अंधेरे से उजाले की ओर एक यात्रा
– डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर
“अंधेरे से उजाले की ओर एक यात्रा” केवल शब्दों का संयोग नहीं, बल्कि यह जीवन के सार की वह अभिव्यक्ति है, जो हर व्यक्ति की आत्मा को छूती है। यह यात्रा मनुष्य के भीतर की उस प्रक्रिया का नाम है, जहाँ वह अवसाद, भ्रम, पीड़ा और निराशा के गर्त से निकलकर विश्वास, प्रकाश, प्रेम और शांति की ओर अग्रसर होता है। यह परिवर्तन न केवल आत्मिक होता है, बल्कि यह सामाजिक चेतना, मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक विकास की दिशा में भी एक कदम होता है।
हम चार प्रमुख दृष्टिकोणों से इस यात्रा को समझने का प्रयास करें: व्यक्तिगत, सामाजिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक।
1. व्यक्तिगत दृष्टिकोण: आत्मा की जागृति की यात्रा
हर मनुष्य का जीवन कभी न कभी ऐसे मोड़ पर पहुँचता है जहाँ सब कुछ व्यर्थ, बेमानी और भारी लगने लगता है। यही वह अवस्था होती है जहाँ अंधकार हमारे भीतर घर कर जाता है — चाहे वह अवसाद हो, आत्म-संदेह, जीवन की विफलताएँ या प्रियजनों से मिला धोखा। लेकिन अंधकार चाहे जितना भी गहरा क्यों न हो, उसमें एक संभावना छिपी होती है — प्रकाश की। यह संभावना तब साकार होती है जब व्यक्ति अपने भीतर झाँकता है, अपने दुःख को स्वीकार करता है और उससे ऊपर उठने का संकल्प लेता है।
जैसे एक बीज अंधेरे मिट्टी में दबकर भी एक दिन अंकुर बनकर सूरज की ओर बढ़ता है, वैसे ही हर व्यक्ति के भीतर भी विकास की वह चिंगारी होती है जो परिस्थितियों से लड़कर अपने जीवन को नया आकार दे सकती है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” यह वाक्य व्यक्तिगत रूप से उजाले की यात्रा का मंत्र है।
2. सामाजिक दृष्टिकोण: अंधकार में डूबे समाज को जगाने की आवश्यकता। समाज भी कभी-कभी अंधकार में डूब जाता है — जातिवाद, विषमता, हिंसा, नैतिक पतन और मूल्यहीनता के अंधेरे में। ऐसे समय में ज़रूरत होती है उन लोगों की, जो दीपक बनें और समाज को दिशा दें।
महात्मा गांधी ने जब कहा “यदि आप दुनिया में परिवर्तन देखना चाहते हैं, तो पहले स्वयं में परिवर्तन लाएँ”, तो वह सामाजिक परिवर्तन की जड़ में आत्मिक परिवर्तन की बात कर रहे थे।
आज के युग में जब समाज डिजिटल सूचनाओं से भर गया है लेकिन मानवीय संवेदनाएँ पीछे छूट रही हैं, तब ‘उजाले’ का अर्थ केवल भौतिक विकास नहीं, बल्कि करुणा, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों का पुनर्जागरण है।
3. साहित्यिक दृष्टिकोण: अंधकार और प्रकाश का कलात्मक संगम साहित्य ने सदा अंधेरे और उजाले के संघर्ष को दर्शाया है। चाहे वह कालिदास का ‘मेघदूत’ हो, या जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’, जिसमें श्रद्धा और मनःस्थिति के द्वंद्व से उजाले की खोज होती है — साहित्य में यह यात्रा बहुआयामी रही है।
हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियाँ –
“अंधेरे में तो सब एक जैसे लगते हैं,
पर उजाला ही पहचान दिलाता है…”
हमें इस बात की ओर संकेत करती हैं कि साहित्य केवल सौंदर्य या कल्पना नहीं, बल्कि आंतरिक विकास की प्रेरणा भी है।
साहित्यिक पात्र जैसे ‘कृष्ण’ — जो युद्धभूमि के अंधकार में भी गीता का ज्ञान देकर अर्जुन को सत्य का प्रकाश दिखाते हैं — हमें जीवन के संघर्षों में आशा और धर्म का रास्ता दिखाते हैं।
4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: आत्मा की मुक्ति की ओर भारतीय दर्शन विशेषतः जैन, वैदिक और बौद्ध परंपराएँ मानती हैं कि असली अंधकार ‘अविद्या’ है — आत्मा का अपने शुद्ध स्वरूप से विचलित हो जाना।
जैन धर्म में आत्मा की प्रकृति ‘ज्ञानमय’ और ‘दिव्य’ मानी गई है। लेकिन कर्मों के बंधन, मोह, राग-द्वेष आदि इसे ढँक लेते हैं। यही अंधकार है। जब साधक तप, ध्यान, स्वाध्याय और संयम से अपने भीतर के इन आवरणों को दूर करता है, तो वह ‘उजाले की ओर’ — मोक्ष की ओर — यात्रा करता है।
भगवद्गीता में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अंधकार से प्रकाश की ओर जाओ।
यह एक आमंत्रण है, केवल अर्जुन को नहीं, बल्कि समस्त मानवता को।
बुद्ध ने भी अज्ञान को दुःख का मूल बताया और ध्यान व सम्यक दृष्टि को उसकी मुक्ति का उपाय।
अतः आध्यात्मिक रूप से ‘अंधेरे से उजाले की ओर यात्रा’ एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य को उसकी दिव्यता से पुनः जोड़ती है।
हर जीवन में कभी न कभी ऐसा समय आता है, जब सब कुछ थम-सा जाता है। जैसे समय रुक गया हो, उम्मीदें मुरझा गई हों, और रास्ते खो गए हों। पर क्या यही अंत है? नहीं। कठिनाइयाँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनसे उबरना ही असली जीवन है।
कठिनाइयाँ क्यों आती हैं?
कठिनाइयाँ जीवन के वे अध्याय हैं जो हमें सिखाते हैं, मजबूत बनाते हैं और हमारी असली क्षमताओं को सामने लाते हैं। जैसे सोना आग में तपकर चमकता है, वैसे ही हम भी संघर्षों में निखरते हैं।
स्वीकार करना ही पहला कदम है :
जो हुआ, उसे नकारने से कुछ नहीं बदलता। पहली प्रेरणा इसी से मिलती है कि हम स्वीकार करें कि हाँ, जीवन कठिन है – लेकिन यह स्थायी नहीं है।
सोच का दृष्टिकोण बदलें :
कठिनाइयों को बाधा नहीं, एक अवसर की तरह देखें। जैसे किसी ऊँची चोटी पर चढ़ने से पहले की थकावट, वही आगे के दृश्य को सुंदर बनाती है।
सकारात्मक सोच और आत्मसंवाद :
अपने आप से बात करें, खुद को भरोसा दिलाएं – “मैं कर सकता हूँ।” खुद को प्रेरणा देना सबसे बड़ी ताकत है।
आत्म-अनुशासन और दिनचर्या :
जब बाहर सब कुछ बिखर रहा हो, तब एक साधारण लेकिन नियमित दिनचर्या आपको संभाल सकती है। योग, ध्यान, और आत्मचिंतन इसमें सहायक हो सकते हैं।
सहारा लें – कोई शर्म की बात नहीं
परिवार, मित्र, या एक गुरु – ये सभी जीवन की डूबती नैया को किनारे तक लाने में मदद कर सकते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाएँ :
कई बार कठिनाइयाँ आत्मा की परीक्षा होती हैं। जैन दर्शन में भी कहा गया है – “दुःख को सहना, आत्मा का बल बढ़ाना है।”
हर रात के बाद सुबह जरूर आती है :
समय परिवर्तनशील है। आज का अंधेरा कल की रोशनी बन सकता है, बस विश्वास बनाए रखें।
निष्कर्ष :
कठिनाइयाँ जीवन की किताब के वे पृष्ठ हैं जिन्हें पढ़ना भले कठिन हो, लेकिन वही हमें जीवन का असली पाठ पढ़ाते हैं। हार मानना विकल्प नहीं है। उठिए, मुस्कुराइए और आगे बढ़िए – क्योंकि आप अकेले नहीं हैं, और आप टूटे नहीं हैं – आप बन रहे हैं।
प्रेरक उदाहरण – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
भारत के ‘मिसाइल मैन’ और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का जीवन भी संघर्षों से भरा था। बचपन में अख़बार बाँटने वाले इस बालक ने अपनी मेहनत, अनुशासन और सकारात्मक सोच से न केवल विज्ञान के क्षेत्र में कमाल किया, बल्कि करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बन गए।
“मैं हार नहीं मानूंगा”।
हम सब हैं यात्री यह यात्रा किसी एक दिन की नहीं होती। यह जीवन भर चलती है — हर सुबह जब हम अपनी कमज़ोरियों से लड़ने का संकल्प लेते हैं, हर रात जब हम अपने भीतर के दोषों का आत्मावलोकन करते हैं — तब हम उस यात्रा पर होते हैं।
अंधकार कभी पूरी तरह समाप्त नहीं होता, लेकिन हर बार हम एक दीपक जला सकते हैं। वह दीपक — ज्ञान का हो, करुणा का हो, या सत्य का — हमें राह दिखाता है।
अंधकार से उजाले की यह यात्रा न केवल एक व्यक्ति की, बल्कि पूरे युग की हो सकती है। और यदि हम सब अपने-अपने जीवन में एक-एक दीप जलाएँ, तो पूरा विश्व प्रकाशित हो सकता है।
थक जाऊँ, रुक जाऊँ – यह मुझको मंज़ूर नहीं,
टूट जाऊँ, बिखर जाऊँ – इतना मैं कमजोर नहीं।
हर आँधी से टकराना मेरी आदत बन चुकी है,
अंधेरे में भी चलना मेरी हिम्मत बन चुकी है।
मैं हार नहीं मानूंगा, मैं रुक नहीं जाऊँगा,
कठिनाइयों से लड़कर, मैं नया सूरज लाऊँगा।
अंधेरे से उजाले की ओर की यात्रा केवल एक बाहरी परिवर्तन नहीं, बल्कि एक भीतरी क्रांति है। यह आत्मा की पुकार है, जो कहती है — “जागो, आगे बढ़ो, और अपनी रोशनी स्वयं बनो।” जीवन में चाहे जितना अंधकार हो, एक दीपक काफी होता है उसे मिटाने के लिए। वह दीपक हमारे भीतर ही है — उसे जलाना ही जीवन की सबसे महान यात्रा है।
“एक दीप जलाओ, फिर देखो
कितनी दूर तक रोशनी जाती है…”
(डॉ सुनील जैन संचय)
9793821108