जन्म मिला पुनः जन्म के लिए नहीं, न ही मरण के लिए यह जन्म तो दीक्षा और जप तप साधना के लिए है। आचार्य ‌श्री विभव सागर जी

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आर्यिका सिद्ध श्री माताजी का अवतरण दिवस उत्साह से मनाया। पार्श्व दिव्य घोष ने की दीक्षा गुरु की भव्य आगवानी

 

इंदौर (ओम पाटोदी)। जिस पुण्य आत्मा ने मानव जीवन पाकर सम्यक ज्ञान दर्शन चारित्र को जन्म दिया हो आज उस शरीर का जन्म दिवस नहीं उस संयमी आत्मा के सम्यक दर्शन ज्ञान का महोत्सव मनाया जा रहा है। कष्टों से महापुरुष जीवन प्रारंभ होता है, क्योंकि सुख सुविधाओं से प्राप्त ज्ञान तो एक बार विस्मृत हो सकता है परन्तु दुःख और  प्रतिकुलताओ में पाया गया ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता है।

उक्त विचार आर्यिका सिद्ध श्री माताजी के दीक्षा गुरु समाधि शतक के काव्य के रचयिता आचार्य श्री विभव सागर जी महाराज ने माताजी के 32वें अवतरण दिवस पर समर्थ सिटी में पधार कर व्यक्त किये। उन्होंने कहा की माताजी ने अपने छोटे से जीवन में काफी कष्ट सहे हैं परन्तु कभी विचलित नहीं हुईं। उनका संयमित जीवन और निखरता गया और आज आप सभी उनकी  अपार प्रतिभा को महसूस कर रहे होंगे यही वजह है की मैं भी अपनी शिष्या के आग्रह को नकार नहीं सका और आज आप सभी के बीच सात संतों के साथ ही आर्यिका माताजी, क्षुल्लक जी व क्षुल्लिका जी सहित चतुर्विध संघ यहां मंच पर उपस्थित होकर इनके संयम पर की अनुमोदना कर रहा है साथ ही अपार जनसमूह जो सामने बैठा है। यह सब माताजी की सम्यक प्रतिभा का कमाल है। यह जन्म मिला पुनः जन्म के लिए नहीं, न ही मरण के लिए यह जन्म तो दीक्षा और जप तप साधना के लिए है। कर्म अनुकूल भी होंगे कर्म प्रतिकूल भी होंगे परन्तु प्रतिकूलता में साधना न छोड़ें अपनी साधना पर दृढ़ विश्वास रखो।

इस अवसर पर स्मृति नगर से पधारे शुद्ध उपयोग सागर जी महाराज ने भी उद्बोधन दिया और कहा कि कभी गुरु शिष्य के अवतरण दिवस पर नहीं गए परन्तु माताजी ने इतिहास बनाया है। यह गुरु के प्रति निस्वार्थ भक्ति का ही फल है भक्ति ऐसी ही होनी चाहिए। गुरु की दृष्टि दूरदृष्टी होती है, वे तो शिष्य का उपकार चाहते हैं इसलिए नारियल बनना पड़ता है शिष्य के उपकार के लिए यही गुरुता है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में चातुर्मास के मुख्य कलश पुण्यार्जक परिवार श्री ऋषभ मोना जी जैन, मनीष रिंकी जी जैन, नाभिनंदन कुसुम मनीष जी जैन, अनिल संध्या जी जैन, मन्नूलाल चंदन जी जैन परिवारजन के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया। गुरु जी के पाद प्रक्षालन का लाभ शैलेश जी रिचा जी चंदेरिया एवं शैलेन्द्र जी श्रैयास जी संदीप जी चन्देरिया परिवार को मिला। मंगलाचरण की सुन्दर प्रस्तुति नृत्य द्वारा चहेती पाटोदी, इशिका जैन, आयूषी जैन,पियू जैन एवं आर्ची जैन ने की। विभिन्न नगरों और कालोनियों से पधारे मुख्य अतिथियों कि स्वागत वरिष्ठ समाजजन शैलेश भैया, अमीरचंद जैन, ओम पाटोदी, सन्तोंष जबेरा, सुभाष जैन, संतोष मामाजी, डाक्टर सा, श्रैयास जैन, पारस जैन ने किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के समस्त युवा मंडल ने शास्त्र भेंट करने का एवं गुरु पूजन का लाभ महिला मंडल के साथ सभी समाज जनों ने प्राप्त किया कार्यक्रम का सफल संचालन सुलभ जैन ने किया। आभार शैलेश जैन ने माना।

अपने अवतरण दिवस पर गुरु मां सिद्ध श्री माताजी ने कहा कि जीवन में सबके दिन आते हैं, कुछ अच्छे आते बुरे दिन भी आते हैं। आज़ अनुपम सौभाग्य का क्षण है कि गुरूदेव पधारे हैं। आज का उत्सव मेरे जीवन का अविस्मरणीय दिवस है कि आज गुरु चरणों का गंधोदक मिला। गुरु ने मुझे बनाने में बहुत परिश्रम किया। गुरु के उपकार को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। गुरु नाव सम होते हैं, स्वयं तो पार होते ही हैं शिष्यों को भी पार लगा देते हैं। बस चन्द्रगुप्त मौर्य सी गुरु भक्ति होनी चाहिए। बस एक ही आस है कि हे गुरुदेव मेरे जीवन का अन्तिम दिवस आये तो समाधि मरण में आप सामने हो, आपका सानिध्य मिले आपका आशीर्वाद मिले।

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