जिन विद्वानों ने ब्रम्हचारी अवस्था मे आचार्य प्रसन्न सागर को शिष्य रूप में शास्त्र ज्ञान दीया

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जिन विद्वानों ने ब्रम्हचारी अवस्था मे आचार्य प्रसन्न सागर को शिष्य रूप में शास्त्र ज्ञान दीया…. वही विद्वान  शिष्यों ने आचार्य श्री को गुरु रूप में स्वीकार कर जेनश्वरी दीक्षा ली
महाव्रत संस्कार के साक्षी बनें सेकड़ो भक्त
लाल अब देश मे करेंगे कमाल….. अंर्तमना आचार्य प्रसन्न सागर जी
औरंगाबाद  /सोनकच्छ  नरेंद्र/रोमील/पियूष जैन.                  विद्वानों को पसंद किया उन्होंने मेरे त्याग तप आचरण को पसन्द किया। इनकी कथनी और करनी एक सी है। उच्चारण व आचरण एक सा है। जो कहा उसे पहले स्वयं ने जिया अपना वैभव छोड़ अपने आप को तप से तपाया है। इनको मेने अपना धर्म का पिता स्वीकार कर एक ही बात कही की बस अब करलो दृढ़ संकल्प …देवता चरण पखारेगे। हमारे दोनों लाल अब देश मे करेंगे कमाल उक्त बात महातपस्वी सन्त अंर्तमना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने अपने शिष्य दीक्षार्थी भारत के मूर्धन्य विद्वान वर्णी क्षुल्लक श्री सहज सागर जी महाराज एवं ब्र.पं.दीपचंद जी जैन को जेनश्वरी दीक्षा देने के पूर्व कही।
शिष्य बन गए गुरु मन प्रफुल्लित है
सन 1987 में दाहोद गुजरात मे दीक्षार्थी प.विद्वान सुशील कुमार जैन मेंनपुरी को गणाचार्य पुष्पदन्त सागर जी महाराज ने अपने संघ के ब्रह्चारी भैया ओ को शास्त्र ज्ञान देने के लिए बुलाया था। उस समय ब्रह्मचारी भैया  के रूप वर्तमान आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने उनसे शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। उस समय से प.सुशील कुमार जी अन्तर्मना आचार्य की पहली पसंद बन गए। जहाँ लगातार संपर्क में रहने के बाद मधुवन शिखर जी मे आचार्य श्री ने उन्हें अपने धर्म का पिता मानते हुए कहा कि अब कर लो दृढ़ संकल्प …देवता चरण पखारेगे।
रोचक बात…… कैसे  गुरु शिष्य व शिष्य गुरु बने
प.सुशील जी ग्रहस्त अवस्था मे आचार्य श्री से 1 साल के लिए पूरे दिन में केवल  2 टाइम के  अन्य ग्रहण करने का नियम लिया था।  जिसे निभाने के बाद वह पुनः गुरुदेव के पास पहुचे ओर कहा कि आचार्य श्री मेरा नियम पूरा हुआ अब आप मुझे पहले की तरह 3 टाइम अन्य ग्रहण करने की छूट देवे। शिखर जी गुफा में मोन साधना कर रहे गुरुदेव ने एक पर्ची लिखकर पंडित जी को सोपी जिसमें लिखा था कि अब आप को पूरे दिन में केवल 1 टाइम भोजन करना है। जिसे पड कर वह 2 मिनिट के लिए  स्तब्ध हो गए और दृढ़ संकल्प के साथ नियम को स्वीकार कर लिया। इसी तरह विद्वान प.दीपचंद जी के मुख से सन 87 में  आचार्य श्री ने स्तुति विधा सुनी थी। जिसके बाद सन 2000 में पुनः आचार्य श्री पं. श्री को बुलाकर उस स्तुति विधा का ज्ञान लिया जो आज भी आचार्य श्री के मुख से प्रथम संबोधन रहता है। जब से आज तक वह नियम का पालन करते आ रहे है।  जिन्होंने पढ़ाया  आचार्य श्री ने महाव्रत का नियम देते हुए  उन्ही पंडित  विद्वान सुशील कुमार को क्षुल्लक सहज सागर बनाया जिसके बाद उन्हें मुनि दीक्षा देकर प्रवर्तक मुनि सहज सागर बनाया। इसी तरह विद्वान प. दीपचंद जी जैन को जेनश्वरी दीक्षा देते हुए निर्यापक मुनि नवपद्म सागर की उपाधि से विभूषित किया है।
आयोजन के प्रवक्ता रोमिल  नरेंद्र पीयूष  जैन  ने बताया कि
मधुवन सम्मेद शिखर जी की धरा पर महासाधना के बाद अब कुंजवन कोल्हापुर महाराष्ट्र में आचार्य सन्मति सागर जी समाधि  स्थल पर लगभग 1000 हजार वर्षों के बाद पंचकल्याणक महोत्सव में इस सदी के सबसे बड़े महासाधक भारत गौरव साधना महोदधि तपाचार्य अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसत्र सागर जी महाराज के सानिध्य में बुधवार को भव्य जैनेश्वरी मुनि दीक्षा समारोह व महाव्रत संस्कार महोत्सव आयोजित किया गया। जहाँ संघस्त
भारत के मूर्धन्य विद्वान वर्णी क्षुल्लक श्री सहज सागर जी महाराज एवं ब्र.पं.दीपचंद जी जैन महाव्रत लेकर सांसारिक मोहमाया का त्याग कर दिगम्बर मुद्रा को  धारण किया। जहाँ विधि पूर्वक आचार्य श्री के मुखारबिंद से मंत्रोच्चार के साथ से दीक्षार्थियों को दीक्षा प्रदान की गई। गौतरलब है की ब्रह्मनाथ मंदिर कुंजवन में जैन धर्म के बड़े व प्रसिद्ध विद्वानों ने मुनि दीक्षा ग्रहण की जिन्होंने अपने जीवन मे आचार्य श्री सहित कई सन्त भगवंतों व आर्यिका माता जी को शास्त्रों का  ज्ञान दिया है। रोमील जैन पियुष कासलीवाल  नरेंद्र  अजमेरा

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