आलेख रेखा संजय जैन
जिन्होंने कभी किसी की निंदा, बुराई, आलोचना नहीं की बल्कि सदैव योग्यता के अनुसार संत, पंथ, विद्वान, प्रतिभाशाली आदि का सम्मान-विनय किया, जिनसे समाज को सीखने को मिला, जो सभी के आदर्श थे…हम बात कर रहे हैं श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला के समाधिस्थ जगद्गुरु कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की, जो आज हमारे बीच नहीं हैं। आज उनका 75वां जन्म दिवस है। उनका जन्म 3 मई, 1949 को कर्नाटक के वारंग में हुआ। बचपन में उनका नाम रत्नवर्मा था। उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर और बैंगलोर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया था। भट्टारक स्वामी 12 दिसंबर, 1969 को संत बने और 19 अप्रैल, 1970 को श्रवणबेलगोला मठ के धर्माचार्य बने। स्वामी जी श्रवणबेलगोला का पर्याय थे, जिन्होंने वहां की संस्कृति, संस्कार को संवारा और उसे आगे बढ़ाया। मैं उनसे कभी व्यक्तिगत रूप से तो नहीं मिली लेकिन आज मैं जिस श्रीफल जैन न्यूज की संपादक हूं, यह नाम उन्हीं का दिया हुआ है। मेरे आराध्य गुरु अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर एक पत्रिका निकालना चाहते थे, तब स्वामी जी ने ही वर्ष 2005 में श्रीफल पत्रिका नाम दिया। मुझे मुनि श्री की एक डायरी पढ़ने को मिली, जिसमें उन्होंने स्वामी जी को पिता और श्रवणबेलगोला को मां की उपमा दी है। उस डायरी को पढ़ने के बाद लगा कि मैं स्वामी जी क्यों नहीं मिल पाई, यह मेरा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। डायरी में जो लिखा था, उसके कुछ अंश आपसे साझा कर रही हूं…
स्वामी जी संतवाद-पंथवाद में विश्वास नहीं रखते थे। वह पंच परमेष्टि की भक्ति में विश्वास रखते थे। वह कहते थे कि श्रवणबेलगोला आने वाले हर संत का सम्मान, उनकी व्यवस्था श्रद्धा-भक्ति से करनी चाहिए। संत उनसे विहार के लिए शुभ मुहूर्त पूछते थे तो वह कभी किसी भी संत को विहार का मुहूर्त नहीं बताते और कहते कि श्रवणबेलगोला तो श्रवण (संतों) का ही है, उन्हें तो यहीं रहना चाहिए, साधना करनी चाहिए। एक बार श्रवणबेलगोला में कई आर्यिकाओं का चातुर्मास हुआ। वे भट्टारक परंपरा को नहीं मानती थीं। वे वहां रहकर स्वामी जी की निंदा करती थीं लेकिन स्वामी जी शांत मन से यही कहते थे कि हमें अपनी भक्ति कर पुण्यार्जन करना चाहिए, बाकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
वह कहते थे कि अध्यात्म के लिए जितना मंदिर, ज्ञान और आचरण जरूरी है, उतना ही संसार में स्वच्छ समाज भाव को निर्मल बनाए रखने के लिए, मंदिर के महत्व को समझने-समझाने के लिए आश्रम, स्कूल और चिकित्सालय भी जरूरी हैं। इसीलिए उन्होंने इस ओर भी काफी काम किया। स्वामी जी का मानना था कि समाज, देश के लिए अगर कोई कुछ करता है तो उसका यथायोग्य सम्मान होना चाहिए, जिससे उसे आगे भी कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहे। एक बार एक विद्वान ने शॉल पहनने से मना कर दिया तो स्वामी जी ने कहा कि हम आप को शॉल नहीं पहना रहे बल्कि आपके भीतर के ज्ञान(सरस्वती) को पहना रहे हैं, जैसे जिनवाणी को रखते हैं वैसे ही।
वह समय, स्थान, व्यक्ति, परिस्थिति आदि को देखकर काम करने का निर्णय लेते थे। उन्होंने सदैव आगम, तीर्थंकर की वाणी को प्रमाण मान कर कार्य किया। इसलिए उन्होंने कभी किसी व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि प्रतिभा, गुण देखकर ही लोगों को धार्मिक, सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़ाया और अवसर दिया। स्वामी जी की व्यक्तिगत टीम भी इतनी मजबूत थी कि उन्होंने स्वयं बिना अत्याधुनिक संसाधनों के दो-दो महामस्तकाभिषेक सादर संपन्न किए। स्वामी जी नई- नई प्रतिभाओं को अवसर देते थे, जिससे नई टीम तैयार होती जाए। डायरी में ऐसे कई नामों का जिक्र भी है।
उन्होंने कभी संतों की सार्वजनिक निंदा नहीं की। एक बार जब आचार्य श्री विद्यासागर महाराज गोम्मटगिरी में भट्टारक परंपरा पर बोले तो स्वामी जी मौन रहे और न ही उन्होंने किसी अन्य भट्टारक को कुछ बोलने दिया। स्वामी जी कहते थे कि कर्म करने में विश्वास रखो, बोलने में नहीं। आगम, परंपरा, इतिहास के अनुसार करते चलो और भगवान पर अपनी श्रद्धा बनाए रखो, उसी में पुण्य है।
डायरी में यों तो ढेर सारी बाते हैं लेकिन अंतिम बात जिसका जिक्र मैं अवश्य करना चाहूंगी, वह यह है कि स्वामी जी हमेशा कहते थे कि सुनो सब की लेकिन करो वही हो जो क्षेत्र, धर्म, इतिहास,परंपरा को सुरक्षित रखने के साथ-साथ उसे आगे बढ़ाए क्योंकि सब अपने-अपने अनुभव बताते हैं लेकिन तुम जहां हो, वहां का क्षेत्र, धर्म, परंपरा, इतिहास क्या है, यह तुम्हें ही पता रखना है और समय पर जवाब भी तुम्हें ही देना है।
ऐसे महान स्वामी जी को हमने अचानक 23 मार्च, 2023 की दुर्भाग्यशाली सुबह खो दिया। मैं श्रीफल जैन न्यूज की पूरी टीम की ओर से स्वामी जी को शत- शत नमन करती हूं। उनका 75वां जन्म महोत्सव हम सभी अपने-अपने स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर मनाएं और उनकी दी हुई सीखों को एक बार से फिर से जीवन में उतारने का प्रण लें, यही हमारे उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।