श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्यसागर जी ससंघ का मिला सान्निध्य
भगवान के सामने याचना नहीं प्रार्थना करनी चाहिए : मुनिश्री
भीलवाड़ा । श्रमणाचार्य , चर्या शिरोमणि श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के परम शिष्य श्रुतसंवेगी मुनि श्री आदित्यसागर जी महाराज , श्रुत प्रिय श्रमण अप्रमितसागर जी, मुनि श्री सहजसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में दिगम्बर जैनाचार्य राष्ट्रीय , विद्वत् संगोष्ठी 1 व 2 दिसम्बर को सम्पन्न हुई । अखिल भारतीय शास्त्री परिषद् के अध्यक्ष डॉ . श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत के निर्देशन में, प्रतिष्ठाचार्य पं . विनोद कुमार जैन रंजबास के संयोजकत्व में सर्वश्री डॉ . शीतल चंद जैन जयपुर , डॉ . नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़ , डॉ . श्रीयांश कुमार जैन जयपुर , डॉ . कमलेश जैन , जयपुर,
ब्र . डॉ . धर्मेन्द्र जैन जयपुर, डॉ . ब्र. अनिल जैन प्राचार्य,जयपुर , डॉ . सुनील जैन संचय , ललितपुर , राजेन्द्र महावीर सनावद , डॉ . सोनल जैन दिल्ली डॉ . बाहुबली जैन इन्दौर , डॉ . पंकज जैन इंदौर , डॉ . आशीष आचार्य सागर, डॉ . आशीष जैन बम्होरी , अंकित शास्त्री मङ्देवरा ने प्रमुख दिगम्बर जैनाचार्यों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अपने शोधालेख प्रस्तुत किए । आदिनाथ दि . जैन मंदिर आर के कालोनी के अध्यक्ष नवीन गोधा , सचिव अजय बाकलीवाल ने आदि सभी विद्वानों का भावभीना स्वागत, सम्मान किया ।
संगोष्ठी के सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः डॉ शीतलचंद्र जैन प्राचार्य जयपुर, डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत, प्रो. श्रीयांस सिंघई जयपुर, प्रो. कमलेश जैन जयपुर ने किया, सत्रों का संचालन पंडित विनोद कुमार जैन रंजबास, डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर, राजेन्द्र महावीर सनावद, डॉ बाहुबली जैन इंदौर ने किया।
इस मौके पर मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने कहा कि पूर्वाचार्यों का संरक्षण जरूरी है। ग्रंथों के संरक्षण की ओर सभी का ध्यान होना चाहिए। भगवान के सामने याचना नहीं प्रार्थना करनी चाहिए। जैनों की जनसंख्या कैसे बढ़े इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। वीतरागी की अर्चना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज अचेतन प्रतिष्ठा से चेतन प्रतिष्ठा ज्यादा आवश्यक है। ऐसी संगोष्ठियां निरंतर चलती रहें। सभी को संस्कृति के संरक्षण , संवर्द्धन के लिए आगे आना चाहिए।