जैनाचार्य विद्यासागर साक्षात् भगवन स्वरूप थे -मुनिश्री विलोकसागर

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दिगंबराचार्य विद्यासागर का दीक्षा समारोह मनाया गया

मुरैना (मनोज जैन नायक) पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवन विद्यासागरजी महाराज ने ऐसे समय में दीक्षा ली थी जब प्रायः श्रमण परम्परा विलुप्त हो रही थी । पूज्य गुरुदेव ने युवाओं को भगवान महावीर के बताए हुए संयम मार्ग पर चलने का उपदेश दिया । आचार्य श्री विद्यासागर जी का 58वें दीक्षा दिवस पर सारा विश्व उन्हें याद कर रहा है । आज वो हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनका जीवन चरित्र और उनका बताया ज्ञान आज भी हमारे बीच है । पूज्य गुरुदेव का जीवन चरित्र पड़ने मात्र से जीवन में बहुत बदलाव आ जाता है ।

दीक्षा लेकर साधु हो जाना या मुनि हो जाना बहुत आसान है किंतु समस्त शास्त्रों के ज्ञान के बाद व्यक्ति उपाध्याय हो जाता है और कठोर तप करते हुए वह आचार्य पद ग्रहण करता है। ऐसे ही आचार्य हैं विद्यासागर महाराज। आचार्यश्री ने अनुशासन और तप से अपने मन और तन को कुंदन बना रखा था। उनके तपोबल का तेज उनके चेहरे पर निरंतर झलकता रहता था । आचार्य विद्यासागरजी ने धर्म की प्रभावना समाज में फैलाई । उनकी यही प्रभावना देश को अहिंसा के पथ पर ले जाती है। उनकी यह दीक्षा हमेशा समाजवासियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी रहेगी।
मिला गुरु का आशीर्वाद
चारित्र विभूषण महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा संस्कार मिले। गुरु भक्ति-समर्पण से गुरु कृपा का प्रसाद पाकर वे सारी पराधीनता छोड़ते हुए दिगंबर मुनि बनकर शाश्वत सत्य की अनुभूति में तपस्यारत हो गए।
आचार्य विद्यासागरजी ने सन् 1967 में आचार्य देशभूषण जी से ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया।महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से आषाढ़ शुक्ल पंचमी (30 जून, 1968, रविवार) को अजमेर में उन्होंने दिगंबर भेषधारी जैनेश्वरी मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। उक्त उद्गार पूज्य जैन संत मुनिराज विलोक सागर महाराज ने संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर दीक्षा दिवस महोत्सव पर नसियां जी जैन मंदिर में व्यक्त किए ।
नसियांजी जैन मंदिर में हुआ भव्य आयोजन
पूज्य गुरुदेव समाधिस्थ आचार्यश्री विद्यासागरजी के 58वें दीक्षा दिवस महोत्सव नसियां जी जैन मंदिर में पूज्य युगल मुनिराजश्री विलोकसागर एवं मुनिश्री विवोधसागर महाराज के पावन सान्निध्य में हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया । प्रातःकालीन वेला में श्री जिनेंद्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन के पश्चात चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । हजारों की संख्या में उपस्थित साधर्मी बंधुओं, माता बहिनों, बच्चों ने अष्टद्रव्य से पूज्य आचार्यश्री का पूजन किया । आचार्यश्री का चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन राजेंद्र भंडारी, रमाशंकर जैन, महावीर जैन, सुरेशचंद जैन द्वारा किया गया । मंचासीन युगल मुनिराजों का पाद प्रक्षालन पदमचंद गौरव जैन एवं प्रेमचंद पंकज जैन ने शास्त्र आदि भेंट किए । शांतिधारा करने का सौभाग्य राकेशकुमार आलेख जैन को प्राप्त हुआ ।
गुणानुवाद सभा में संत शिरोमणि समाधिस्थ आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया ।
सभा का संचालन ब्रह्मचारी अजय भैयाजी (झापन वाले), अनूप भंडारी एवं गौरव जैन द्वारा किया गया ।

विद्याधर से विद्यासागर तक की यात्रा
विद्याधर बाल्यकाल से ही साधना को साधने और मन एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण करने का अभ्यास करते थे, लेकिन युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उनके मन में वैराग्य का बीज अंकुरित हो गया। मात्र 20 वर्ष की अल्पायु में गृह त्यागकर आप जयपुर (राजस्थान) पहुंच गए और वहां विराजित आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर उन्हीं के संघ में रहते हुए धर्म, स्वाध्याय और साधना करते रहे।
गुरुदेव विद्यासागरजी में अपने शिष्यों का संवर्द्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य थी। उनका बाह्य व्यक्तित्व सरल, सहज, मनोरम था किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र-से कठोर साधक रहे।

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