हैदराबाद, /औरंगाबाद नरेंद्र/पियूषजैन. : ‘क्रोध, मान, माया, लोभ चार कषाय हैं। जो आत्मा को कसे, उसे कषाय कहते हैं। कषाय का आवेग होने पर उसमें बह नहीं जाना चाहिए, अपितु समता और शांति भाव से कषाय को जीतने का प्रयास करना चाहिए।’
उक्त उद्गगार
आगापुरा स्थित श्री 1008 चन्द्रप्रभु जैन मंदिर में जारी ज्ञान, ध्यान, शिक्षण शिविर में उपाध्याय 108 पीयूषसागरजी महाराज ने व्यक्त किए। पूज्यश्री ने कहा कि जब कोई व्यक्ति आप पर क्रोध करे, तो पहले आप थोड़ी देर के लिए शांत रहें, उसके बाद उसे जी लगाकर बात करें। क्रोध को क्रोध से नहीं, अपितु क्षमा और शांति से जीता जा सकता है।
अंतर्मना आचार्य 108 प्रसन्नसागरजी महाराज ने कहा कि लोगों को सदैव पुण्य एकत्रित करने का अवसर ढूँढ़ना चाहिए। दान और पूजन, तीर्थ यात्रा इसमें सहायक होते हैं। व्यक्ति को शाश्वत तीर्थ अयोध्या और शिखरजी की यात्रा एक बार अवश्य करनी चाहिए। किसी की मुनि दीक्षा
हो रही हो या किसी मुनि की समाधि हो रही हो, तो उसमें अवश्य जाना चाहिए। किसी मुनि को आहार दान जरूर देना चाहिए। जो मनुष्य अपने जीवन में ये काम नहीं करता, उसका जीवन बेकार है। कुछ तो है जो बदल गया है,
शाख के पत्तों का रंग उतर गया है..
एक वक्त था जब हर वक़्त साथ था वो मेरे,
शायद अब वक़्त बदल गया है..!
पहले लोग कभी-कभी बूढे़ हुआ करते थे, मगर आज कल लोग आए-दिनों बढे़ जाते हैं, समय से पूर्व ही बूढे़ हो जाते हैं।ऐसा क्यो ? क्योंकि आदमी का खान-पान, रहन-सहन सब कुछ बदल गया है। पाश्चात्य जीवन शैली आ गई है। पहले लोग कभी कभार बीमार होते थे और आज कल–? बस पूछो ही मत, कभी कभी स्वस्थ दिखते हैं। बाकी तो बीमारियाँ बनी ही रहती है। बीमारियाँ क्या बढ़ी, डॉक्टरों की चांदी हो गई।
संसार में डॉक्टर एक ऐसा अद्भूत प्राणी है जो यह तो नहीं चाहता कि मरीज मरे, पर यह जरूर सोचता है कि आदमी सदा बीमार बना रहे। आदमी के बीमार रहने से ही डॉक्टर स्वस्थ है। वकील हमेशा यही सोचता है कि लोग खूब लडे़। लोग लड़ेंगे तो वकील की दुकान चलेगी।
महावीर दुनिया के पहले महापुरुष हैं, जिन्होंने कहा कि दो ध्यान बुरे होते हैं और दो ध्यान अच्छे होते हैं —
आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान बुरे हैं।
धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान अच्छे हैं…!!! प्रवर्तक मुनि 108 सहजसागरजी
महाराज ने शिविरार्थियों को शिक्षण देते हुए कहा कि आचार चार प्रकार का होता है। पहला कुलाचार, दूसरा ग्रहस्थाचार, तीसरा श्रावकाचार और चौथा मूलाचार। नित्य देव दर्शन, पानी छानकर पीना, रात्रि भोजन का त्याग, अष्टमूलगुणों का पालन और सप्त व्यसन का त्याग ये कुलाचार है। जैन कुल में उत्पन्न हुए हो, तो इस कुलाचार का पालन करना ही होगा। देव पूजा, गुरु उपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप, दान यह गृहस्थ जीवन के आवश्यक कार्य हैं। 5 अणुव्रत, 3 गुणवत, 4 शिक्षाव्रत यह व्रत श्रावकाचार है। 28 मूलगुणों का पालन मुनि का मूलाचार है। अपनी अवस्था अनुरूप इनका पालन जीवन में आवश्यक है। मनुष्य
को सुबह जल्दी उठना चाहिए। शास्त्रों
कहा गया कि जो सूर्योदय से पहले उठता है, वह देवता के समान होता है, जो सूर्योदय के समय उठता है, वह मनुष्य के समान होता है और जो सूर्योदय के बाद उठता है, वह राक्षस के समान होता है। हमें प्रातः उठते ही नौ बार णमोकार मंत्र एवं चत्तारि मंगल का पाठ करना चाहिए। मंदिर नंगे पैर आना चाहिए। 1 घंटे का मौन लेकर उसमें जाप, स्वाध्याय, आत्मचिंतन करें। विभिन्न शिविरार्थियों ने कहा कि हमें इस शिविर से बहुत लाभ हो रहा है। अनेक नई-नई बातें जानने, सीखने को मिल रही है। बहुत बड़ी संख्या में लोग अभिषेक भी कर रहे हैं।
मंत्री राजेश पाटनी ने बताया कि शिविर स्थल पर सभी शिविरार्थियों के लिए अल्पाहार की व्यवस्था की गई है। शिविर में महिलाएँ और युवतियाँ बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं। 20-25 किलोमीटर दूर से शिविरार्थी आगापुरा जिनालय में उपस्थित हो जाते हैं। अंतर्मना संघ सान्निध्य में शिविर 6 जुलाई तक चलेगा नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद