जिनालयों में चित्र लगाने का आगम में उल्लेख नहीं

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जिनालयों में चित्र लगाने का आगम में उल्लेख नहीं*
*मेरा सौभाग्य कि मेरे गुरु संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज,मुनिपुंगव श्री सुधा सागर महाराज*।
*गौरेला*। *वेदचन्द जैन*।
    जिनालयों में साधुओं,आचार्यों के चित्रों से समाज में वैमनस्य और विवादों में वृद्धि हो रही है, इसीलिए केवल जिनेन्द्र भगवानों के ही चित्र लगायें जाना चाहिए। वैसे आगम में चित्र लगाये जाने का कोई उल्लेख नहीं है। निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधा सागर महाराज ने जिज्ञासा का समाधान करते हुए उपरोक्त उद्बोधन दिया।
     चेतनोदय तीर्थ क्षेत्र बहोरीबंद में एक जिज्ञासा का समाधान करते हुए मुनिपुंगव श्री सुधा सागर महाराज ने कहा कि जैन धर्मावलंबियों में सहिष्णुता का ह्रास हो रहा है। पहले तो पंथवाद के आधार पर विभेद व्याप्त था। धीरे धीरे ये विभेद संघवाद में आया और अब तो एक ही संघ के साधुओं में भेद आ गया है। समाज में भेद का दुष्प्रभाव दिखाई देता था,अब तो ये अवांछनीय भेद दुर्भाग्य से साधुओं में भी दिखने लगा है।
   निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव सुधा सागर महाराज ने कहा कि अब तो आहार के चौका लगाने दर्शन करने में भी ये देखने लगा है कि कौन साधु है। मूल प्रश्न था कि जिनालयों में समाज में आचार्यों साधुओं के चित्रों को लगाने पर विवाद होता है।इस जिज्ञासा के समाधान में उपरोक्त भाव व्यक्त करते हुए मुनिपुंगव श्री सुधा सागर महाराज ने कहा कि जिनागम में जिनालयों में चित्र लगाने का कोई उल्लेख नहीं है। जिनालयों में जिनेन्द्र भगवान ही होना चाहिए।
    जिनालयों में आचार्यों साधुओं के चित्र लगाने के स्थान पर एक वृहद कमरा बनाकर उसमें समाज के सदस्य अपनी-अपनी पसंद के और जिन साधु आचार्य पर श्रद्धा है उन सभी के चित्र लगा लें जिससे चित्र के आधार पर कोई विवाद न हो। महाराज जी ने कहा कि साधु और समाज में सहिष्णुता और परस्पर आदर में वृद्धि होना उचित होगा। साधु गुण और साधना के कारण पूज्यनीय आदरणीय होता है। मेरा सौभाग्य है कि मैं पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का शिष्य हूं जिनकी साधना की श्रेष्ठता, गुणों की पूजा पूरा संसार करता है।
*वेदचन्द जैन*

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