जीवन की उपयोगिता का परिचायक जीवन की लंबाई नहीं गहराई होती है, मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज

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*दिल्ली*। *वेदचन्द जैन*।
         आपके व्यक्तित्व का परिचय संपत्ति से नहीं आपके द्वारा अर्जित सम्मान के आधार पर होता है। जीवन की उपयोगिता लंबाई से नहीं गहराई से पहचानी जाती है। क्रांतिकारी मुनि श्री प्रतीक सागर महाराज ने जीवन की उपयोगिता को समझाते हुए बताया कि संतान को संपत्ति वान बना पायें या न बना पायें मगर संस्कार वान अवश्य बनाएं।
    दिल्ली महरौली की अहिंसा स्थली में अपने प्रवचन में बताया कि ढाई हजार वर्ष से भी अधिक काल बीत गया,भगवान महावीर को मोक्ष गये, उन्होंने विवाह नहीं किया , संतानोत्पत्ति नहीं की मगर उनका वंश आज भी उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। उनके गुणों का प्रकाश आज भी सभी को प्रकाशित कर रहा है। आप विवाह कर संतान उत्पत्ति करते हो,मगर आपका वंश आपकी परंपरा के अंश को आगे बढ़ाये ये निश्चित नहीं है।
      मुनिश्री प्रतीक सागर ने बताया कि ये महत्वपूर्ण नहीं है कि आपने कितना खाया वरन् यह महत्वपूर्ण है कि आपने कितना पचाया।जीवन  लंबाई से नहीं गहराई से पहचाना जाता है। भगवान महावीर ने तीस वर्ष की आयु में मुनव्रत धारण कर बारह वर्ष तक तप किया,42 वर्ष की आयु में केवलज्ञानी प्राप्त कर तीस वर्ष तक जगत कल्याण कर मात्र 72 वर्ष की आयु में निर्वाण पा लिया। जीवन तो मात्र 72 वर्ष का ही था मगर उपलब्धि अमर हो गई। मुनिश्री ने बताया कि महापुरुष जीवन की लंबाई से नहीं काम की गहराई से अमर हो जाते हैं।
       आपने दिल्ली की युवा पीढ़ी को जैन मुनियों के विहार में साथ चलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि ये संस्कार देना माता पिता का कर्तव्य है,आप लौकिक शिक्षा के लिये बच्चों पर दबाव बनाते हो और बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेशों में बसे जाते हैं।आप वृद्धावस्था में आकर कहते हो महाराज हमारे बच्चे हमें छोड़ कर चले गए,हमारी सुनते ही नहीं,मैं पूंछता हूं इन माता-पिता से जब हम समझाते थे तब तुम नहीं सुनते थे कि बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार दो तब आप नहीं सुनते थे,अब वे आपकी नहीं सुनते।
*वेदचन्द जैन*

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