसरे की गलतियों को नहीं दोहरायेंगे और आपस में प्रेम, सद्भाव मैत्री, के साथ जीवन निभायेंगे।कहा कि, मैं मानता हूं कि संकल्प के पथ पर चलना कठिन काम है लेकिन असम्भव नहीं।

उल्लेखनीय है कि स्वर्णभद्र कूट पर आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज इस भीषण ठंड में तपस्यारत हैं। उन्होंने मधुवन के सभी लोगों, आदिवासी समाज को नववर्ष एवं मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं दी हैं। प्रसन्न सागर जी महामुनिराज ने यह भी कहाजो लोग हिम्मत करते हैं वे पारसनाथ भगवान के चरणों में पहुंच जाते हैं और जो हिम्मत हार जाते हैं, वे सीता नाला से वापस लौट आते हैं। अति सौभाग्यशाली हैं कि आप सबको तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत की वरदानी छांव में जीवन जीने का अवसर मिल रहा है। इसलिए आप सभी भव्य जीव हैं।

आप लोगों ने तीर्थयात्रियों के मन में अपने कार्य और कर्त्तव्य से सेवा समर्पण का जो विश्वास जगाया है वह प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। कोई भी जैनयात्री एवं माता- बहिने आपके साथ, अर्धरात्रि को अकेले, पूरे पर्वत की निडरता के साथ, निःसंकोच होकर वन्दना कर आती है, यह पारसनाथ भगवान और आपके अखण्ड विश्वास का ही फल है। पूरे मधुवन में किसी ने भी आज तक किसी भी यात्री से गंदी हरकतें नहीं की और ना ही गंदा व्यवहार किया। आप पर्वत की पवित्रता और स्वच्छता का ध्यान रखेंगे। पर्वत पर कोई भी मादक पदार्थ ना खायेंगे, ना किसी को खाने देंगे।

  • नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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