-आचार्य विशुद्ध सागर जी
खरगोन/जीवन कुख्यात नहीं विख्यात होना चाहिए। खोटे कार्य करने की भावना कीचड़ में पत्थर फेंकने के समान है, जो स्वयं का जीवन बर्बाद करती है।
योग्यता रखी नहीं जाती, योग्यता प्रकट की जाती है।
यदि योग्यता को बढ़ाना है तो योग्य लोगों के साथ रहना चाहिए।
अयोग्य की संगति जीवन बर्बाद करती है ,ध्यान रहे सुविधाओं से योग्यता का विकास नहीं होता है
जीवन में किसी के अहित करने का भाव मन में नहीं लाना चाहिए। हमेशा हित करने का भाव रखें। जीवन में लोभ और वासना बुद्धि को भ्रष्ट करती है, इसलिए इनसे बचे।
उक्त विचार वेदी शिखर प्रतिष्ठा महा महोत्सव समारोह के प्रथम दिवस चर्या शिरोमणि श्रमणाचार्य, अध्यात्म योगी 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने राधा कुंज सभागृह में व्यक्त किए।
पूज्य श्री ने वर्तमान जीवन शैली में अपना जीवन बर्बाद कर रहे लोगों को सुलभ मार्गदर्शन दिया।
उत्पत्ति विनाश सहित होता है
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि जिस क्रिया से वर्तमान में शांति नहीं है तो भविष्य क्या होगा। धन कमाने के लिए व्यक्ति समय पर भोजन नहीं करता, धन कमाने के लिए शरीर बर्बाद करता है, इस शरीर को बीमारियां होने पर बचाने के लिए अस्पतालों में वही धन खर्च करता है ।
मोबाइल पर घंटों निंदा में लगा रहता है। ध्यान रहे जो शरीर मिला है वह उत्पत्ति है,उत्पत्ति के साथ नाश प्रारंभ हो जाता है। उत्पत्ति नाश सहित है यही वस्तु तत्व है ध्यान रहे नाश उपकारी होता है जिस प्रकार भोजन यदि पेट में जाने के बाद नाश न हो तो वह नुकसान पहुंचता है इसलिए उत्पत्ति और नाश दोनों ही सार्थक है ।मंच संचालक,
मीडिया प्रभारी राजेंद्र जैन महावीर, आशीष जैन ने बताया कि खरगोन पोस्ट ऑफिस चौराहा पर स्थित धर्मशाला में मंदिर 80 वर्ष प्राचीन था, जिसे सुंदर ढंग से मकराना के मार्बल से बनाया गया है।
राजेन्द्र जैन महावीर
सनावद
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