जिस परिस्थिति को मन स्वीकार ले..समझो वही सुख है..! अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा

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औरगाबाद  नरेंद्र पियूश जैन मन का स्वभाव ऐसा है कि वह ना यहां लगता है, ना वहां लगता है। मन द्वन्द में जीता है,, जो करोगे, वहीं से विपरीत की सोचेगा  जहां तुम हो – वहां से मन नदारद रहेगा।जहां नहीं हो, वहां का रस मांगेगा जो मिला है, वहां से कुछ क्षण के बाद ही मन को व्यर्थ लगने लगेगा। जो नहीं मिला उसे पाने के लिए, मन परेशान और बैचेन रहेगा।
इसलिए कहते हैं ना दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
मन के इस स्वभाव को जानो, समझो और मन के द्वन्द को दरकिनार करो। क्योंकि *मन का स्वभाव है — कुछ मिल जाए तो  खुश और ना मिले तो ज्यादा दुःख। दुनिया का हर गरीब, अमीर बनना चाहता है और दुनिया का हर अमीर सुन्दर दिखना चाहता है। कुंवारे लड़के शादी करना चाहते हैं और शादी सुदा इन्सान मरने की सोचते हैं। संसार में कोई भी ना मन से खुश है और ना अपने-आप से।
जो बिना मेहनत के मिलता है, वह दो कोड़ी का लगने लगता है और जो पदार्थ मिला नहीं और तुमसे दूर है, वह दूर होने के कारण से अनमोल धरोहर के समान हो जाता है। इसलिए *मन के इस आधार भूत जाल को समझो, जानो और पहचानो…!!!अंतर्मना गुरुदेव प्रसन्न सागरजी महाराज ससंघ  श्रीतरुणसागरम् तीर्थ (जैन मंदिर) बसंतपुर ,सैंतली,  मुरादनगर, गाजियाबाद उत्तरप्रदेश में विराजमान है विगत कई वर्षों से निरंतर चल रही प्रतिदिन प्रातः पूजन दीप आराधना हुई संपन्न हुई जिसमे बड़ी संख्या में भक्तो ने पूजन का लाभ प्राप्त किया साधना के शिरोमणि अंतर्मना गुरुदेव के मुखरविन्द से  संपन्न हुई अभिषेक शांतिधारा
दोपहरी भीषण गर्मी में उपवास में साधना शिरोमणि अंतर्मना गुरुदेव प्रतिदिन 1 घंटे करते है खुले में सामायिक
अंतर्मना गुरुभक्त परिवार के द्वारा अष्टद्रव के सहित रूप से संपन्न हुई गुरु पूजन।                      नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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