शरीर धारण करना संसारी जीव की नियति है। संसार में कोई भी जीव शरीर से रहित नहीं हो सकता। आपका प्रश्न हो सकता है कि जब व्यक्ति का मरण होता है तब तो यह जीव शरीर से रहित होता होगा १ आपका यह प्रश्न होना स्वाभाविक है लेकिन ध्यान रखना – संसार में जीव मरण के बाद भी द्वारीर से रहित नहीं होता, सच बात तो यही है कि जीव का कभी मरण ही नहीं होता, चैतन्य प्राणों से जो जीता था, जीता है और जीता रहेगा निश्चय से वही जीव है, वह शाश्वत है कभी मरता नहीं हैं। बन्धुओ ! चैतन्य प्राण वाले जीव से वर्तमान में प्राप्त हुए शरीर का पृथक हो जाना ही मरण कहलाता है। संसार में यही अमरणधर्मा जीव चार गतियों की चौरासी लाख योनियों में ही नए-नए शरीर मनुष्य, घोड़ा, हाथी मच्छर, मक्खी केंचुआ, नारकी आदि-आदि अनेक रूप धारण करता रहता है मही संसार में जन्म नाम से कहा जाता है और इन शरीरों से पृथक हो जाना ही मरण कहलाता है। यह जीव अपने ही शुभ-अशुभ कर्मों के द्वारा संसार में उच्च अथवा तुच्छ शरीरों में जन्म-मरण धारण करता रहता है। शुभ कर्मों के योग से कोई जीव उच्च कुल में जन्म लेता है, जन्म लेने के बाद अब उस जीव के भविष्य का निर्धारण आपके परिवार के हाथों में है। अब उस बालक को कैसा वातावरण देना है, कैसे संस्कार देना है, कैसी शिक्षायें प्रदान करनी है इन सब बातों का दायित्व अब मात्र आपके ही हाथों में है। ध्यान रखना, आपको थोड़ी सी लापरवाही आपकी सन्तान के भविष्य को उजाड़ सकती है।
शरीर तो संसार में सभी जीवों को प्राप्त होता है पर श्रेष्ठ जीवन उसी का होता है जो धर्म-संस्कारों के साथ अपना जीवन निर्मापित करता है। कोई जीव इस मनुष्य शरीर में जन्म प्राप्तकर दुष्कर्म-खोटे कर्म करते। हुए दुर्गतियों को प्राप्त होते हैं और कोई-कोई, तीर्थकर जैसे महापुरुष मनुष्य शरीर में ही जन्म धारण करके शुभ-श्रेष्ठ कर्म करते हुए प्राणी मात्र को हित का मार्ग दिखाते हुए संसार से रहित संसारातीत अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। आप भी शुभ कर्मों के द्वारा अपने मनुष्य जीवन को सफल करें, यही आशीर्वाद है।
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