जिस धर्म में जन्म हुआ है उसके लिए प्राण भी चले जाए परंतु धर्म न जावे जैन मुनि प्रज्ञान सागर

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नैनवा जिला बूंदी 23 जून सोमवार
अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर में प्रात काल 8:30 पर जैन मुनि प्रज्ञानसागर महाराज ने बताया मनुष्य का जब जन्म होता है तो उसे उसी धर्म के संस्कार दिए जाते हैं वह धर्म से ही वह अपने नाम की पहचान बनाता है
आज का मनुष्य अपने धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार है क्योंकि धर्म की रक्षा होना बहुत जरूरी है
बिना धर्म के जीवन अधूरा है धर्म जीवन का सबसे बड़ा आभूषण है जिसको हम धारण करके अपनी पहचान बनाते हैं
मुनि ने भी बताया कि संसार में अलग-अलग धर्म के अलग-अलग मतों की अलग-अलग लोग होते रहते हैं सभी धर्मों में सदैव सच्चे बोलना असत्य से दूर रहना का उपदेश देता है
एक बगीचे का उदाहरण देते हुए मुनि ने बताया कि एक बहुत सुंदर बगीचा था उसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल चंदन कस्तूरी गुलाब आदि लगे हुए थे बगीचे में घूमने वाले को सुगंध आती थी हरा-भरा बगीचा देखकर हर व्यक्ति बगीचा घूमने आते थे एक रोज बगीचे में एक बंदर आया और बगीचे के माली से दोस्ती कर बैठा
बगीचे का मालिक को कुछ काम आने से पूरा बगीचा बंदर को 8 दिन के लिए जिम्मेदार बनाकर कर बाहर चला गया और उसने कहा पेड़ पौधों को पानी पिलाना देखरेख अच्छी तरह करना
बंदर ने पौधों को पानी तो पिलाया लेकिन उसे यह ज्ञान नहीं था पानी
देखने के लिए बगीचे के बंदर ने सारे पौधे उखाड़ दिए पूरा का पूरा बगीचा उजड़ गया वीरान हो गया बंदर पौधों में पानी देखना चाहता था
माली आया उसने देखा मेरा बगीचे को क्या हो गया बंदर ने कहा कि मैंने पानी देखने के लिए इन पौधों को उखाड़ दिया
बिना ज्ञान के बंदर ने पूरा का पूरा बगीचा वीरान कर दिया
ज्ञान का होना बहुत जरूरी मुनि ने बताया
महावीर कुमार जैन सरावगी

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